(विवादित बयान पर प्रतिक्रिया )
लेखक – विद्यावाचस्पति डॉ. अरविन्द प्रेमचंद जैन
सत्य बोलना एक बहुत बड़ा व्रत हैं। इसके सम्बन्ध में हमारे ग्रंथों ,पुराणों और महापुरुषों ने इसका अपने जीवन में इसको उतारा और बहुत विस्तृत विवरण मिलता हैं। सत्य बोलना कभी कभी मुश्किल में डालता हैं जैसे वर्तमान में एक पार्टी विशेष के नेता ने कुछ टिपण्णी करने से बवाल मचा हुआ हैं। सत्य कटु होता हैं। सत्य वचन वह होता हैं जो हितकारी हो ,मित हो और प्रिय हो। कभी कभी किसी को बचाने के लिए असत्य बोलना भी सत्य की श्रेणी में आता हैं।
एक जंगल में एक साधु साधनारत थे। कुछ समय बाद एक गाय बाएं दिशा की तरफ भागी गयी। उसके कुछ अंतराल के बाद एक शिकारी वहाँ आया और उसने साधु से पूछा की आपने कोई गाय को भागते हुए देखी। साधु ने इशारा में बताया हां और उन्होंने दाएं तरफ इशारा किया। यह असत्य वचन था पर एक जीव को बचाने उन्होंने असत्य बोला वह सत्य की परिभाषा में माना जाता हैं।
सत्य वचन की पांच भावनाएं होती हैं —क्रोध , लोभ, भय, हास्य का त्याग करना और शास्त्र के अनुसार निर्दोष वचन बोलना ये सत्य व्रत की भावनाएं होती हैं।
आज सत्य बोलना बहुत कठिन हैं और उन्होंने किसी धार्मिक पुस्तक को आधार बनाकर सत्य बोला और वह गले की फांसी बन गयी। यदि इस बात को अनेकांतवाद की दृष्टि से देखा होता हो विवाद नहीं होता। उनके कथन को एकांगी माना। यदि अनेकांतवाद से देखा जाये तो गलत नहीं हैं। अनेकान्तवाद की यह खूबसूरती हैं की वह हर बात को सत्य न मानके एक की अपेक्षा सही हैं। जिस समय में यह लेख रहा हूँ ,इस समय दिन के ११ बज रहे हैं। मै कहुँ की इस समय दिन हैं यह कथन सही नहीं हैं क्योकि अमेरिका आदि देशों में रात हैं।
आज विश्व में तनाव ,अशांति का मुख्य कारण एक दूसरे के भावों को एकांत की दृष्टि से समझकर विवाद खड़ा करना। यदि उसको अनेकांतवाद की दृष्टि से देखे तोकोई विवाद नहीं।
इतिहास /धर्म विवाद का विषय हैं। कारण इतिहास और धार्मिक पुस्तकें मानव द्वारा लिखी गयी हैं और लिखी जाती हैं। लेखक किस पृष्ठभूमि का हैं यह उसके लेखन से प्रतीत होता हैं सामाजिक, राजनैतिक विवाद मात्र दृष्टिकोणों का होता हैं। बात सच हैं पर बोलना का सलीका ढंग का हो तो ठीक ,जैसे कुनैन को शुगर कोटेड कर खिलाते हैं ,इसी प्रकार बात को कहो और उसको अहसास न हो।
हुआ क्यों विवाद क्योकि कोई सच नहीं स्वीकारना चाहता हैं। सब चिकनी चुपड़ी बात कहना ,सुनना पसंद करते हैं। हमारे देश में हिन्दुओं के तैतीस करोड़ देवी देवता हैं जबकि अन्य में मात्र एक ही हैं और हमको कोई भी कहे ,कुछ भी कहे सहन करते हैं पर अन्य लोग पता नहीं क्यों इतने संकीर्ण मानसिकता के होते हैं। सुनो, समझो ,जानो पर विवाद पहले होता हैं।
आज विश्व एक विचार धारा वालों के साथ एक हो गया कारण उनमे एकता हैं और हम एक होने की कोशिश करते हैं तो बाह्य दबाव के कारण झुक जाते हैं यह विचारणीय प्रश्न हैं। हम क्यों इतने लचीले हो जाते हैं और उनमे कट्टरता बनी रहती हैं। उनसे हमें शिक्षा नहीं लेनी चाहिए। हमारे देवी देवताओं के ऊपर कितना कुठाराघात नहीं होता और हम भूल जाते हैं
हमारे देश में समस्याएं कम नहीं हैं –गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा ,स्वास्थ्य ,सड़क ,बिजली ,पानी ,आवास ,कुपोषण ,आदि पर हम लोग मुख समस्याओं से भटक कर ईश्वर ,अल्ला ,ईशा ,आदि के विवादों में अटके हुए हैं। वे सब ऊपर चहले गए और हम उनके नाम की लकड़ी पीट रहे ,जिससे कुछ नहीं होने वाला हैं। जिस कौम की बुनियाद हिंसा,आतंक ,दहसत गरजी पर टिकी हैं उनका कोई एजेंडा विकास के लिए न होकर विनाश और अपना खुद का भला नहीं कर पा रहे हैं। बांसी कुर्सी पर बैठे हैं ,कोई नया स्थान नहीं बनाया।
तर्क अनंत होते हैं पर सच्चाई एक ही होती हैं ,तर्क का मुलल्मा कितना भी पहनाओ पर सत्य उजागर होता हैं। विश्व में कोई भी पूर्ण नहीं हैं ,सबमे खामियां होती हैं और यदि वे मानव से भगवान बने हैं तो उनमे कमियां /भूलें होना स्वाभाविक हैं। पर जब रंगीन चश्मा पहने हो तो वही रंग दिखाई देगा।
अब हम इन विवादों में न पड़ कर देश के विकास में अहम भूमिका निभाए और जो बुनियादी समस्याएं हैं उन पर गौर /ध्यान दे। खून खराबा से कोई हल नहीं निकलता। हल निकलता हैं बातचीत से वह भी स्वस्थ्य हो। अन्यथा हमारी ऊर्जा इन सड़े मुद्दों पर रहेंगे और हम नफरत फैलाकर नौ दो ग्यारह हो जायेंगे।
एक जंगल में एक साधु साधनारत थे। कुछ समय बाद एक गाय बाएं दिशा की तरफ भागी गयी। उसके कुछ अंतराल के बाद एक शिकारी वहाँ आया और उसने साधु से पूछा की आपने कोई गाय को भागते हुए देखी। साधु ने इशारा में बताया हां और उन्होंने दाएं तरफ इशारा किया। यह असत्य वचन था पर एक जीव को बचाने उन्होंने असत्य बोला वह सत्य की परिभाषा में माना जाता हैं।
सत्य वचन की पांच भावनाएं होती हैं —क्रोध , लोभ, भय, हास्य का त्याग करना और शास्त्र के अनुसार निर्दोष वचन बोलना ये सत्य व्रत की भावनाएं होती हैं।
आज सत्य बोलना बहुत कठिन हैं और उन्होंने किसी धार्मिक पुस्तक को आधार बनाकर सत्य बोला और वह गले की फांसी बन गयी। यदि इस बात को अनेकांतवाद की दृष्टि से देखा होता हो विवाद नहीं होता। उनके कथन को एकांगी माना। यदि अनेकांतवाद से देखा जाये तो गलत नहीं हैं। अनेकान्तवाद की यह खूबसूरती हैं की वह हर बात को सत्य न मानके एक की अपेक्षा सही हैं। जिस समय में यह लेख रहा हूँ ,इस समय दिन के ११ बज रहे हैं। मै कहुँ की इस समय दिन हैं यह कथन सही नहीं हैं क्योकि अमेरिका आदि देशों में रात हैं।
आज विश्व में तनाव ,अशांति का मुख्य कारण एक दूसरे के भावों को एकांत की दृष्टि से समझकर विवाद खड़ा करना। यदि उसको अनेकांतवाद की दृष्टि से देखे तोकोई विवाद नहीं।
इतिहास /धर्म विवाद का विषय हैं। कारण इतिहास और धार्मिक पुस्तकें मानव द्वारा लिखी गयी हैं और लिखी जाती हैं। लेखक किस पृष्ठभूमि का हैं यह उसके लेखन से प्रतीत होता हैं सामाजिक, राजनैतिक विवाद मात्र दृष्टिकोणों का होता हैं। बात सच हैं पर बोलना का सलीका ढंग का हो तो ठीक ,जैसे कुनैन को शुगर कोटेड कर खिलाते हैं ,इसी प्रकार बात को कहो और उसको अहसास न हो।
हुआ क्यों विवाद क्योकि कोई सच नहीं स्वीकारना चाहता हैं। सब चिकनी चुपड़ी बात कहना ,सुनना पसंद करते हैं। हमारे देश में हिन्दुओं के तैतीस करोड़ देवी देवता हैं जबकि अन्य में मात्र एक ही हैं और हमको कोई भी कहे ,कुछ भी कहे सहन करते हैं पर अन्य लोग पता नहीं क्यों इतने संकीर्ण मानसिकता के होते हैं। सुनो, समझो ,जानो पर विवाद पहले होता हैं।
आज विश्व एक विचार धारा वालों के साथ एक हो गया कारण उनमे एकता हैं और हम एक होने की कोशिश करते हैं तो बाह्य दबाव के कारण झुक जाते हैं यह विचारणीय प्रश्न हैं। हम क्यों इतने लचीले हो जाते हैं और उनमे कट्टरता बनी रहती हैं। उनसे हमें शिक्षा नहीं लेनी चाहिए। हमारे देवी देवताओं के ऊपर कितना कुठाराघात नहीं होता और हम भूल जाते हैं
हमारे देश में समस्याएं कम नहीं हैं –गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा ,स्वास्थ्य ,सड़क ,बिजली ,पानी ,आवास ,कुपोषण ,आदि पर हम लोग मुख समस्याओं से भटक कर ईश्वर ,अल्ला ,ईशा ,आदि के विवादों में अटके हुए हैं। वे सब ऊपर चहले गए और हम उनके नाम की लकड़ी पीट रहे ,जिससे कुछ नहीं होने वाला हैं। जिस कौम की बुनियाद हिंसा,आतंक ,दहसत गरजी पर टिकी हैं उनका कोई एजेंडा विकास के लिए न होकर विनाश और अपना खुद का भला नहीं कर पा रहे हैं। बांसी कुर्सी पर बैठे हैं ,कोई नया स्थान नहीं बनाया।
तर्क अनंत होते हैं पर सच्चाई एक ही होती हैं ,तर्क का मुलल्मा कितना भी पहनाओ पर सत्य उजागर होता हैं। विश्व में कोई भी पूर्ण नहीं हैं ,सबमे खामियां होती हैं और यदि वे मानव से भगवान बने हैं तो उनमे कमियां /भूलें होना स्वाभाविक हैं। पर जब रंगीन चश्मा पहने हो तो वही रंग दिखाई देगा।
अब हम इन विवादों में न पड़ कर देश के विकास में अहम भूमिका निभाए और जो बुनियादी समस्याएं हैं उन पर गौर /ध्यान दे। खून खराबा से कोई हल नहीं निकलता। हल निकलता हैं बातचीत से वह भी स्वस्थ्य हो। अन्यथा हमारी ऊर्जा इन सड़े मुद्दों पर रहेंगे और हम नफरत फैलाकर नौ दो ग्यारह हो जायेंगे।