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56 लाख मुकदमे लंबित, फिर भी.. 25 में से 7 हाईकोर्ट में आधे जज भी नहीं, नई नियुक्ति नहीं तो 6 महीने में 50% खाली हो जाएंगे 12 हाई कोर्ट -अगले 6 महीने में ही रिटायर हो जाएंगे 60 हाई कोर्ट जस्टिस

56 लाख मुकदमे लंबित, फिर भी.
25 में से 7 हाईकोर्ट में आधे जज भी नहीं, नई नियुक्ति नहीं तो 6 महीने में 50% खाली हो जाएंगे 12 हाई कोर्ट
अगले 6 महीने में ही रिटायर हो जाएंगे 60 हाई कोर्ट जस्टिस
2021 मे रिटायर होंगे 90 जज, तो खत्म हो रहा 60 एडिशनल जज का भी कार्यकाल 2020 में सिर्फ 50 नए जज,पिछले 4 सालों में सबसे कम
1079 स्वीकृत पदों के मुकाबले सिर्फ 661 न्यायमूर्ति, फिलहाल 40% पद खाली 56 लाख पहुंची हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या, इसमें 16 लाख मामले आपराधिक

[expander_maker id=”1″ more=”Read more” less=”Read less”] देश के 25 उच्च न्यायालयों में छप्पन लाख से से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। लेकिन इनमें से 7 में आधे जज भी नहीं हैं। यदि नई नियुक्तियां नहीं हुई तो कार्यकाल खत्म होने चलते अगले 6 महीने में इनकी संख्या 12 हो जाएगी। इसके बावजूद हालात यह है कि स्वीकृत 1079 पदों के मुकाबले जजों की संख्या महज 661 रह गई है इसके बावजूद 2020 में सिर्फ 50 जजों की ही नियुक्ति हो पाई जो कि पिछले 4 सालों में सबसे कम है।
वर्ष 2021 और भयावह हालात के संकेत दे रहा है। इस वर्ष जहां 90 जज रिटायर हो रहे हैं तो कार्यकाल खत्म होने के कगार पर बैठे 60 एडिशनल जजों को परमानेंट भी किया जाना है।यदि नियुक्ति के मोर्चे पर जरा भी ढिलाई हुई तो मौजूदा 40% कमी का आंकड़ा 50% पहुंचते देर नहीं लगेगी। जजों की कमी के चलते दो साल पहले तक प्रति जज, 6700 लंबित मुकदमों का औसत 8500 तक पहुंच गया है। फिलहाल 25 उच्च न्यायालयों में रोजाना लगभग 45 हजार मुकदमें लिस्ट होते हैं। यदि मौजूदा स्वीकृत पद भी भर जाएं तो रोजाना लगभग 70 हजार मुकदमों की सुनवाई हो सकेगी।
आखिर क्या है कमी का कारण :
35% नाम नामंजूर कर देता है सुप्रीम काेर्ट काॅलेजियम
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाई कोर्ट कॉलेजियम से आई लगभग 35% अनुशंसा अस्वीकृत कर देता है। केंद्र सरकार भी कई मामलों में नाम अस्वीकृत कर वापस सुप्रीम कोर्ट के पास भेज देता है। पिछले वर्ष ही 20 से ज्यादा नाम ऐसे थे जिनकी कॉलेजियम द्वारा दोबारा अनुशंसा करने पर भी केंद्र ने प्रस्ताव लंबित रखें।

हाई कोर्ट कॉलेजियम भी जिम्मेदार-
सुप्रीम कोर्ट में इसी मुद्दे को लेकर चल रही सुनवाई में अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल, हाई कोर्ट कॉलेजियम पर भी सवाल उठा चुके हैं। उनके मुताबिक नए जजों के लिए अनुशंसा भेजने के मामले में बॉम्बे, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे कुछ हाई कोर्ट कॉलेजियम का रिकॉर्ड बहुत कमजोर रहा है।

इसलिए भी देरी नियुक्ति प्रक्रिया में लग जाते हैं आठ माह
हाई कोर्ट कॉलेजियम से अनुशंसा मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट इन्हें केंद्र सरकार को भेजने में औसतन 4 माह (119दिन) लगा देता है। नियुक्ति के पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट, शिकायतों आदि की जांच में भी लंबा समय लग जाता है। विधि मंत्रालय भी अनुशंसा राष्ट्रपति के पास भेजने में लगभग इतना ही समय (127 दिन) ले लेता है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि रिक्त पदों का आकलन कर हाईकोर्ट से छह महीने के बजाय साल भर पहले ही प्रस्ताव आने चाहिए। नियुक्ति प्रक्रिया का समय 8 से 6 माह तक भी हो सके तो काफी सुधार हो सकता है।

हर पांचवा मुकदमा मुकदमा 10 साल पुराना
56 लाख लंबित मुकदमों में से लगभग एक लाख, 30 साल से ज्यादा पुराने हैं। वही 4 से 10 साल के बीच के मुकदमों की संख्या 13 लाख है। करीब 20% यानी हर पांचवा लंबित मुकदमा फैसले इंतजार में दशक पार करने की तैयारी में है।
10 लाख पर चाहिए 50 जज है 19
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में हाई कोर्ट जजेस एसोसिएशन की याचिका पर फैसला सुनाते हुए माना था कि हर 10 लाख आबादी पर 50 जज होने चाहिए। जबकि सभी अदालतों को मिलाकर फिलहाल महज 19 जज ही हैं।यही कारण है कि हाईकोर्ट में एक मुकदमे का फैसला आने में औसतन 4 साल निचली अदालतों मे फैसले का औसत समय 7 साल तक पहुंच चुका है।

बढ़ते मुकदमे बेबस न्यायधीश
एक मुकदमे के लिए 5 मिनट भी नहीं
अभी हालात यह है कि हर जज के सामने साढ़े 5 घंटे 100 से 150 मुकदमे लिस्ट होते हैं। जहां पटना, आंध्र प्रदेश,झारखंड, राजस्थान में मुकदमे की सुनवाई के लिए औसतन 2-3 मिनट मिलते हैं वही इलाहाबाद, गुजरात कर्नाटक ,एमपी, उड़ीसा में यह औसत 4-5 मिनट है।[/expander_maker]

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