ग्वालियर, भोपाल और इंदौर बने फर्जी बीएड कॉलेजों के हॉटस्पॉट
इंदौर के कुछ कॉलेजों में एमएड के छात्र ही बन गए फैकल्टी, वेतन भी हड़पा गया, फर्जी शिक्षकों और कॉलेज संचालकों पर गिरेगी गाज, 7 दिन में बीएड कॉलेजों के दस्तावेज मांगे, जांच में जुटी एजेंसियां
बिना कॉलेज जाए डिग्री प्राप्त करना और उस डिग्री का शासकीय नौकरी के लिए आवश्यक होना, इस कोर्स की यूएसपी (USP) बन चुकी है। कॉलेज संचालक इस सुविधा का मनमाफिक फायदा उठाकर छात्रों से मोटी फीस वसूल रहे हैं और कॉलेज नहीं आने की सुविधा के लिए अलग से पैसा भी ले रहे हैं। हमने जून 2024 में बीएड कॉलेजों में हो रहे फर्जीवाड़े पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसके बाद अब जांच शुरू हुई है। शुरुआती जांच में ही सामने आया है कि बीएड कॉलेजों में सबसे अधिक धांधली हो रही है।
पूनम शर्मा
दैनिक सदभावना पाती
भोपाल /इंदौर। हाल ही में ग्वालियर क्षेत्र के बीएड कॉलेजों की मान्यता को लेकर कई मामले सामने आए हैं, जहां फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एनसीटीई (NCTE) से मान्यता और जीवाजी विश्वविद्यालय से सम्बद्धता ली गई। इन कॉलेजों की हकीकत यह है कि वे सिर्फ कागजों पर संचालित हैं। जब जांच टीमों ने इन कॉलेजों का दौरा किया तो वहां न स्टाफ मिला और न ही छात्र। बिना नियमित फैकल्टी, बिना नियमित छात्रों, बिना हॉस्टल, बिना नियमों के केवल कागजों पर कॉलेज चलाए जा रहे हैं।
दैनिक सदभावना पाती के पास कई कॉलेजों से बातचीत के साक्ष्य सुरक्षित हैं जहाँ कॉलेज द्वारा साफ़ साफ़ छात्रों को नॉन अटेंडिंग (डमी) एडमिशन देने की बात की जा रही है। डमी एडमिशन के जरिए प्रदेशभर में करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति भी निकाली जा रही है। इसमें विश्वविद्यालय, एनसीटीई और आदिवासी विकास विभाग की संलिप्तता स्पष्ट दिख रही है। यह घोटाला कई वर्षों से बिना किसी रोक-टोक के चल रहा है। स्थिति यह है कि “हींग लगे न फिटकरी, रंग चौखा हो जाए।”
भोपाल और इंदौर फर्जीवाड़े के हॉटस्पॉट
ग्वालियर के बाद सबसे अधिक घोटाले भोपाल और इंदौर में हो रहे हैं। इंदौर में ही 30 से अधिक कालेज हैं, कुछ कॉलेज संचालकों के पास दर्जनों संस्थान हैं और कई संस्थान एक ही बिल्डिंग में संचालित किए जा रहे हैं। इंदौर के एक संस्थान में अलग-अलग नामों से कॉलेजों की मंडी बना दी गई है। राजनीतिक रसूख और प्रशासन की लापरवाही के चलते इन घोटालों पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। अब आर्थिक अपराध ब्यूरो (EOW) ने जांच शुरू कर दी है और प्रदेश के विश्वविद्यालयों को 7 दिनों के भीतर बीएड कॉलेजों के दस्तावेज सौंपने के निर्देश दिए हैं। दोषी संचालकों को जेल भेजने की तैयारी भी की जा रही है।
ईओडब्ल्यू (EOW) का सख्त रुख
आर्थिक अपराध ब्यूरो ने स्पष्ट कर दिया है कि इस जांच को अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। इंदौर के कुछ कॉलेज संचालकों की गड़बड़ियां सामने आई हैं, जहां उन्होंने अपने ही एमएड करने वाले छात्रों को फैकल्टी दिखाया और उनके नाम से वेतन जारी किए बिना ही हड़प लिया। इन संचालकों के इंदौर, सेंधवा, धार, खरगोन, राजगढ़, देवास और बड़वानी में भी बीएड कॉलेज संचालित हो रहे हैं। ईओडब्ल्यू इन सभी फर्जी शिक्षकों को जेल भेजने की योजना बना रही है, जो सिर्फ कागजों पर कॉलेजों में कार्यरत हैं, जबकि वास्तविकता में वे कहीं और कार्य कर रहे हैं। विश्वविद्यालयों से मांगी गई जानकारी में ऐसे शिक्षकों के फोन नंबर और अन्य विवरण भी शामिल हैं।
आगे क्या होगा?
जांच की गति को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि यह घोटाला व्यापमं और नर्सिंग घोटाले से भी बड़ा साबित होगा। सरकार और प्रशासन यदि इस पर सख्त कार्रवाई करता है, तो शिक्षा जगत में यह एक बड़ा सुधार साबित हो सकता है। अब देखना होगा कि जांच कितनी निष्पक्ष होती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है।
अगले अंक में पढ़िए: इस घोटाले पर जिम्मेदारों की प्रतिक्रिया, इंदौर और उज्जैन संभाग के किन-किन कॉलेजों की मिली संलिप्तता, और कैसे खुलेआम उड़ाई जा रही हैं नियमों की धज्जियां!