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हर सांस है कीमती सरकार रहम करे हीरों के लिए हरियाली न छीने.

बकस्वाहा जंगल से 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे निकालने के लिए काटे जाएंगे 2.15 लाख पेड़, बचाने के लिए 50 से अधिक संगठन लामबंद, पेड़ काटे तो होगा चिपको आंदोलन

देशभर के लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘सेव बकस्वाहा फॉरेस्ट’ अभियान शुरू किया है  दरअसल छतरपुर जिले के बकस्वाहा की बंदर हीरा खदान के लिए जंगल काटे जाने का विरोध बढ़ता जा रहा है। सरकार 3.42 करोड़ कैरेट हीरों के लिए इस जंगल के 2.15 लाख पेड़ कटवाने की तैयारी कर रही है। उन्हें बचाने के लिए आंदोलन होने लगा है। 50 से अधिक संस्थान इसके विरोध में लामबंद हुई हैं। फिलहाल, कोरोना संक्रमण को देखते हुए जंगल बचाने का विरोध सोशल मीडिया पर चल रहा है। जैसे ही, संक्रमण की स्थिति में सुधार होगा, लोग बकस्वाहा पहुंचेंगे। यहां जंगल बचाने के लिए जरूरत पड़ी, तो चिपको आंदोलन भी होगा।

बकस्वाहा के जंगल की जमीन में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान है। इन हीरों को निकालने के लिए 382.131 हेक्टेयर का जंगल खत्म किया जाएगा। इस जमीन पर वन विभाग ने पेड़ों की गिनती की, जो 2 लाख 15 हजार 875 पेड़ मिले। इन सभी पेड़ों को काटा जाएगा। इनमें करीब 40 हजार पेड़ सागौन के हैं। इसके अलावा केम, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं।

बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस जगह का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की। आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। प्रदेश सरकार इस कंपनी को 50 यह जमीन साल के लिए लीज पर दे रही है। जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिन्हित किया है। यहीं पर खदान बनाई जाएगी।

कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है। बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जा सके। इस काम में कंपनी 2500 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है।

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दिल्ली की नेहा सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में बकस्वाहा जंगल बचाने के लिए याचिका दायर की है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। उधर, हीरा खदान के लिए 62.64 हेक्टेयर जंगल चिन्हित है। नियम है कि 40 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र के खनन का प्रोजेक्ट है, तो उसे केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय मंजूरी देता है। अभी प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिली है। इधर, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में भी जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें माइनिंग इंडस्ट्रीज से 15 दिनों में स्पष्टीकरण मांगा गया है।

विरोध में आए विधायक, PM मोदी को लिखे पत्र : बकस्वाहा जंगल बचाने के लिए नेता भी सामने आए हैं। सरकार को समर्थन दे रहे बिजावर से समाजवादी पार्टी के विधायक राजेश शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावेड़कर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत सागर संभाग के कमिश्नर और छतरपुर कलेक्टर को पत्र लिखकर पेड़ न काटे जाने की मांग की है। वहीं, बंडा से कांग्रेस विधायक तरवर सिंह लोधी ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल काटे जाने का विरोध किया है।

ऐसे पता चला यहां हीरे हैं  : 2000 से 2005 के बीच बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरा की खोज के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सर्वे ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियो टिंटो ने किया था। सर्वे में टीम को नाले के किनारे किंबरलाइट पत्थर की चट्टान दिखाई दी। हीरा किंबरलाइट की चट्टानों में मिलता है।

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