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“बेपरवाह सरकार” – इंदौर के उच्च शिक्षण संस्थानों में पॉश कानून का नहीं हो रहा पालन, यूनिवर्सिटी मौन  

लाड़ली लक्ष्मी, लाड़ली बहना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजना चला रही

लेकिन इनकी सुरक्षा को लेकर जागरूक नहीं, 

- सुप्रीम कोर्ट के नियमों को धता करते, महिलाओं की सुरक्षा को ताक पर रखते इंदौर के उच्च शिक्षण संस्थान
- पॉश कानून के ज़मीनी क्रियान्वयन पर महिला बाल विकास विभाग फिसड्डी, 90% से अधिक संस्थानों में आतंरिक परिवाद समिति गठित नहीं
- 200 से अधिक संस्थानों से मांगी गई जानकारी, मात्र 4 से मिला जवाब, वर्ष 2013 में बने कानून का शैक्षणिक संस्थानों, प्रशिक्षण केंद्रों में नहीं हो रहा पालन
- महिलाओं के साथ यौन अपराध मामले में राजस्थान के बाद मप्र सबसे आगे : एनसीआरबी रिपोर्ट

पूनम शर्मा – सह संपादक

Indore News in Hindi। दुर्भाग्यवश, कामकाजी महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक आम समस्या है। मध्य प्रदेश में आए दिन न जाने कितनी महिलाओं से यौन उत्पीड़न अपराध के मामले सामने आते हैं। विशेषतौर पर कार्यस्थल पर महिलाएं पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं और सेक्सुअल हैरेसमेंट यानि यौन शोषण का शिकार होती हैं। कई बार हैरेसमेंट का शिकार होने के बावजूद महिलाएं चुप रहती हैं। कुछ को तो ये भी मालूम नहीं होता है कि आखिर शिकायत करनी कहां है। तमाम कानूनों और सख्त नियमों के बावजूद साल दर साल ये मामले बढ़ते जा रहे हैं। यही वजह है कि देश में वर्कप्लेस पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए 2013 में पॉश एक्ट यानी कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम बनाया गया था। 

वर्ष 2013 में बने इस अधिनियम को एक दशक हो चुका है। मेट्रो सिटिज में इसको लेकर खासी जागरूकता आई है वहीं छोटे शहरों में इसमें वृहद स्तर पर कार्य किए जाने की जरूरत है। ज़मीनी तौर पर इस कानून का क्रियान्वयन भी शून्य के जैसा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी “यह कानून बनने के एक दशक बाद भी इसे लागू करने में गंभीर चूक” कहते हुए अपनी चिंता ज़ाहिर की है। न्यायालय ने इस अधिनियम से संबंधित गंभीर खामियों और अनिश्चितताओं पर प्रकाश डाला है जिसके कारण कई कामकाज़ी महिलाओं को अपनी नौकरी छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा। 

कानून के ज़मीनी क्रियान्वयन पर महिला बाल विकास विभाग फिसड्डी, प्रदेश सरकार महिलाओं की अस्मित सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं

दैनिक सद्भावना पाती अख़बार ने पॉश अधिनियम पर प्राथमिकता से कई प्रकार के संस्थानों में सैकड़ों जगह सर्वे कर डाटा एकत्रित किया था और रिपोर्ट बनाकर खबर प्रस्तुत की थी और महिला बाल विकास विभाग सहित सभी जिम्मेदार विभागों को सूचित किया था उसके बावजूद उनकी चुप्पी और लापरवाही शर्मनाक है। खबर प्रकाशन के 9 माह बाद भी इस कानून के क्रियान्वयन में खास तेजी या गंभीरता देखने को नहीं मिल रही है। इंदौर जिले में महिला बाल विकास विभाग भी जागरूकता अभियान या अन्य एक्टिविटी करवाने में तत्परता नहीं दिखा रहा।

ज़मीनी तौर पर इस कानून का क्रियान्वयन भी बेहद सुस्त है या कहें शून्य के जैसा है। विभाग को सभी शासकीय, अर्द्ध शासकीय, निजी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों को लैंगिक उत्पीड़न की रोकथाम के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। जिला एवं ब्लाक स्तर पर कमेटियाें के गठन के साथ इसकी नियमित रूप से बैठकाें का आयोजन और समिति के समक्ष इस तरह के मामले आने पर तत्काल निस्तारण करने का प्रयास किया जाना चाहिए लेकिन समितियों को शिकायतें न मिलने से निराकरण भी सिफर है।

यूनिवर्सिटी नहीं कर रही भारत सरकार के आदेशों का पालन

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 2 मई 2016 को सरकारी राजपत्र जारी कर अधिसूचना में ये निर्देशित किया गया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से सम्बद्ध एवं देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में आईसीसी का गठन सुनिश्चित किया जाये किन्तु 2016 से अब तक इंदौर की देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी ने इस ओर कोई सख्ती नहीं दिखाई है और निरंतर संस्थानों को संबद्धता जारी कर रही  है। जबकि होना यह चाहिए कि पॉश कानून के अनुपालन न होने पर उन संस्थानों को संबद्धता नहीं दी जानी चाहिए।

200 से अधिक निजी संस्थानों (प्राइवेट कॉलेज) मांगी गई जानकारी, मात्र 4 से मिला जवाब

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी के बाद, दैनिक सद्भावना पाती अख़बार ने जमीनी हकीकत जानने के लिए इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए इंदौर जिले के 200 से अधिक निजी उच्च शिक्षण सस्थानों को ईमेल कर पॉश अधिनियम के क्रियान्वयन को लेकर जानकारी मांगी जिसमें संस्था/कॉलेज में आईसीसी का गठन, समिति के सदस्यों के नाम मोबाइल नंबर सहित सूचि, आईसीसी के ट्रेनिंग प्रोग्राम/सेमिनार के फोटोग्राफ और सर्टीफिकेशन, शिकायतों और उनके निराकरण के प्रकार, आईसीसी की मासिक/त्रैमासिक/वार्षिक अन्य बैठकों के मिनिट्स, समिति के सदस्यों को दिए गए भत्ते (कैश/चेक/अकाउंट इत्यादि) की प्रमाणित कॉपी समेत अन्य जानकारियां मांगी गई परन्तु मात्र 4 संस्थानों द्वारा विधिवत दस्तावेजों के साथ पूरी जानकारी प्रेषित की गई जबकि अन्य की तरफ से कोई जानकारी नहीं प्राप्त हुई न ही प्रत्युत्तर किया गया। स्पष्ट है कि इन संस्थाओं में पॉश कानून का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। बता दें कि इन 200 निजी संस्थानों के अलावा जिले में 14 बड़े शासकीय उच्च शिक्षण संसथान है।

ये 4 संस्थाएं कर रही नियमों का पालन, मांगे जाने पर दी गई पूर्ण जानकारी 

1. कस्तूरबाग्राम रूरल इंस्टिट्यूट
2. प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग मैनेजमेंट एंड रिसर्च
3. चोइथराम कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग
4. बॉम्बे हॉस्पिटल कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किये निर्देश

न्यायालय ने केंद्र, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को यह सत्यापित करने के लिए समयबद्ध मूल्यांकन करने का निर्देश जारी किया कि मंत्रालयों, विभागों, सरकारी संगठनों, प्राधिकरणों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, संस्थानों एवं अन्य निकायों ने  पॉश अधिनियम के अनुसार आंतरिक शिकायत समितियों, स्थानीय समितियों एवं आंतरिक समितियों की स्थापना की है अथवा नहीं। इन संस्थाओं को आगे निर्देश दिया गया कि वे अपनी संबंधित समितियों के बारे में जानकारी अपनी आधिकारिक वेबसाइटों पर प्रकाशित करें। पर वहीँ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को धता करते महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संस्थाओं पर कोई सख्ती नहीं की जा रही है, न ही इनकी वेबसाइट पर आईसीसी के गठन का प्रकाशन किया गया।

इनका कहना है

पिछले एक साल में इंदौर जिले में संचालित 20 शैक्षणिक संस्थानों में पॉश से संबंधित सेमिनार/ट्रेनिंग आयोजित की गई है और लगभग 60 शासकीय/अशासकीय शैक्षणिक संस्थानों में आंतरिक परिवाद समिति का गठन किया गया है। अन्य शैक्षणिक संस्थानों में आईसीसी के गठन की कार्यवाही की जा रही है। विभाग को पिछले एक साल में शैक्षणिक संस्थानों से पॉश की कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है।

– रामनिवास बुधोलिया, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला बाल विकास विभाग

यौन अपराध मामले में राजस्थान के बाद एमपी : एनसीआरबी रिपोर्ट

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में मध्यप्रदेश में 2947, यूपी में 2845 और महाराष्ट्र में 2496 रेप के मामले दर्ज किए गए।

क्या है पॉश एक्ट

यह  एक्ट बहुत ही महत्वपूर्ण कानून है जो यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वर्किंग प्लेस पर महिलाएं सुरक्षित माहौल में काम करें। इस एक्ट के जरिए महिलाएं अपने साथ ऑफिस में हो रही यौन शोषण की घटनाओं पर एक्शन ले सकती है तो उनके खिलाफ शिकायत करना भी आसान है।  महिलाओं के अलावा अन्य कर्मचारियों को भी जानकारी होनी चाहिए कि आपको वर्कप्लेस में कैसा व्यवहार करना है, एक डर होना चाहिए ताकि कोई ऐसी गलत हरकत कर ना पाएं।

पॉश अधिनियम के तहत नियोक्ता की जवाबदेही

पॉश कानून निर्धारित करता है कि 10 कर्मचारियों से अधिक कार्यबल वाले किसी भी नियोक्ता को एक आईसीसी स्थापित करनी होगी। यह समिति कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के संबंध में औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के लिए महिला कर्मचारियों हेतु एक मंच के रूप में कार्य करती है।

सोसाइटी का पंजीकरण रद्द और 50 हजार रु. अर्थदंड का प्रावधान

दैनिक सद्भावना पाती द्वारा सर्वे करने पर पाया गया कि इंदौर में लोकल कंप्लेंट कमिटी तो बन गई है पर आईसीसी समितियों का गठन उच्च शिक्षण संस्थानों में लगभग न के बराबर है। ऐसा न करने वाले संस्थानों की सोसायटियों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है या इनकी अनुमति भी निरस्त की जा सकती है और 50 हजार रुपये का अर्थदंड लगाए जाने का प्रावधान भी है।

सदभावना सुझाव

महिला एवं बाल विकास विभाग को इस कानून पर सख्ती दिखाते हुए इंदौर में संचालित उच्च शिक्षण संस्थानों की मान्यता निरस्ती हेतु यूनिवर्सिटी एवं मान्यता प्रदाता एजेंसियों को पत्र जारी कर ठोस कदम उठाने चाहिए और यूनिवर्सिटी को ऐसी संस्थाओं को मान्यता देने से बचना चाहिए तभी मध्य प्रदेश में यौन उत्पीड़न के मामलों में कमी आएगी। 

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