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तेल देखो…. तेल की धार देखो 

मौजूदा चुनाव परिणामों से भविष्य की कल्पना गलत….!

  (लेखक– ओमप्रकाश मेहता)
हमारे परम्परावादी देश में ‘कल्पना’ या ‘सुखद भविष्य के सपने’ विशेष महत्व रखते है और कई क्षेत्रों में हम हमारी इसी परम्परा के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्पद्र्धाओं में पिछड़ भी रहे है। हम हमारी छोटी सी उपलब्धि को भविष्य का संकेत मान यथार्थ के धरातल से अपने आपको ऊँचा कर गर्व से दुनिया की ओर देखने लगते है, जबकि वर्तमान व भविष्य की चुनौतियों में मौजुदा उपलब्धि का सही आंकलन नहीं करते।

मेरे इस तर्क को यदि ताजा उदाहरण देकर समझाया जाए तो वह अधिक सहज हो जाएगा। हाल ही में सम्पन्न पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणामों से प्रोत्साहित होकर देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी भविष्य के सुनहरे सपनों में खो गई है और दो साल बाद 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के सुखद परिणामों की कल्पना में खो गई है, जबकि सभी को ज्ञात है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले करीब दस और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होना है और इन राज्यों की विधानसभाओं के भी उत्तरप्रदेश जैसे चुनाव परिणाम आएं, ये कोई जरूरी नहीं है। वैसे 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले राज्यसभा के अहम्् चुनाव होना है और ये राज्यसभा के चुनाव देश के भावी राष्ट्रपति का भविष्य तय करेगें इसलिए फिलहाल केवल पांच राज्यों के परिणामों के आधार पर देश के राजनीतिक भविष्य की कल्पना करना कतई ठीक नहीं है।

इसी सन्दर्भ में यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि चूंकि देश से कांग्रेस का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो रहा है और उसे ही चूंकि प्रमुख प्रतिपक्षी दल माना जाता रहा है इसलिए भी यह कल्पना की जा रही है कि मोदी जी की भाजपा के सामने वर्तमान व भविष्य में कोई चुनौति नहीं है, किंतु भाजपा का यह विचार ‘दिवास्वप्न’ भी बन सकता है, यदि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी अपने कांग्रेस विहीन मजबूत प्रतिपक्ष के अपने इरादों में सफल हो जाती है। फिर ममता बैनर्जी को पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा का भी साथ मिला हुआ है और संभव है भविष्य में चुनौति के समय वरिष्ठ प्रतिपक्षभ् नेता शरद पवार भी साथ है पवार, ममता व देवगौड़ा की तिकड़ी देश का राजनीतिक नक्शा बदल भी सकती है। हम पिछले राष्ट्रपति चुनाव का ही उदाहरण सामने रख सकते है, 2017 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी भाजपा के पास थे, इस वजह से भाजपा उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की जीत आसान हो गई लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, फिर राष्ट्रपति चुनाव के लिए क्षेत्रिय दलों ने लामबंदी अभी से शुरू भी कर दी है। फिर राष्ट्रपति चुनाव तो फिर भी वर्तमान पार्टी क्षमता पर निर्भर है, इसलिए एक बार यह माना भी जा सकता है कि तब तक इन पांच राज्यों में होने वाले राज्यसभा चुनावों से भाजपा प्रत्याशी की तकदीर संवर सकती है, किंतु निकट भविष्य में ही पन्द्रह और राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है इसलिए 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद की राजनीतिक तस्वीर की कल्पना फिलहाल कैसे की जा सकती है, जरूरी नहीं कि भावी चुनाव वाले सवा दर्जन राज्यों में भी विधानसभा चुनावों के समय ‘‘मोदी मैजिक’’ चल पाये? ….और यह तो सभी को पता है कि भारत का राजनैतिक परिदृष्य बदलने मे ंकोई ज्यादा समय नहीं लगता यहां तो कुछ घण्टों में ही सरकारें बदलने का भी इतिहास रहा है इसलिए मौजूदा परिदृष्य के आधार पर दो साल बाद के भी परिदृष्य की कल्पना कैसे की जा सकती है और देश में सत्तारूढ़ दल सुनहरे दिवास्वप्न में खो सकता है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनावों से पहले गुजरात-हिमाचल (2022) तथा मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैण्ड राज्यों में विधानसभा चुनाव सम्पन्न होना है। ….और इन दस राज्यों में भी भाजपा उत्तरप्रदेश की तर्ज पर परिणाम प्रस्तुत करें, यह जरूरी तो नहीं है, फिर जहां तक प्रतिपक्षी कांग्रेस दल का सवाल है, मौजूदा व्यापक हार के बाद उसकी भी छटपटाहट बढ़ गई है और वह जाग्रत हो गई है, वह अगले दो साल में अपने आपको कितना मजबूत करती है? यह भी एक प्रमुख मुद्दा है, इसलिए मौजूदा विधानसभा चुनावों के परिणामों के आधार पर फिलहाल 2024 के परिदृष्य की कल्पना करना कतई ठीक नहीं होगा। फिलहाल तो देश के सत्तारूढ़ दल को भी 2024 की कल्पना छोड़ राज्यसभा चुनावों व राष्ट्रपति के चुनाव के बारे में ही गंभीर चिंतन करना चाहिए, क्योंकि भारत में राजनीतिक परिदृष्य बदलने का इतिहास हमेशा अपने आप को दोहराता आया है।
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