सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश में पर्याप्त बिजली है। लेकिन प्रदेशभर में हो रही बिजली कटौती लोगों के लिए जी का जंजाल बन गई है। दिन में हो रही कटौती लोग जैसे-तैसे तो बर्दास्त कर ले रहे हैं, लेकिन रात की कटौती बर्दास्त से बाहर हो रही है। इस कारण लोग धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करने लगे हैं।
कोयले की कमी से आशंकित बिजली संकट पर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने भरोसा दिलाया है कि किसी भी कीमत पर प्रदेश में बिजली संकट नहीं आने देंगे। कोयले की कमी जरूर है, हमने सड़क मार्ग से 30 लाख मीट्रिक टन कोयला लाने के टेंडर कर दिए हैं।
लेकिन फिलहाल कोयला संकट और बढ़ती बिजली की डिमांड के बीच प्रदेशभर में अघोषित कटौती शुरू हो गई है। इससे आम लोग अब परेशान होने लगे हैं।
5 से 10 घंटे तक बिजली की कटौती
भीषण गर्मी के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों में 5 से 10 घंटे तक बिजली की कटौती की जा रही है। कई क्षेत्रों में सिंचाई के लिए किसानों को 5 से 6 घंटे ही बिजली मिल रही है। घरेलू बिजली के भी बुरे हाल हैं। कभी भी बिजली चली जाती है।
इसके चलते परेशान ग्रामीण अब बिजली अधिकारियों पर अपना गुस्सा उतारने लगे हैं। कई क्षेत्रों में बिजली दफ्तरों को घेराव किया जा रहा है। पर्याप्त बिजली के लिए प्रदर्शन होने लगे हैं। इधर, बिजली की बढ़ती डिमांड और गर्मी में जनता की परेशानी को देखते हुए सरकार ने निर्णय लिया है कि वह अभी दूसरे राज्यों को बिजली नहीं देगी ।
गौरतलब है कि मप्र सहित कई राज्यों में इन दिनों बिजली संकट की स्थिति बनी हुई है। कोयले की कमी की वजह से डिमांड के मुताबिक बिजली का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। रेलवे द्वारा लगातार हो रही ढुलाई के बाद भी कोयले की रैक नहीं आ पा रही हैं।
इसको देखते हुए सरकार ने सड़क मार्ग से कोयले की रैक बुलवाने की व्यवस्था की है। मप्र को रोजाना 14 रैक कोयले की जगह 10 रैक कोयला ही मिल रहा है। इससे बिजली संकट गहरा गया है। प्रदेश में बिजली की मांग 12 हजार मेगावाट की है, लेकिन 10 हजार मेगावाट बिजली ही मिल रही है।
2 हजार मेगावाट बिजली की कमी के लिए ग्रामीण इलाकों में अघोषित कटौती शुरू कर दी गई है। एमपी पावर जनरेटिंग कंपनी को थर्मल प्लांट्स चलाने के लिए प्रतिदिन 58 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है, लेकिन करीब 50 हजार मीट्रिक टन ही कोयला मिल रहा है।