Religious and Spiritual News Indore : महाभारत काल में युद्ध से पहले जहां श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था तो वहीं युद्ध से पहले और स्वयं शर शैय्या पर लेटकर भीष्म पितामह ने भी बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कही थी। इन बातों को उन्होंने धृतराष्ट्र, दुर्योधन, श्री कृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर से साझा किया गया। अपनी शरशैया पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को संबोधित करके सभी को उपदेश दिया था उनके इन उपदेशों में राजनीति, नीति, जीवन और धर्म की गूढ़ बातें थी। कहा जाता है कि इन बातों को अगर आज भी कोई व्यक्ति अपने जीवन में अपनाता है तो वह व्यक्ति सफलता की चरम सीमा को छू लेता है तो आइए आपको बताते हैं भीष्म पितामह द्वारा बताई गई ऐसी कुछ नीतियां जो मानव जीवन के लिए बहुत ही हितकारी व लाभकारी साबित हो सकती है।
भीष्म पितामह कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे बोलना चाहिए जो दूसरों को अच्छा और प्यारा लगे। किसी भी इंसान की बुराई करना, निंदा करना उसके बारे में बुरे वचन बोलना यह सब त्यागने के योग्य बातें होती हैं। इतना ही नहीं दूसरों का अपमान करना, अहंकार करना या दंभ करना यह एक अवगुण व्यक्ति के लक्षण होते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इन कामों से दूरी रखनी चाहिए तभी वह अपने जीवन में सफल हो सकता है।
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पितामह कहते हैं कि त्याग के बिना कुछ भी प्राप्त करना संभव नहीं होता। इसके बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। इसके बिना मनुष्य कभी भी अपने भय से मुक्त नहीं होता। बल्कि इसकी सहायता से ही प्रत्येक व्यक्ति हर प्रकार का सुख प्राप्त कर सकता है।
भीष्म पितामह कहते हैं कि जीवन में सुख केवल दो प्रकार के मनुष्य को मिलता है। एक उन्हें जो सबसे अधिक मूर्ख होते हैं, दूसरा उन्हें जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया होता है। जो लोग इन दोनों के बीच लटक रहे होते हैं वह सुख से कोसों दूर ही रहते हैं और हमेशा दुख प्राप्त करते हैं।
जो व्यक्ति अपने भविष्य के बारे में सुबह सोचता है वह अपना पद यानी रास्ता समय निश्चित करता है दूसरों के कहे अनुसार नहीं चलता, जो समय के अनुकूल तुरंत विचार कर सकता है उस पर आचरण कर सकता है वह व्यक्ति हमेशा सुख को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति हमेशा आलस्य के वश में रहता है ऐसा व्यक्ति अपने साथ-साथ अपने परिवार का भी नाश करता है।
हमारे धार्मिक शास्त्रों में हर जगह वर्णन मिलता है कि जब जब किसी ने स्त्री का अपमान किया है उसका विनाश निश्चित ही हुआ है। भीष्म पितामह ने भी इस पर युधिष्ठिर को ज्ञान देते हुए कहा कि स्त्री का पहला सुख उसका सम्मान ही होता है। जिस घर में स्त्री प्रसन्न रहती है उस घर में हमेशा लक्ष्मी का वास होता है तथा सभी देवी-देवता घर में निवास करते हैं परंतु जिस घर में स्त्री को सम्मान नहीं मिलता उस घर में दुखों के अलावा कुछ भी नहीं होता।
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