Indore News. इंदौर के क्रांतिकारी हीरो शहीद सआदत खान जिनकी पी.एस.सी कार्यालय के सामने मजार है, के बारे में रिजवान खान ने बताया की जब पूरा भारत अंग्रेजों के जुल्मों का शिकार हो चला था तो देशभर में विरोध मुखर होने लगा था. बलरामपुर, बेहरामपूर से चली आजादी की चिंगारी को जहां मेरठ में मंगल पांडे ने हवा दी तो इंदौर भी अछूता न रहा. रिजवान खान ने बताया की 1 जुलाई 1857 को सआदत खान के नेतृत्व में क्रांति की तोपें गड़-गड़ा उठी. सुबह 8 बजे सआदत खान, भाई सरदार खां, भागिरथ सिलावट, हीरासिंह जमादार और अन्य साथी रेसीडेंसी कोठी जा पहुंचे. उस समय कर्नल एच.एम.डूरान्ड रेसीडेंसी कोठी में अपनी टेबल पर काम कर रहा था। सआदत खां ने कर्नल डूरान्ड से बात करनी चाही पर उसने सआदत खां को अपशब्द कहे जिसका उन्होंने विरोध किया. इस पर डूरान्ड ने तमंचा मारा जो सआदत खां के कान को छूता हुआ निकल गया जिससे वो लहूलुहान हो गये. अपने सरदार को लहूलुहान देख क्रांतिकारियों का गुस्सा फूट पड़ा, उधर सआदत खां ने यलग़ार भरी ” तैयार हो जाओ छोटा साहीब लोगों को मारने को, महाराज साहीब का हुक्म है” सआदत खां के आदेश पर होल्कर सेना के तोपची महमूद खां ने तोप का पहला गोला रेसीडेंसी कोठी पर दागा। गोला ठीक उसी जगह लगा जहां एच.एम.डूरांड का ऑफिस था। क्रांतिकारियों ने इंदौर रेसिडेंसी से नौ लाख रुपये लूटकर उन्हें आर्थिक रूप से भी कमजोर कर दिया। इस हमले में 34 अंग्रेज मारे गए और कर्नल डूरान्ड को ओल्ड सिहोर रोड से इंदौर छोड़कर भागने पर विवश होना पड़ा।
रिजवान खान का कहना है कि ऐसे देशप्रेमी शहीद सआदत खाँ की मजार आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. कुछ दिनों पहले इस मजार पर आगजनी हो गई थी जिसकी शिकायत पुलिस थाना संयोगितागंज को की गई थी. जबकि इसी क्षेत्र में सभी बड़े अधिकारीयों का आना जाना होता है और सामने ही लोक सेवा आयोग का ऑफिस है. आग की घटना के बाद से ही इसके पुनरुत्थान के लिए सरकार से सिर्फ आश्वासन मिल रहे है लेकिन अब तक उसपे कोई क्रियान्वयन नहीं किया गया.
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16-17 साल बाद सआदत खाँ बांसवाड़ा में 5000 रूपये के ईनाम के लालच में मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार हुए। वे 7 जनवरी 1874 को इंदौर लाये गये. जनवरी 1858 से अगस्त 1858 तक सआदत खाँ के खिलाफ उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलता रहा। 7 सितंबर 1874 को डी.डब्ल्यू.कै.आर ने सआदत खाँ को मौत की सजा सुना दी थी। 1 अक्टूबर 1874 की सुबह देश की आज़ादी के इस महान् क्रांतिकारी सआदत खाँ को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। जहां फांसी से पहले सआदत खाँ ने एक विशाल जनसमूह को संबोधित किया।
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