लेखिका- निर्मल रानी
हमारे देश में इन दिनों स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ ‘अमृत महोत्सव ‘ के रूप में मनाने की ज़ोरदार तैय्यारी चल रही है। हर घर तिरंगा – घर घर तिरंगा फहराने का राष्ट्रव्यापी अभियान पूरे देश में सरकारी स्तर पर भी चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 31 जुलाई को अपने लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 91वें एपिसोड में देश के लोगों से तिरंगा फहराने के राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा बनने की न केवल अपील की बल्कि इसके अनेक उपाय भी सुझाये। प्रधानमंत्री ने देशवासियों को यह भी बताया कि वे किस तरह फ़ेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे अपने एकाउंट्स हैंडल्स पर अपनी डीपी बदलकर तिरंगा झण्डा को डी पी के तौर पर लगाकर तिरंगा फहराने के राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा बनें। उन्होंने यहाँ तक कहा कि देशवासी 13 अगस्त से 15 तक घर घर तिरंगा अभियान को एक जन आंदोलन का रूप दें। देश में फैली भयंकर मंहगाई, बेरोज़गारी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अनिश्चितता के वर्तमान दौर में जबकि अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपया रिकार्ड स्तर तक गिर चुका है। प्रतिभाशाली भारतीय युवा स्वतंत्र भारत के इतिहास में रिकॉर्ड स्तर पर देश से पलायन कर अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में विदेशों में जा रहे हों, तमाम विदेशी उद्योग धंधे भारत से अपना कारोबार समेट कर दूसरे देशों का रुख़ कर रहे हों, इन हालात में अनेक सत्ता विरोधी दल व इनके नेता तिरंगा फहराने के राष्ट्रव्यापी अभियान पर सवाल भी खड़ा कर रहे हैं।
इधर 31 जुलाई को प्रधानमंत्री की देशवासियों से तिरंगा झंडा फहराने की अपील मन की बात में प्रसारित होती है उधर इसके अगले ही दिन मध्य प्रदेश के जबलपुर में दमोह नाका शिवनगर स्थित न्यू लाइफ़ मल्टी स्पेशलिटी नामक एक निजी अस्पताल में भीषण आगज़नी की घटना दरपेश आती है। ख़बरों के अनुसार इस हादसे में अब तक 10 लोगों के आग से झुलसकर मरने तथा लगभग आधा दर्जन लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है। समाचार यह भी है कि अपनी जान गंवाने वाले लोगों में ज़्यादातर अस्पताल स्टाफ़ के वह लोग हैं जो मरीज़ों के लिये किसी भगवान से कम नहीं समझे जाते। और यह वही वर्ग भी है जिसके सम्मान में कोरोना काल में प्रधानमंत्री ने पूरे अस्पतालों में बैण्ड बजवाकर इनके साहस, मेहनत व तपस्या को सराहा था। अस्पताल में ज़िंदा जलने वाला यह उसी स्टाफ़ का हिस्सा था जिनपर सेना के हैलीकॉप्टर्स ने पुष्प वर्षा की थी। जबलपुर के इस न्यू लाइफ़ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में हुए अग्निकांड के विषय में भी वही बताया गया जो प्रायः अधिकांश आग लगने की घटनाओं के लिये बताया जाता है। यानी यह आग भी बिजली के शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी जो कि ग्राउंड फ़्लोर से शुरू होकर तीसरी मंज़िल तक बहुत तेज़ी से फैल गई। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगज़नी की इस घटना पर दुख जताया और जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को 5-5 लाख रुपये की मदद दिये जाने तथा गंभीर रूप से घायल लोगों को 50-50 हज़ार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की। साथ ही घायलों के संपूर्ण इलाज का ख़र्च राज्य सरकार द्वारा किये जाने का भी वादा किया। पहले भी इस तरह की घटनाओं के बाद राज्य सरकारें इसी तरह की घोषणायें कर अग्निकांड प्रभावित परिवारों के आंसू पोछने का प्रयास करती रही हैं।
परन्तु स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव काल में जब हर घर तिरंगा फहराने की अपील न केवल सरकारी बल्कि प्रधानमंत्री स्तर पर की जा रही हो क्या यह पूछा जाना प्रासंगिक नहीं है कि देश की जिस जनता को सब्ज़ बाग़ दिखाकर यह जताया जा रहा हो कि ‘सब कुछ चंगा है ‘, हम विश्व की पांच बड़ी महाशक्तियों को पछाड़ते हुए एक बार फिर विश्वगुरु बनने जा रहे हैं, आख़िर उस देश में अस्पतालों में अपना इलाज कराने व वहां से स्वस्थ होकर वापस आने की आस रखने वाले लोगों की अगर ज़िंदा जलकर मौत होने लगे, तो देश के लिये इससे दुखद व भयानक और क्या हो सकता है? जिस अस्पताल स्टाफ़ पर फूल बरसाये जायें, जिनकी शान में थाली, ताली, चम्मच व कड़छी खड़काई जायें और उसी स्टाफ़ की जान अपने ही अस्पतालों में असुरक्षित हो इससे बड़ा दुर्भाग्य व त्रासदी और क्या हो सकती है?
कभी गुजरात के भरूच में कोविड अस्पताल में आग लग जाने से आईसीयू में भर्ती क़रीब 20 कोरोना मरीज़ों की जलने से मौत हो जाती है और मुख्यमंत्री मुआवज़े का एलान कर अपना फ़र्ज़ पूरा कर बैठते हैं। 26 अप्रैल 2021 को गुजरात के सूरत मे आयुष अस्पताल की पांचवीं मंज़िल पर स्थित आइसीयू में शॉर्ट-सर्किट के चलते आग लगती है तो कभी महाराष्ट्र के डा. ज़ाकिर हुसैन अस्पताल में ऑक्सीजन टैंक लीक होता है । इसे रोकने के लिए मरीज़ों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कुछ समय के लिए रोक दी गई। इसके कारण वेंटिलेटर के सहारे चल रहे 24 कोरोना मरीज़ों की जानें चली गयीं । इनमें 11 महिलाएं और इतने ही पुरुष शामिल थे। इसी तरह 10 जनवरी 2021 को महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले के जनरल अस्पताल की स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट में लगी आग में 10 नवजात शिशु की मौत हो गयी । यह आग भी शार्ट-सर्किट के कारण लगी बताई गयी थी। इसके अलावा 26 मार्च को मुंबई के भांडुप उपनगर स्थित ड्रीम्स माल में चौथी मंज़िल पर चल रहे कोविड विशेष अस्पताल में आग लगने से 10 रोगियों को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह 17 अप्रैल 202 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक कोरोना सेंटर में अचानक लग गयी थी। इस घटना में चार लोगों की मौत हो गई। ऐसी अनेकानेक घटनायें हमारे देश में आये दिन होती ही रहती हैं। परन्तु अफ़सोस कि हम इस अमृत महोत्सव काल तक भी जनता को शत प्रतिशत सुरक्षित अस्पताल देने की स्थिति में नहीं पहुँच सके।
सरकार की प्राथमिकता तो यह होनी चाहिये कि जिन देशवासियों से वह घर घर झण्डा फहराने की अपील कर स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में भागीदारी करने के लिये आह्वान कर रही है उन्हीं देशवासियों को शत प्रतिशत सुरक्षा प्रदान कर उन्हें यह विश्वास भी दिलाये कि स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव काल में देशवासी तथा देश के सभी अस्पताल पूर्णतः सुरक्षित हैं। सुरक्षा के जितने भी मानक हों उन्हें देश के प्रत्येक अस्पतालों में सुनिश्चित किया जाये अन्यथा अस्पतालों के लाइसेंस रद्द किये जायें। ज़ाहिर है यदि किसी भी अस्पताल में आगज़नी की घटना में किसी मरीज़ या अस्पताल स्टाफ़ की जलकर मौत होती है तो उसका ज़िम्मेदार मरीज़ या स्टाफ़ तो हरगिज़ नहीं? फिर आख़िर व्यवस्था की लापरवाही या अनदेखी अथवा कामचोरी का ख़मियाज़ा यह लोग क्यों भुगतें? अस्पतालों को तो जीवन रक्षक बनना चाहिये न कि मौत का पर्याय?
इधर 31 जुलाई को प्रधानमंत्री की देशवासियों से तिरंगा झंडा फहराने की अपील मन की बात में प्रसारित होती है उधर इसके अगले ही दिन मध्य प्रदेश के जबलपुर में दमोह नाका शिवनगर स्थित न्यू लाइफ़ मल्टी स्पेशलिटी नामक एक निजी अस्पताल में भीषण आगज़नी की घटना दरपेश आती है। ख़बरों के अनुसार इस हादसे में अब तक 10 लोगों के आग से झुलसकर मरने तथा लगभग आधा दर्जन लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है। समाचार यह भी है कि अपनी जान गंवाने वाले लोगों में ज़्यादातर अस्पताल स्टाफ़ के वह लोग हैं जो मरीज़ों के लिये किसी भगवान से कम नहीं समझे जाते। और यह वही वर्ग भी है जिसके सम्मान में कोरोना काल में प्रधानमंत्री ने पूरे अस्पतालों में बैण्ड बजवाकर इनके साहस, मेहनत व तपस्या को सराहा था। अस्पताल में ज़िंदा जलने वाला यह उसी स्टाफ़ का हिस्सा था जिनपर सेना के हैलीकॉप्टर्स ने पुष्प वर्षा की थी। जबलपुर के इस न्यू लाइफ़ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में हुए अग्निकांड के विषय में भी वही बताया गया जो प्रायः अधिकांश आग लगने की घटनाओं के लिये बताया जाता है। यानी यह आग भी बिजली के शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी जो कि ग्राउंड फ़्लोर से शुरू होकर तीसरी मंज़िल तक बहुत तेज़ी से फैल गई। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगज़नी की इस घटना पर दुख जताया और जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को 5-5 लाख रुपये की मदद दिये जाने तथा गंभीर रूप से घायल लोगों को 50-50 हज़ार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की। साथ ही घायलों के संपूर्ण इलाज का ख़र्च राज्य सरकार द्वारा किये जाने का भी वादा किया। पहले भी इस तरह की घटनाओं के बाद राज्य सरकारें इसी तरह की घोषणायें कर अग्निकांड प्रभावित परिवारों के आंसू पोछने का प्रयास करती रही हैं।
परन्तु स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव काल में जब हर घर तिरंगा फहराने की अपील न केवल सरकारी बल्कि प्रधानमंत्री स्तर पर की जा रही हो क्या यह पूछा जाना प्रासंगिक नहीं है कि देश की जिस जनता को सब्ज़ बाग़ दिखाकर यह जताया जा रहा हो कि ‘सब कुछ चंगा है ‘, हम विश्व की पांच बड़ी महाशक्तियों को पछाड़ते हुए एक बार फिर विश्वगुरु बनने जा रहे हैं, आख़िर उस देश में अस्पतालों में अपना इलाज कराने व वहां से स्वस्थ होकर वापस आने की आस रखने वाले लोगों की अगर ज़िंदा जलकर मौत होने लगे, तो देश के लिये इससे दुखद व भयानक और क्या हो सकता है? जिस अस्पताल स्टाफ़ पर फूल बरसाये जायें, जिनकी शान में थाली, ताली, चम्मच व कड़छी खड़काई जायें और उसी स्टाफ़ की जान अपने ही अस्पतालों में असुरक्षित हो इससे बड़ा दुर्भाग्य व त्रासदी और क्या हो सकती है?
कभी गुजरात के भरूच में कोविड अस्पताल में आग लग जाने से आईसीयू में भर्ती क़रीब 20 कोरोना मरीज़ों की जलने से मौत हो जाती है और मुख्यमंत्री मुआवज़े का एलान कर अपना फ़र्ज़ पूरा कर बैठते हैं। 26 अप्रैल 2021 को गुजरात के सूरत मे आयुष अस्पताल की पांचवीं मंज़िल पर स्थित आइसीयू में शॉर्ट-सर्किट के चलते आग लगती है तो कभी महाराष्ट्र के डा. ज़ाकिर हुसैन अस्पताल में ऑक्सीजन टैंक लीक होता है । इसे रोकने के लिए मरीज़ों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कुछ समय के लिए रोक दी गई। इसके कारण वेंटिलेटर के सहारे चल रहे 24 कोरोना मरीज़ों की जानें चली गयीं । इनमें 11 महिलाएं और इतने ही पुरुष शामिल थे। इसी तरह 10 जनवरी 2021 को महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले के जनरल अस्पताल की स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट में लगी आग में 10 नवजात शिशु की मौत हो गयी । यह आग भी शार्ट-सर्किट के कारण लगी बताई गयी थी। इसके अलावा 26 मार्च को मुंबई के भांडुप उपनगर स्थित ड्रीम्स माल में चौथी मंज़िल पर चल रहे कोविड विशेष अस्पताल में आग लगने से 10 रोगियों को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह 17 अप्रैल 202 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक कोरोना सेंटर में अचानक लग गयी थी। इस घटना में चार लोगों की मौत हो गई। ऐसी अनेकानेक घटनायें हमारे देश में आये दिन होती ही रहती हैं। परन्तु अफ़सोस कि हम इस अमृत महोत्सव काल तक भी जनता को शत प्रतिशत सुरक्षित अस्पताल देने की स्थिति में नहीं पहुँच सके।
सरकार की प्राथमिकता तो यह होनी चाहिये कि जिन देशवासियों से वह घर घर झण्डा फहराने की अपील कर स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में भागीदारी करने के लिये आह्वान कर रही है उन्हीं देशवासियों को शत प्रतिशत सुरक्षा प्रदान कर उन्हें यह विश्वास भी दिलाये कि स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव काल में देशवासी तथा देश के सभी अस्पताल पूर्णतः सुरक्षित हैं। सुरक्षा के जितने भी मानक हों उन्हें देश के प्रत्येक अस्पतालों में सुनिश्चित किया जाये अन्यथा अस्पतालों के लाइसेंस रद्द किये जायें। ज़ाहिर है यदि किसी भी अस्पताल में आगज़नी की घटना में किसी मरीज़ या अस्पताल स्टाफ़ की जलकर मौत होती है तो उसका ज़िम्मेदार मरीज़ या स्टाफ़ तो हरगिज़ नहीं? फिर आख़िर व्यवस्था की लापरवाही या अनदेखी अथवा कामचोरी का ख़मियाज़ा यह लोग क्यों भुगतें? अस्पतालों को तो जीवन रक्षक बनना चाहिये न कि मौत का पर्याय?