नगर से 3 कि.मी दूर वनक्षेत्र सिद्ववरकुट के घने जंगल विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के बीच चोरल नदी के किनारे जैतगढ पहाड पर गुफा मे माता जयंती का हजार साल से ज्यादा प्राचीन मंदिर है। गुफा मे माता की 3 फीट उंची मूर्ति विराजमान है। जबकि मंदिर के ठीक सामने नदी बहती है। जहां झरना भी साल भर बहता है। इस धर्मस्थल से देवास के सतवास भी जाया जा सकता है। जंगल, नदी और पहाड़ के कारण टूरिस्ट स्पाॅट भी है। भक्तों की मुरादे पूरी करने वाली माता तीन रूप स्वरूप मे दर्षन होते है। जयंती माता प्रातःकाल मे बाल अवस्था मे, दोपहर मे तरूणाई की लालिमा के रूप (युवा) मे, संध्याकाल मे प्रौढ़ अवस्था मे (बुढापे स्वरूप) मे दर्षन देती है। माता मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर भैरव बाबा का चत्मकारी मंदिर भी जयंती माता के प्रकट होने के समय से है। निमाड़ मालवा व म.प्र के अलावा गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि प्रांतो से भक्त दर्षन करने आते है। इस साल कोरोना महामारी को देखते ही भक्तो की भीड़ कम देखने को मिल सकती है। आस्था से आये माता एवं भैरव बाबा के दरबार मे मन्नत मांगी पूरी होती है। नवरात्रि पर्व मे यहां मेला भी लगता है जिसमे बच्चो के खिलौन, खाद्य सामग्री, फूल-चुनरी प्रसादी आदि की दुकानें सजती है। परन्तु इस साल कोरोना संकट को देखते प्रशासन की गाइडलाइन के अनुसार ही भक्तों को चलना पडेगा। माता का मंदिर वनक्षेत्र मे स्थित होने के कारण व्यवस्थाओं जंगली वन्यप्राणियों से सुरक्षा को देखते हुए राजस्व विभाग,पुलिस प्रशासन, वन विभाग का अमला दिन-रात तैनात रहते है।
पहले नाव से जाते थे श्रद्वालु, अब पुल से आसानी से पहुंचते भक्त माता के दरबार मेः- मंदिर मे पहुंचने के लिए जंगलों के बीच से पैदल रास्ता था, जो चार दशक पहले बंद हो गया। इसके बाद नया रास्ता जंगलो के बीच से ही बनाया गया था, तब लोग अकसर नाव से आते जाते थे। बाद मे पुल बनाया। हालांकि नदी के तेज बहाव से पुल एक बार दह गया था, जिसे बनाया गया। अब मंदिर मे नये पुल से आसानी से भक्त माता के दरबार मे पहुंचते है। महाभारत मे माता जयंती का उल्लेख हैः-मंदिर के पुजारी रामस्वरूप शर्मा कहते है कि महाभारत मे उल्लेख है कि माता जयंती पांडवों की कुलदेवी रही है। विंध्याचल एवं सतपुडा पर्वत पर पांडवों ने पूरा जीवन व्यतीत किया था। 12 साल का वनवास काटा था। उस दौरान माता का पूजन-अर्चन किया करते थे दुर्गा सप्तसती मे भी माता जंयती का पहला शलोक मंगला काली भद्रकाली कृपालनी दुर्गा शमा षिवाधात्री स्वाह सुधा से आता है माता के 108 सिद्वपीठों मे से एक सिद्व पीठ है माता जयंती का उल्लेख है। माता पिंडी स्वरूप मे प्रकट हुई थी। माता की भव्य पिंडी एक छोटे से स्वरूप मे प्रकट होकर आज दर्षनीय है। माता का पिंडी स्वरूप धीरे-धीरे माता की प्रतिमा मे समाता जा रहा है। कुछ सालों पूर्व जीर्णोधर के समय मंदिर की दीवार पर एक प्राचीनकाल का शिलालेख लगा हुआ निकला था। जिसमे 1351 संवत् मे होलकर वंश के राजाओं द्वारा मंदिर के जीर्णोधर का उल्लेख होना दर्शाता है। जिसके अनुसार माता का मंदिर पांडवकाल के पूर्व होने का प्रतीत होता है। वहीं पंडित शर्मा ने बताया कि हमारी पीढी दर पीढी माता की सेवा करते आ रहे है। इस साल 2020 मे हमारी पांचवी पीढी आ चुकी है। माता राणा परिवार की भी कुलदेवी है माता की तीन प्रहरो मे आरती होगी -माता की तीन प्रहरों मे आरती होती है। जिसमे प्रात आरती सुबह 6 बजे, दोपहर मे भोग आरती 12 बजे, रात्रि मे 9 बजे होती है। कोरोना संकट को देखते इतिहास मे पहली बार माता के दरबार मे उपर 25 भक्त आरती मे शामिल पायेगे। जिन्हे सोशल डिस्टेसिंग का पालन और मुंह पर मास्क लगा होना जरूरी रहेगा। दर्शन के लिए सैनिटाइजर से हाथ धोकर, बिना मास्क प्रवेश वर्जित होगा मंदिर पंडित रामस्वरूप शर्मा की भक्तो से अपीलः- 17 अक्टूबर वे नवरात्रि पर्व प्रारंभ होकर 25 अक्टूबर तक चलेगा। कोरोना संकट को देखते हुए नियमो का पालन करते हुए दर्शन लाभ ले सकते है। भक्तों के मुंह पर मास्क लगा होना चाहिए। सोशल डिस्टेसिंग का पालन करेगे। सभी भक्तो से अनुरोध है कि अपनी व्यवस्था स्वंय बनाये। एक कर सभी दर्शन लाभ ले सकते है। ज्यादा मंदिर परिसर मे भीड नही लगायेगे। खासकर 12 बजे से 1 बजे के बीच मे माता का मंदिर 1 घंटे के लिए परपंरा अनुसार बंद रहता है जो माता रानी का भोग का समय होता है। इस समय कृपया भक्त गण मंदिर परिसर मे भीड ना लगाये। कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए दर्शन लाभ लेवे। जयंती माता के दरबार मे आरती के समय 25 लोग शामिल हो सकेगे- एक ओर कोरोना संकट है और एक और मंदिर मे 25 लोग ही आरती मे शामिल हो सकेगे। यह एक चुनौतीपूर्ण विषय है। जबकि मंदिर परिसर मे हजारों की संख्या मे भक्त आते है मंदिर परिसर मे एक दुविधा बनकर आयी है जबकि प्रशासन ने 25 लोगों ही शामिल होने होने की चेतवानी दी है। बाकी 25 लोग आरती मे शामिल हो जाऐगे। बाकी भक्तों का क्या होगा। क्या वह माता की आरती मे शामिल होंगे या नही, यह एक दुविधा बनी हुई है।
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