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अमेरिका और डालर की दादागिरी समाप्ति की ओर

 (लेखक- सनत जैन)

– रुस-चीन और भारत होंगे शक्तिशाली देश
– वैश्विक व्यापार संधि एवं प्रतिबंधों का नहीं होगा असर
सारे विश्व की अर्थव्यवस्था एवं तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका से सारी दुनिया के देश भयाक्रांत है। रुस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने अमेरिका और नाटो देशों को सबसे कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से सारी दुनिया के देशों में अमेरिका का वर्चस्व बढ़ता चला गया।
अंतराष्ट्रीय संस्थाओं और डालर मुद्रा के बल पर पिछले 60 सालों में अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश बन गया था। ताकत के बल पर सारी दुनिया में अपने साम्राज्य को फैलाने के लिए 1990 में सोवियत-रुस को तोड़कर अपनी ताकत का डंका बजाने वाला अमेरिका-रुस- यूक्रेन युद्ध के बाद अपने ही जाल में फंसकर फड़फड़ा रहा है।
यूक्रेन के सहारे रुस को कमजोर करने नाटो देश का सदस्य बनाकर जो मकड़जाल अमेरिका ने बुना था। उससे बाहर निकलने का रास्ता अमेरिका और नाटो संगठन के देशों का नहीं मिल रहा है।
पिछले —- दिनों में अमेरिका तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने प्रतिबंधों के माध्यमों से रुस पर नकेल कसने के जो प्रयास किये थे। वह सभी निष्फल साबित हुए है।
उल्टे प्रतिबंधों के कारण दुनिया के कई बड़े देश जिनमें चीन और भारत जैसे शक्तिशाली देश भी रुस के साथ खड़े हो रहे हैं। इससे अमेरिका और नाटो संगठन हतप्रभ है। रुस के खिलाफ जो आर्थिक प्रतिबंध अमेरिका ने लगाये। उससे रुस को कुछ समय के लिए परेशानी जरुर हो रही है। वहीं अमेरिका का अस्तित्व और नाटो संगठन के बिखराव का नया खतरा पैदा हो गया है।
चीन की कूटनीति से रुस मजबूत
अमेरिका ने चीन को प्रतिबंध लागू करने और रुस की सहायता नहीं करने का भारी दबाव बनाया है। चीन अमेरिका के दबाव में नहीं आया। उल्टे चीन की कूटनीति से अमेरिका का संकट बढ़ता ही जा रहा है।
इलेक्ट्रानिक उपकरण एवं दवाईयां
चीन इलेक्ट्रानिक वस्तुओं एवं दवाईयों के निर्माण में बेसिक साल्ट का सबसे बड़ा निर्यातक है। चीन ने कोरोना की आड़ लेकर लाक-डाउन लगाकर सारी दुनिया के देशों का निर्यात रोक दिया है। चीन के इस निर्णय से अमेरिका और यूरोपीय देशों का संकट बढ़ गया है। महंगाई बढ़ी है, जरुरी सामानों की कमी शुरु हो गई है।
तेल और गैस की कमी
प्रतिबंधों के चलते यूरोपीय देशों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है। रुस से लगभग 42 फीसदी गैस एवं कच्चे तेल का निर्यात यूरोपीय देशों में होता था। प्रतिबंध के कारण यूरोपीय देशों की सप्लाई प्रभावित हुई है। आने वाले कुछ दिनों में यूरोपीय देशों को एनर्जी संकट का सामना करना पड़ेगा। इससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होगा। यूरोपीय देशों में घरों को गर्म रखने के लिए बड़ी मात्रा में रुसी प्राकृतिक गैस का उपयोग होता है। जो अब उपलब्ध नहीं हो रही है।
डालर की दादागिरी खत्म होगी?
अमेरिका ने रुस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ डिजिटल देनदेन पर रोक लगा दी है। प्रारंभिक स्तर पर रुस को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। रुस ने झुकने के स्थान पर रुबल और व्यापार करने वाले देशों के साथ उनकी मुद्रा में लेनदेन करने तथा डिस्काउंट देने के कारण अब रुस के साथ व्यापार करने वाले देश रुबल मुद्रा में समझौते और व्यापार करने लगे है। इससे अमेरिका और डालर मुद्रा के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है।
भारत जो अपनी जरुरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। रुस के साथ भारत ने 25 फीसदी छूट के साथ रुबल मुद्रा में भुगतान करने का समझौता किया है। इस समझौते से भारत एवं रुस के बीच व्यापार काफी तेजी के साथ बढ़ेगा यही हाल चीन का है। ऐसी स्थिति में डालर मुद्रा को सबसे बड़ी चुनौती मिलना शुरु हो गई है।
वैश्विक व्यापार संघि एवं भुगतान माडल पर बदलाव?
अमेरिका ने जिस तरह से रुस पर प्रतिबंध लगाते हुए उसकी सम्पत्तियां एंव लेनदेन को रोकने का काम किया है। उससे अमेरिका की दादागिरी को लेकर अन्य निर्गुट देशों पर इसका असर देखने को मिल रहा है। एशियाई देश अपने व्यापार व्यवसाय सुरक्षा इत्यादि को देखते हुए क्षेत्रीय आधार पर स्वालम्बी बनने की दिशा में सोचने विवश हुए है।
अपने ही जाल में फंसा अमेरिका
सोबियत रुस को तोड़ने के बाद पिछले 30 बर्षों में अमेरिका ने एकछत्र राज्य किया है। वैश्विक व्यापार संघि का सबसे ज्यादा लाभ अमेरिका ने उठाया। उसके बाद से अमेरिका एवं नाटो देश रुस-चीन- भारत-जापान एवं खाड़ी देशों में अपना प्रभुत्व बढ़ाने का काम कर रहे थे। सोबियत रुस का विघटन देखने के बाद रुस ने भी आर-पार की लड़ाई-लड़ने का मन बना लिया है।
नहीं चलेगी अमेरिकी दादागिरी
पिछले तीन दशक में रुस-भारत-चीन-जापान-उत्तरकोरिया सहित दर्जनों देश परमाणु हथियोरों से लेस है। नाटो देशों के माध्यम से अमेरिका से मिलने वाली चुनौतियों के साथ पड़ोसी देशों से सुरक्षा की दृष्टि से सारी दुनिया के बड़े देश आत्मनिर्भर है। ऐसी स्थिति में अमेरिका ने यूक्रेन को लेकर रुस को कमजोर करने की जो रणनीति बनाई थी। वह बुरी तरह फ्लाप होकर रह गई है।
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