डेढ़ साल पहले इंदौर में पकड़े गए जीएसटी घोटाले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी डायरेक्टर जनरल आफ जीएसटी इंटेलिजेंस (डीजीजीआइ) ने अपने हाथों में ले ली है।
[expander_maker id=”1″ more=”Read more” less=”Read less”] मामले में डीजीजीआइ की टीम ने इंदौर में एक साथ कम से कम 20 स्थानों पर दबिश दी। कार्रवाई की जद में शहर के तीन चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) भी आ गए हैं। डीजीजीआइ भोपाल और इंदौर के अधिकारियों ने मिलकर कार्रवाई को अंजाम दिया।
फरवरी 2019 में राज्यकर विभाग (वाणिज्यिक कर) ने घोटाले को पकड़ा था। कागज पर फर्मे-कंपनियां खड़ी कर नकली बिलों से जीएसटी क्रेडिट हासिल कर घोटाला किया गया था। राज्यकर की कार्रवाई के बीच शहर के एक कर सलाहकार गोविंद अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली थी।
मामले के खुलासे के डेढ़ साल बाद डीजीजीआइ द्वारा की गई कार्रवाई पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या इतने वक्त बाद सबूत मिल सकेंगे? सूत्रों के अनुसार, छावनी और जावरा कंपाउंड क्षेत्र के तीन सीए के दफ्तर से डीजीजीआइ ने सभी फाइलों के साथ कंप्यूटर और लैपटाप भी जब्त कर लिए हैं।
उनके मोबाइल फोन भी डीजीजीआइ के अफसर पुराना डाटा रिकवर करने के लिए ले गए हैं। इसमें से एक सीए मामले में खुद शिकायतकर्ता बताए जा रहे हैं। शेष दो सीए के तार फर्जी बिलिंग से जुड़ते दिखाई दे रहे हैं।
डीजीजीआइ के भोपाल स्थित क्षेत्रीय मुख्यालय के अधिकारियों ने कार्रवाई की पुष्टि कर दी है, लेकिन नामों का खुलासा नहीं किया है।
फर्जी टैक्स क्रेडिट बिल बनाए!
घोटाले की श्रृंखला में सबसे पहले सामने आई कंपनियों सारु इंटरप्राइजेस, श्री ट्रेड लिंक और पद्मावती इंटरप्राइजेस से जुड़े लोगों के साथ छावनी क्षेत्र की फर्म गुरुकृपा इंटरप्राइजेस के संचालकों का रिकार्ड भी डीजीआइ ने जब्त किया है।
इन फर्मों के जरिए ही 379 करोड़ रुपये से ज्यादा के फर्जी बिल जारी किए गए थे। बाद में आंकड़ा 674 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया था।[/expander_maker]
Aut vincere, aut mori — Или победить, или умереть.
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