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रवीश कुमार के वीडियो को इंटरनेट पर मिला अथाह प्यार, कुछ ही घंटों में लाखों व्यूज और लाइक्स

कई बार भावुक हुए, बोले जैसे बेटी मुड़ मुड़ कर मायके को देख रही हो, मैं उस चिड़िया की तरह जिसका घोसला छीन लिया गया हो….    
-शक्ति यादव ‘इशायु’

एनडीटीवी छोड़ने के बाद एक सवाल हर किसी के मन में था कि अब रवीश कहाँ और कैसे दिखेंगें, जबाब मिला उनके चैनल पर जारी हुए एक वीडियो में, 24 मिनिट  के इस वीडियो में उन्होंने उस हर एक सवाल का जबाब दिया जिसकी सबको उम्मीद थी, इसे अबतक लाखों व्यूज़ और लाइक्स मिल चुके हैं, पिछले दिनों जब से अडानी ग्रुप ने चैनल को खरीदा तब से ही ये अटकलें जारी थी, अब सब अटकलों, सब सवालों पर पूर्ण विराम लग गया लेकिन वे कहते हैं गोदी मिडिया से उनकी लड़ाई निरंतर जारी रहेगी और अब प्लेटफॉर्म यूट्यूब होगा।
इस वीडियों में वे भावुक नजर आए बोले उस बेटी की तरह महसूस कर रहा हूँ जो मुड़ मुड़ कर अपने घर की तरफ देखती है। उन्होंने चैनल को 26-27 साल दिए, अपने अनुवादक से लेकर देश के सबसे सफल पत्रकारों में एक होने के इस सफर को जनता के सामने रखा.  
उन्होंने कहा “इस सफर के लिए किसी एक का शुक्रिया अदा नहीं कर सकता, क्योंकि कई लोग हैं, जिन्होंने मुझे समृद्ध बनाया है, मेरे तजुर्बे को बड़ा बनाया है, हम उस दौर से गुजर रहे हैं, जब कई संस्थाएं और पत्रकारिता भस्म हो रही है। इसी बीच, एक नई संस्था ‘जनता की संस्था’ बन कर उभरी है, जो मुझ जैसों को ताकत देती है।
आज मैं किसी खास के बारे में बात नहीं करूंगा, क्योंकि भावुक हूं और जब भावना हावी होती है, तो तथ्य बह जाते हैं। सहानुभूति के लिए अपने संघर्ष को बड़ा नहीं बताऊंगा, इस देश में कई लोगों का संघर्ष पहाड़ चढ़ने जैसा है।
जहाज से उतर रहा हूं… चाय बेचने की बात नहीं करूंगा। चुनौतियां देखना चाहते हैं, तो एम्स अस्पताल के बाहर चले जाइए। वहां खड़े लोगों से बात करेंगे, तो पता चल जाएगा कि संघर्ष क्या है।”
पिछले कुछ महीनों से पत्रकारिता में हूं, अखबारों, खबरों को करीब से देखने का मौका मिला, जब ये खबर सुनी तो मन धक से रह गया ‘रवीश कुमार ने एनडीटीवी छोड़ दी’
जब से राजनीति और राजनेताओं को करीब से देखा है तब से बहुत हद तक समाचार भी समझ आने लगा, तो ये समझ आया कि खबरों की दो फांक होती है, जो हुक्मरानों की तारीफ करते हैं वो सच्चे पत्रकार नहीं है, वो चारण हैं, वो भाट हैं, हमेशा से, शुरू से।
मैं रवीश जी की व्यक्तिगत सोच से चाहे सरोकार न रखूं पर हां पत्रकारिता में वे सबसे अव्वल पुरोधा हैं, आखिरी नहीं कहूंगा क्योंकि जब तक लोग उन्हें देखते रहेंगे  रवीश बनने की कोशिश करते रहेंगे।
दरअसल हम मोम के जमाने में जी रहे हैं, ताप से पिघल जाते हैं पर कुछ लोग वहां से मोमबत्ती होना जानते हैं रवीश कुमार उनमें से एक हैं।
बहुत बहुत बधाई!
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