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(विचार मंथन) जी-7 में भारत 

लेखक-सिद्धार्थ शंकर
पिछले दिनों जर्मनी में ब्रिक्स के ठीक बाद जी-7 का सम्मेलन भारत की नजर में बेहद अहम रहा। इसमें भारत की मौजूदगी चीन को जरूर आखिरी होगी। जी-7 दुनिया के वो देश हैं जो दुनिया की आर्थिक व्यवस्था का मॉडल तैयार करते हैं। जी-7 जैसे संगठन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी यह दर्शाती है कि भारत की एक स्वतंत्र नीति है। यह भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और दुनिया में उसके बढ़ते दबदबे को दर्शाता है। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने दुनिया को यह दिखा दिया कि भारत अब एक सक्षम और स्वावलंबी राष्ट्र है। कोरोना महामारी के काल में जब पूरी दुनिया में कोहराम मचा था उस वक्त पूरे विश्व की नजर भारत पर टिकी थी। भारत ने हर स्तर पर अपने पड़ोसी और मित्र राष्ट्रों की मदद की थी। ब्रिक्स के बाद भारत की जी-7 में मौजूदगी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की ओर संकेत देती है। भारत ने यह दिखा दिया कि वह चीन और रूस के साथ ब्रिक्स में खड़ा है तो वह अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ जी-7 में भी उपस्थिति है। यही कारण है कि भारतीय विदेश नीति का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ रहा है। जी-7 में प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत का लक्ष्य सतत विकास है। उसका संकल्प इस दिशा में आगे बढऩा है। वह किसी गुटबाजी का हिस्सा नहीं हो सकता है। भारत क्वाड का सदस्य देश है तो वह ब्रिक्स का भी हिस्सा है। जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत की हिस्सेदारी एक प्रमुख आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में भारत की रणनीतिक स्थिति को प्रतिबिंबित करती है। वर्ष 2020 में अमेरिका द्वारा भी भारत को शिखर सम्मेलन के लिए भी आमंत्रित किया गया था, हालांकि यह सम्मेलन महामारी के कारण नहीं हो सका था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल के दौरान भी भारत ने पांच बार जी-7 के सम्मेलनों में भाग लिया था। भारत के लिए यह व्यापार, कश्मीर मुद्दे और रूस तथा ईरान के साथ भारत के संबंधों पर जी-7 सदस्यों से विचार-विमर्श करने के लिए एक बेहतर मंच उपलब्ध कराता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, ब्रिक्स और जी-20 आदि अंतरराष्ट्रीय संगठनों में हिस्सेदारी के साथ भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से एक बेहतर वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सम्मेलन में रूस यूक्रेन जंग का मसला ही छाया रहा। सम्मेलन में सभी नेताओं ने संयुक्त रूप से बेलारूस को रूसी परमाणु मिसाइल ट्रांसफर करने को गंभीर चिंता करार दिया। गौरतलब है कि दुनिया के सात सबसे अमीर देशों के समूह जी-7 के अध्यक्ष के रूप में जर्मनी ने इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी।
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