Press "Enter" to skip to content

51 एमबीबीएस डॉक्टरों ने दायर की याचिका :’ग्रामीण क्षेत्र में 1 साल का कार्य ज़रूरी’ नियम पर ली आपत्ति, उच्च न्यायालय ने जारी किये नोटिस  

एमबीबीएस होने के पश्चात प्री-पीजी परीक्षा में शामिल होने के लिए एनआरआई कोटे के विद्यार्थियों को 1 साल की ग्रामीण एवं क्षेत्र में कार्य करना ज़रूरी नहीं, जबकि अन्य छात्रों को आवश्यक.
पूनम शर्मा 
MP News. मध्य प्रदेश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के 51 एमबीबीएस डॉक्टरों द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। यह याचिका ‘प्री-पीजी परीक्षा में दाखिल होने एवं रूरल क्षेत्र में 1 साल का कार्य आवश्यक ‘ मामले को लेकर की गई है।
वर्ष 2016 के नियमानुसार प्री-पीजी परीक्षा में दाखिल होने के लिए सामान्य विद्यार्थियों को कोर्स पूरा करने के पश्चात् रूरल एवं ट्राइबल क्षेत्र (PHC) में मेडिकल ऑफिसर के तौर पर 1 साल की नौकरी करना आवश्यक है वहीँ एनआरआई कोटे के विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक नहीं है.
यदि सामान्य विद्यार्थी ऐसा नहीं करते हैं तो उनके मूल दस्तावेज उन्हें वापस नहीं किए जाएंगे तथा पेनल्टी स्वरूप उन्हें 5 लाख रु. देने होंगे। जबकि एनआरआई कोटे के विद्यार्थियों के लिए इस तरह की कोई बंदिश नहीं है। वह कोर्स पूरा होने के पश्चात तत्काल रूप से प्री-पीजी परीक्षा में शामिल हो सकते हैं।
इसका परिणाम यह होगा की एनआरआई श्रेणी के विद्यार्थी सामान्य विद्यार्थियों से 1 साल सीनियर कहलायेंगे और सामान्य छात्रों को इसका खामियाजा भुगतना होगा। यदि विद्यार्थी एक वर्ष पूरा कार्य करते हैं तो वह अपनी परीक्षा की तैयारी बेहतर तरीके से नहीं कर पाएँगे। हालांकि सभी विद्यार्थी इंटर्नशिप पूरी कर चुके है।
वर्ष 2016 के नियमानुसार सिर्फ वे विद्यार्थी जिन्हें डीएमई के द्वारा काउंसलिंग के जरिए प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिला सिर्फ उन्हें ही प्रदेश के रूरल एवं ट्राइबल क्षेत्र (PHC) में मेडिकल ऑफिसर के तौर पर 1 साल की नौकरी करना आवश्यक है, जिससे खुद ब खुद यह स्पष्ट होता है कि एनआरआई कोटे के विद्यार्थियों के लिए यह 1 साल की कार्य करना आवश्यक नहीं है।
बता दें कि अन्य कोटे के विद्यार्थी एनआरआई कोटे के विद्यार्थियों से बहुत अधिक प्रतिभाशाली होते है क्योंकि वे मेरिट के आधार पर काउंसलिंग के माध्यम से कॉलेजों में प्रवेश पाते हैं, जबकि एनआरआई कोटे के विद्यार्थी बिना काउन्सलिंग के जरिये नंबर कम होने के बावजूद अपने पैसों के बल पर प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं।
2016 के नियम 21 को एडवोकेट आदित्य संघी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है और बताया है कि यह भारत के संविधान के आर्टिकल 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन है।
उन्होंने याचिका में मांग की है कि सामान्य छात्रों को भी एनआरआई श्रेणी के छात्रों की तरह सामान्य व्यवहार किया जाए और उन्हें इस नियम से जिसमें ‘रूरल क्षेत्र में 1 साल का कार्य करना आवश्यक है’ उसमें छूट दी जाए और उनके मूल दस्तावेज वापस किए जाएं।
इस याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार, डायरेक्टर मैजिक मेडिकल एजुकेशन तथा लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से जवाब तलब कर नोटिस जारी किए है ।
Spread the love
More from Madhya Pradesh NewsMore posts in Madhya Pradesh News »