नौनिहाल के पल

Rajendra Singh
By
Rajendra Singh
पर्यावरण संरक्षण एवं जैविक खेती के प्रति प्रशिक्षण
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नौनिहाल के पल

गर्मी की छुट्टियां

ननिहाल आंगन बसती थी !

छोटी सी हमारी दुनिया

बस यूं ही महकती रहती थी !!

कैंप नहीं बस

मोहल्ला टोलियों संग

चहलकदमी हुआ करती थी !

मां की पुरानी साड़ी

बच्चों की रेल

हुआ करती थी !!

गोबर लिपे दीवारों पर

लकड़ी और गेरू से

चित्रकारी हुआ करती थी !

आंगन खेल तैयारियों के

चाक से खींची सीमाएं

हुआ करती थीं !!

इमली-चियों से डिब्बे भरे

हुआ करते थे !

अंग-मंग -चोक-चंग के खेलों के

दौर हुआ करते थे !!

खेत और बाग-बगीचों पर

नज़रे हुआ करती थीं !

बचते, बचाते लोगों से

आम, इमली, जामुन की

बस्ती लूट जाया करती थीं !!

माली से पकड़े जाने

के डर से

हर राह की नाका बंदी

होती थी !

माली से पकड़े जाने पर

नकली मुस्कुराहट भरी

समूह की माफ़ी होती थी !!

चोर, पुलिस और

पुराना डिब्बा

बिना साधन के खेल

हुआ करते थे !

डिब्बा फेंक सभी छुप

जाया करते थे !!

नानी के पीछे छिप

फ़िर उन्हीं से पूछते

घर छोटे पर

दुनिया बड़ी हुआ करती थी !

समर कैंप नहीं पर

नए सखा संग यूं ही

मस्ती हो जाया करती थी !!

बीत गए दिन अब तो

फीकी चमक चेहरों से

भेंट हुआ करती है!

अपनापन ढूंढने के लिए

अब तो

व्यावसायिक नजरें

हुआ करती हैं !!

 

पवन सोलंकी,

इंदौर

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