- कांग्रेस प्रत्याशी गिरजाशंकर शर्मा का कहना है कि कम “परसेंटेज” राज ने रोका होशंगाबाद का विकास, पर मेरा भाई भ्रष्टाचारी नहीं
- 10 साल से विधायक नहीं था तो चल भी नहीं पाता था अब रोज 5-10 किलोमीटर चल रहा
डॉ. देवेंद्र मालवीय – 9827622204
होशंगाबाद। अपनी तमाम धार्मिक सांस्कृतिक बौद्धिक विरासत के बावजूद, होशंगाबाद में मानो विकास बिल्कुल ठहर सा गया है। खासकर जब आप मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी से चंद किलोमीटर दूर नर्मदा पार कर होशंगाबाद में घुसते हैं तो किसी उजड़े हुए शहर का आभास होता है। गलियों में अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जारी है वहां हमें एक महिलाओं का समूह मिल जाता है, इसका साफ कहना है कि “जो हमें पानी देगा वही वोट पाएगा”। गंदगी बदहाली तो सब तरफ एक है लेकिन किसी भी गली में चले जाइए महिलाओं को टोली है, मामा को वोट देने का दावा करती लाडली बहन मौजूद नजर आ जाएगी।
होशंगाबाद में पिछले 20 सालों से एक ही परिवार शर्मा परिवार सत्ता पर काबीज रहा है। पहले गिरजाशंकर शर्मा दो बार भाजपा से विधायक रहे फिर उनके छोटे भाई डॉक्टर सीताशरण शर्मा न सिर्फ विधायक रहे बल्कि विधानसभा अध्यक्ष भी रहे। फिर गिरजा शंकर ने इस चुनाव में पाला बदला और अब वह कांग्रेस से प्रत्याशी हैं।
दैनिक सदभावना पाती से बातचीत में गिरजा शंकर ने दो भाइयों के बीच पार्टीशन के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा मैं तो लड़ना ही नहीं चाहता था। गिरजा शंकर ने हमें पूरी कहानी बताई कि कैसे भाजपा ने धोखे से हम दोनों भाइयों को आमने-सामने लड़ने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने बताया कि 20 साल से एक ही परिवार से दो व्यक्ति बीजेपी से विधायक रहे हैं पर पूरे शहर पर बदहाली और गंदगी काबिज है। जहां कांग्रेस प्रत्याशी गिरजाशंकर शर्मा इसे नर्मदा इस पार और उस पार का सौतेलापन बताते हैं….
वहीं भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर सीताशरण शर्मा विकास को अलग ढंग से परिभाषित करते हुए अपने बड़े भाई गिरजा शंकर के दावे को झूठा बताते हैं।हालांकि सवाल पर वह भी चुप हो जाते हैं कि नर्मदा के उस पार बुधनी की चमक और होशंगाबाद की चमक में इतना अंतर क्यों है..? वह कहते हैं मैं कारण जानता तो हूं पर बता नहीं सकता। कहते हैं डेढ़ लाख आबादी वाले होशंगाबाद की तुलना 20000 की आबादी वाले बुधनी से नहीं की जा सकती, उसे चमकाना आसान है। मुझे दे दीजिए गांव मैं उसे बुधनी से बेहतर बना दूंगा।
मध्य प्रदेश में जहां हर संभाग में आपको जातिवाद अपने चरम पर नजर आएगी वहीं होशंगाबाद शायद एकमात्र ऐसा जिला हो जहां प्रत्याशी जातिगत आधार पर नहीं जीत पाए। इटारसी के नगर पालिका अध्यक्ष पंकज चौरे बताते हैं कि कैसे सिख समाज के एक दो हजार वोट होंगे लेकिन सरताज सिंह हमेशा जीतते रहे। सिवनी मालवा में रघुवंशी समाज के बहुत वोट हैं लेकिन हजारीलाल रघुवंशी हारे। ऐसे ही परिणाम सोहागपुर पिपरिया में भी मिले जहां गुर्जर समाज बहुत आयात में होने के बावजूद उनका प्रत्याशी नहीं जीता।
राह न भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर सीताशरण शर्मा के लिए आसान है और न ही भाजपा से टूट कर आए कांग्रेस प्रत्याशी गिरजाशंकर शर्मा के लिए। प्रदेश के दूसरे इलाकों के मुकाबले यहां जातिवाद का जोर कम रहा है। क्षेत्र में बड़ी संख्या में कुर्मी मतदाता है जो कि निर्णायक रहे हैं लेकिन इस बार कुर्मी समाज के बड़े नेता और भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहे भगवती चौरे बगावत कर निर्दलीय खड़े हो चुके हैं। इसके अलावा भी भाजपा के दूसरे दावेदार रहे कुछ नेता जाहिर तौर पर तो कुछ अंदरूनी तौर पर भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कांग्रेस भी बगावत से अछूती नहीं है। एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट पर एक बड़े मतदाता वर्ग को नाराज कर दिया है। इसलिए कई मायनों में होशंगाबाद इटारसी का चुनाव प्रदेश के बड़े दिलचस्प चुनाव में से एक बन गया है।
होशंगाबाद में मुख्यतः चुनाव की केवल दो ही धुरी है, भाजपा और कांग्रेस… लेकिन भाजपा के बागी निर्दलीय उम्मीदवार भगवती चौरे की उपस्थिति से ठंड के मौसम की चपेट में आते इलाके के राजनीतिक माहौल को थोड़ा गरमा दिया है। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही दलों के असंतुष्टों का केंद्र भगवती बन गए हैं और वह इसे स्वीकारते हुए कहते भी हैं कि हर तरह से भाजपा और कांग्रेस के लोग कुछ सामने आकर तो कुछ दूरी से मेरी मदद कर रहे हैं। हालांकि यह सही है कि कुर्मी मतदाता की संख्या 35000 से ज्यादा है लेकिन उनके पक्ष में जातिगत ध्रुवीकरण हो पाएगा इसकी संभावना कम ही है।