(विचार मंथन) युद्ध का अंजाम

sadbhawnapaati
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(लेखक – सिद्धार्थ शंकर)

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है और किसी को नहीं पता है कि यह युद्ध कब और कैसे खत्म होगा लेकिन यह करीब-करीब साफ है कि रूस अभी नहीं जीत रहा है। रूस अब तक यूक्रेन की सरकार को बदलने और कीव पर कब्जा करने में नाकाम रहा है और अब तो रूस यूक्रेन के पूर्वी भाग के कुछ इलाकों में सिमटकर रह गया है।
इतना ही नहीं रूस को यूक्रेनी सेना को पीछे धकेलने में भी मुश्किलें आ रही हैं। तो क्या यूक्रेन युद्ध जीत रहा है? यूक्रेनी सेना ने बेहद चतुराई से काम किया है और रूसी सेना की कमजोरियों पर वार कर फायदा उठाया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मौलिक स्तर पर पुतिन पहले ही हार चुके हैं। जिस तरह से रूसी सेना ने यूक्रेन को नुकसान पहुंचाया है उसे डॉक्यूमेंट किया गया है लेकिन यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना को कितना नुकसान पहुंचाया है यह बेहतर तरीके से डॉक्यूमेंट नहीं किया गया है।
यह सच है कि कई जगहों पर यूक्रेनी सेना पीछे हटी थी लेकिन अब उन जगहों पर फिर एक बार यूक्रेनी सेना का नियंत्रण है। इसमें पूर्वी यूक्रेन का हिस्सा शामिल नहीं है क्योंकि वहां अभी भी रूसी सैनिक बड़े हिस्से में जमे हुए हैं। युद्ध में कई बार ऐसी स्थितियां बन जाती हैं जब किसी भी पक्ष की हार या जीत नहीं होती है।
बराबरी पर छूट जाता है। ऐसे हालात में यह संभव है कि किसी पक्ष का अधिक नुकसान हुआ हो और किसी का कम लेकिन जीत या हार किसी की नहीं होती। विश्लेषकों का कहना है कि अगर यूक्रेन डोनबास में मौजूदा रूसी आक्रमण का सामना कर सकता है, तो यूक्रेनियन अगले कुछ हफ्तों में अपने जवाबी हमले को तेज कर देंगे।
ऐसा लगता है कि रूस ने जो एज हासिल किया था उसे खो रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि वह किस पॉइंट पर आगे बढना बंद कर देंगे और क्या यूक्रेनी सेना उन्हें पीछे धकेल सकेगी?
नाटो देशों की ओर से यूक्रेन को दी जा रही आर्थिक और सामाजिक सहायता से युद्ध अनिर्णय की दिशा में बढ़ता जा रहा है। किसी की जीत-हार होती नहीं दिख रही है। पर युद्ध जितना लंबा खिंचता जा रहा है, उसकी उतनी ही पीड़ा मानवता को भुगतनी पड़ रही है।
अभी तक का तथ्य तो यही है कि युद्धों ने दुनिया और सभ्यता को नुकसान तो बहुत पहुंचाया, परंतु कोई भी ताकतवर अपने से भिन्न मत या कमजोर शक्ति वाले को समाप्त कभी नहीं कर पाया।
भारत के अतीत में देखें तो कृष्ण और जरासंध के बीच युद्ध हुआ, पर भगवान माने जाने वाले कृष्ण की जीत के बाद भी जरासंध के अनुयायी या मानने वाले अभी भी अच्छी खासी संख्या में मौजूद हैं।
कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के बीच युद्ध हुए, मगर आज भी दोनों ही मतों को मानने वाले मौजूद हैं। शिया और सुन्नी संप्रदाय के बीच युद्ध हुए। लाखों लोग मारे गए। इसके बाद भी दोनों मत को मानने वालों की तादाद कम नहीं है।
रंगभेद और नस्लभेद के नाम पर दुनिया में कई युद्ध और गृह युद्ध हुए। पर अंतिम निर्णय के दृष्टिकोण को स्वीकार करें तो इनका परिणाम शून्य है। इसके बावजूद दुनिया के सभ्य कहे जाने वाले मुल्क या समुदाय युद्ध क्यों करते हैं, यह खोज का विषय भी है और समझने का भी।
एक विदेशी इतिहासकार ने दुनिया के इतिहास और युद्धों का अध्ययन कर बताया कि पिछले लगभग साढ़े तीन हजार वर्षों में दो सौ साठ साल ही ऐसे रहे हैं जिनमें कोई युद्ध नहीं हुए हैं।
वरना दुनिया आपस में लड़ती रही है। रूस ने यूक्रेन पर युद्ध थोपा है। वह कितना क्रूर और भयावह है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। भले ही संयुक्त राष्ट्र के नियम कहते हैं कि आवासीय क्षेत्र या निहत्थे लोगों पर हथियार इस्तेमाल नहीं होने चाहिए, पर रूस यूक्रेन को घुटने टेकने के लिए नागरिक क्षेत्रों पर लगातार बम बरसा रहा है।
लगभग पचास लाख लोग यूक्रेन से पलायन कर गए हैं और शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। निहत्थे नागरिक जिनका कोई हाथ न युद्ध के कराने में हैं, न जिनकी कोई युद्ध की आकांक्षा, वे सभी इस युद्ध का शिकार हो रहे हैं।
हजारों बच्चे मारे गए हैं। युद्ध के नाम पर यह क्रूरता अभूतपूर्व है। तीन महीने हो चुके हैं जंग को चलते हुए, पर इसका अंत नजर नहीं आ रहा।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह युद्ध दुनिया को नए सामरिक संतुलन व संगठन बनाने के लिए थोपा गया है। साथ ही एक और नए शीत युद्ध की शुरुआत भी इससे हो गई है।
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