सम्पादकीय – पुष्य का ‘लहजा’ संजय का “लिहाज” इंदौरी विकास में  कहाँ खड़े है “आप” 

sadbhawnapaati
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सलाहकार संपादक 
लक्ष्मीकांत पंडित 
 इंदौर नगर निगम चुनाव में प्रचार जोर पकड़ता जा रहा है और इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ आप पार्टी के महापौर प्रत्याशी और पार्षद प्रत्याशी अपना पूरा जोर लगा रहे हैं। इंदौर में महापौर के दो प्रमुख विद्वान संजय शुक्ला और पुष्यमित्र भार्गव के प्रचार के दौरान मतदाता इनके वादे इरादे प्रतिवादे तो सुन रहे हैं, साथ ही इनके लहजे और लिहाज पर भी चर्चाओं का दौर चल निकला है।
इसमें कोई शक नहीं कि बीते दो दशकों में इंदौर ने विकास की अनेक पायदानों को पार किया है, लेकिन विकास की इन इबारतों में कहीं-कहीं अल्पविराम तो कहीं पूर्ण विराम की कमियां है यानी कि ताबड़तोड़ विकास के चलते जो विसंगतियां पैदा हुई वह कहीं न कहीं शहरवासियों के लिए फांस बन कर उनके जीवनयापन और दिनचर्या में कहीं न कहीं उन्हें टीस प्रदान करती है।
दरअसल इंदौर में विकास की अवधारणा के दो पहलू हैं। दोनों प्रमुख दल इन दोनों पहलुओं से अपने को बिल्कुल अलग रखते हुए एक नई अवधारणा को प्रस्तुत कर रहे हैं जोकि आम शायरियों के मनन चिंतन के विपरीत जाती है। जहाँ तक भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव का सवाल है उनका चयन संगठन और पार्टी ने मिलकर किया है और यह जगजाहिर है कि नगर निगम के विषय में उनकी मालूमात इतनी अधिक नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी और क्षेत्र क्रमांक 1 के विधायक संजय शुक्ला दो बार पार्षद रहे।
वर्तमान में विधायक हैं और कुशल जनप्रतिनिधि। उनका एक अपना रूप है उनका रुतबा है लेकिन नगर निगम की कार्यपद्धती और उसके परंपरागत नियमों की माहिती संजय शुक्ला को भी नहीं है। इसी कारण शहर में संजय शुक्ला का लिहाज तो है लेकिन उन पर विश्वास की कमी दिखती है।
वही पुष्यमित्र का व्यवहारिक लहजा उम्मीद जताता है कि वह कुछ नवाचार के प्रति संजीदा है लेकिन इंदौर नगर निगम में काम करना और विकास कार्य को गति देना यह टेढ़ी खीर है। पुष्यमित्र फिलहाल इसमें इतने कुशल नहीं नजर आते हैं।
दोनों का ही तर्क है कि कार्यकर्ता पार्टी संगठन दोनों को मिलाकर हम अफसरों पर नियंत्रण कर अच्छे से अच्छा काम कर इंदौर को विकास की ओर अग्रेषित करेंगे लेकिन जिस विकास की अवधारणा पर दोनों दल और उनके प्रत्याशी अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं उस अवधारणा में आम शहरियों की बुनियादी आवश्यकताओं के विषय कौन हैं और यही कारण है कि आम शहरी इन दोनों पर ही अपना मत कायम नहीं कर पा रहा है।
इन दिनों जितनी भी बातचीत इन दोनों प्रत्याशियों से हो रही है उसमें यह जाहिर होता है कि दोनों ही अपनी पार्टी के तेज अंडे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं देखना या सुनना चाहते हैं। अभी दोनों ही दलों के घोषणा पत्र आना शेष है, बावजूद इसके आम जनता यह चाहती है कि यदि वह अपनी गाढ़ी कमाई से नगर निगम को टैक्स देती है तो उसको सड़क पानी बिजली और रहने के लिए स्वच्छ पर्यावरण प्रदूषण रहित जीवन और एक सकारात्मक जीवन जीने की जीवनशैली वाला शहर मिले और उसके लिए अनेक मुद्दों पर काम होना बाकी है।
पूरे देश में 5 बार स्वच्छता में प्रथम आने का तमगा इंदौर को अवश्य सबसे अलग करता है परंतु इसके अलावा भी शहर की बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता यातायात, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी महिला सुरक्षा और बहुत से काम ऐसे हैं जिनकी दरकार इंदौर की आम जनता आने वाली निगम परिषद और अपने महापौर से करवाना चाहती है।
इंदौर मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी है और बीते तीन से चार दशकों में पूरे देश में इसके विकास की गति ने पूरे देश के लोगों का ध्यान आकर्षित भी किया है। यहां पर हर तरह की सुविधा मिलने के कारण बाहरी लोगों का आना जाना लगातार रहता है इसलिए यातायात शिक्षा और जल निकासी पर्यावरण के साथ-साथ गुणवत्ता देख स्वास्थ्य सुविधा की दरकार रहती है।
 इंदौर में सिर्फ नगर निगम ही विकास के पहिए को नहीं चलाती, अन्य दूसरे संसाधन एजेंसी और योजनाओं के चलते इंदौर का वर्तमान स्वरूप सामने आया है। यह भी सत्य है कि इंदौर नगर निगम का वर्तमान स्वरूप विकसित इंदौर की परंपरा और उसके रंग रूप को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
खासकर केंद्र और राज्य की तरफ से आने वाले सहयोग अंशदान और अन्य योगदानों का उपयोग कर शहर के चौमुखी विकास को आगे बढ़ा सकता है इसलिए महापौर को खुले मन से शहर के विकास के लिए जुटना पड़ेगा।
हमने महापौर प्रत्याशियों की चर्चा ऊपर की थी जिसमें कि हमने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव के लहजे की बात करी थी जो कि आकर्षित करता है लेकिन उस आकर्षण में विश्वास की कमी दिखती है और उस विश्वास की कमी को पार्टी व संगठन पूरी तरह से दूर करने के लिए एकजुट नजर आ रहा है।
कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला का लिहाज आम आदमी को अपने करीब लाने के लिए पर्याप्त है। उनका अपनापन, उनकी सेवा और व्यवहार यह विश्वास दिलाता है कि यदि वह महापौर बन गए तो जनसामान्य के लिए तन मन धन लगा देंगे, पर उनकी पार्टी और संगठन को कमरतोड़ मेहनत करना होगी तभी उनको जीत नसीब हो सकती है।
फिलहाल अगले 8 दिनों में जनता इन दोनों के लहजे और लिहाज दोनों को कसौटी पर कसेगी और मतदान के दिन यह तय कर देगी उसका अपना महापौर कौन होगा।
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