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(विचार मंथन) भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल 

(लेखक-सिद्धार्थ शंकर)

सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी ने विज्ञापनों के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। गाइडलाइन के मुताबिक अब भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अथॉरिटी ने सरोगेट एडवर्टाइजमेंट पर भी प्रतिबंध लगाया है। इस फैसले का उद्देश्य पारदर्शिता लाना है। नए दिशा निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं। यदि विज्ञापनों में दी गई जानकारी प्रोडक्ट में नहीं पाई जाती है, तो उन विज्ञापनों को भ्रामक विज्ञापन माना जाएगा। जो विज्ञापन उनके डिस्क्लेमर से भिन्न होते हैं, उन्हें भी भ्रामक विज्ञापन माना जाएगा। इसके अलावा, यदि कोई सेलिब्रिटी किसी विज्ञापन में कुछ दावा कर रहा है और वह सही नहीं पाया जाता है तो वह विज्ञापन भी भ्रामक विज्ञापन श्रेणी के अंतर्गत आता है।
पहले समझते हैं कि सरोगेट विज्ञापन क्या होता है? दरअसल अक्सर टीवी पर किसी शराब, तंबाकू या ऐसे ही किसी प्रोडक्ट का ऐड देखा होगा, जिसमें प्रोडक्ट के बारे में सीधे न बताते हुए उसे किसी दूसरे ऐसे ही प्रोडक्ट या पूरी तरह अलग प्रोडक्ट के तौर पर दिखाया जाता है। जैसे शराब को अक्सर सोडे के तौर पर दिखाया जाता है। गुटखा के प्रचार के लिए इलायची का सहारा लिया जाता है। खानपान हो, प्रसाधन, चिकित्सा, घरेलू साजो-सामान या जीवन से जुड़ी दूसरी चीजें, मीडिया में उनका बढ़-चढ़ कर विज्ञापन किया जाता है। हर उत्पाद गुणवत्ता में अपने को दूसरे से बेहतर बताता है। इसके लिए नामचीन हस्तियों की मदद ली जाती है, ताकि आम उपभोक्ता का उत्पाद संबंधी दावों पर भरोसा मजबूत हो। मगर अनेक परीक्षणों और जांचों में पाया गया कि विज्ञापन में किए गए दावे हकीकत से काफी दूर होते हैं। कई बार उन वस्तुओं के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव भी देखे गए हैं। इसी के मद्देनजर उपभोक्ता कानून में बदलाव किया गया। अब भ्रामक विज्ञापन देने वाली कंपनियों के साथ-साथ विज्ञापन करने वाली हस्तियों को भी दंड का भागी बनाया जा सकता है। वैश्वीकरण और बाजारीकरण के इस दौर में विज्ञापन का प्रभाव समाचार पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन के साथ डिजिटल मीडिया में भी तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में भ्रामक विज्ञापन भी धड़ल्ले से दिखाए जा रहे हैं। यही वजह है कि शराब-गुटखा का सेवन करने, छरहरा और आकर्षक बनाने, यौन शक्ति बढ़ाने जैसे भ्रामक विज्ञापनों की बाढ़-सी आ गई है। एक सर्वे के मुताबिक, देश में एक आम आदमी रोजाना करीब 3 घंटे टीवी देखता है और इस दौरान करीब 600 विज्ञापनों को चाहे-अनचाहे देख डालता है। इसके अलावा पत्रिकाओं, अखबारों, सिनेमा, इंटरनेट के विविध जरियों और सड़क किनारे लगे बड़े-बड़े होर्डिंग्स के माध्यम से भी सैकड़ों विज्ञापन उसकी आंखों के सामने से गुजरते हैं। वे उसके जेहन में कहीं जाकर अटक जाते हैं, जिन्हें कोई मशहूर हस्ती, जैसे फिल्म अभिनेता और मशहूर खिलाड़ी किसी बड़े दावे के साथ पेश कर रहा होता है। यही भरोसा विभिन्न उत्पाद बनाने वाली कंपनियां तलाश करती हैं और इसी के लिए वे हस्तियों को अपने विज्ञापनों में लाने के लिए करोड़ों खर्च करती हैं। देश में विज्ञापनों पर खर्च हो रहे सालाना 45 हजार करोड़ रुपए में से ज्यादातर हिस्सा ये मशहूर हस्ती ऐसे दावों के बहाने ले जाती हैं, पर क्या हो अगर वे दावे गलत निकल जाएं? क्या सितारे या मशहूर हस्तियां तब इस संबंध में अपनी कोई जिम्मेदारी वहन करेंगी? अमेरिका में फेडरल कंज्यूमर एक्ट ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के लिए संबंधित हस्तियों को भी दोषी मानकर कार्रवाई की इजाजत देता है। कुछ ऐसे ही कानून चीन, जापान और दक्षिण कोरिया में भी हैं, जहां गुमराह करने वाले या धोखाधड़ी वाले विज्ञापनों में दिखने वाली हस्तियां भी कानून के दायरे में आती हैं और दोष साबित होने पर सजा की पात्र होती हैं। इसलिए भारत में भी ऐसा किया जाना जरूरी है।

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