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मप्र विधानसभा चुनाव : बीजेपी कांग्रेस सहित सभी पार्टियों कर रही सुप्रीम कोर्ट की अवमानना

  • प्रत्याशी घोषणा के 48 घंटे के भीतर सोशल मीडिया,वेबसाइट, समाचार पत्र, टीवी आदि में करवाना था प्रत्याशियों का अपराधिक रिकॉर्ड और उनके चुने जाने के पीछे, कारण का प्रकाशन
  • नहीं प्रकाशित करवाया प्रत्याशियों का आपराधिक रिकॉर्ड और दूसरे प्रत्याशियों के मुकाबले उनके चुने जाने का कारण

डॉ. देवेंद्र मालवीय – 9827622204

MP Vidhan Sabha Chunav 2023. राजनीतिक दलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की अवहेलना और उसकी मनमानी व्याख्या सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्ष और उनके पदाधिकारियों के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। मामला इन दलों के आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों से जुड़ा हुआ है। फैसले के मुताबिक राजनीतिक दलों को ऐसे दागी प्रत्याशियों से जुड़ी जानकारी उनके नाम की घोषणा के 48 घंटे के भीतर सार्वजनिक करना थी। अभी तक किसी भी दल ने इस आदेश का पालन नहीं किया है ऐसे में इन दलों के पदाधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट अवमानना का मुकदमा दर्ज हो सकता है.

अगस्त 2021 में आया सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला सभी राजनीतिक दलों के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है, फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी दल प्रत्याशी चुने जाने के 48 घंटे के भीतर, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों की जानकारी राष्ट्रीय व स्थानीय अखबारों, आधिकारिक वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रकाशित करें। यही नहीं सभी राजनीतिक दलों को यह भी बताना था कि दूसरे दावेदारों के बजाय आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी को ही क्यों चुना गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि जो दल सार्वजनिक रूप से जानकारी प्रकाशित नहीं करवाते हैं उनकी सूचना 72 घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट को दी जाए। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया था कि दलों द्वारा इस निर्देश का पालन न करने की स्थिति में उन पर अवमानना का मामला दर्ज किया जाएगा।

राजनीतिक पार्टियों का यह है कहना –

यही नहीं इलेक्शन कमीशन को भी एक ऐसा मोबाइल ऐप विकसित करने के लिए कहा गया था जिसमें मतदाता एक क्लिक पर प्रत्याशियों पर दर्ज आपराधिक मामलों और पार्टी ने दूसरे दावेदारों के मुकाबले उसे ही क्यों चुना, इसका कारण जान सके। पिछले 15 दिनों में सभी पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा तो कर दी है लेकिन किसी ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है। अब इन सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों पर अवमानना की कार्रवाई की तलवार लटक रही है।

हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों इस फैसले की अपने अपने हिसाब से व्याख्या कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रत्याशी की घोषणा के 48 घंटे के भीतर जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना संभव नहीं है । प्रत्याशी बदलते रहते हैं इसलिए वह ‘बी’ फार्म जारी होने के बाद प्रत्याशियों पर दर्ज मामलों का सार्वजनिक प्रकाशन करवाएंगे।

दल भले ही अपने हिसाब से व्याख्या कर रहे हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश में “बी” फार्म का जिक्र नहीं है। आदेश में बहुत स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि नामांकन दाखिल करने की प्रथम तारीख, के दो सप्ताह पहले से लेकर प्रत्याशी की घोषणा के 48 घंटे के भीतर ही यह प्रकाशन करवाना होगा। प्रदेश निर्वाचन का भी यही कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश बहुत स्पष्ट है और इस संबंध में जिम्मेदार दलों पर विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी

बीजेपी समेत इन दलों पर भी लगा था जुर्माना

बिहार के विधानसभा चुनाव में एससी ने 2021 के अपने आदेश में भाजपा के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर भी जुर्माना लगाया था। इन दोनों दलों को 5-5 लाख रुपये का जुर्माना भरना था। इसके अलावा कांग्रेस और जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी पर 1-1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इस फैसले के दौरान अदालत ने मतदाताओं के सूचना के अधिकार को अधिक प्रभावी और सार्थक बनाने की जरूरत पर जोर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को दिए थे ये निर्देश
  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा था कि सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी डालें, होम पेज पर अलग से दर्शाना होगा।
  • अदालत ने चुनाव आयोग से भी कहा कि वो इस तरह के ऐप बनाएं, जहां मतदाता ऐसी जानकारियां आसानी से देख सकें।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि प्रत्येक पार्टी प्रत्याशी चुनने के 48 घंटे के भीतर उसका आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित करवाए।
  • आदेश का पालन न होने पर आयोग को सुप्रीम कोर्ट को सूचित करने का आदेश दिया गया था।
  • दागियों के मामले हाईकोर्ट की अनुमति के बगैर वापस नहीं होंगे।
    कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया था कि उम्मीदवार को चुनने का कारण उसकी योग्यता, उपलब्धियां, और मेरिट हो सकती है। सिर्फ जिताऊ होना आधार नहीं हो सकता।
सभी पार्टियों को इस बारे में अवगत करवाया गया है, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार कंटेम्प्ट की नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी - अनुपम राजन, मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना सभी पार्टियों के लिए जरूरी है, अभी तक पार्टियों ने इसका पालन नहीं किया है ये माननीय उच्चतम न्यायालय की अवहेलना है. पालन न होने पर हम इसको उच्च न्यायालय के समक्ष ले जायेगें - गोविन्द पुरोहित अधिवक्ता (उच्च न्यायालय) इंदौर
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