लेखक – बी. डेविड
आज के समय में डेंगू काफी गंभीर बीमारियों में से एक है। दुनियाभर में हर साल इस घातक बीमारी से करोड़ो लोगों की जान चली जाती है।
बारिश के मौसम के शुरूआती दौर में सबसे ज्यादा डेंगू के मामले सामने आते हैं और इस वक्त में ही सबसे ज्यादा एहतियात रखने की जरूरत पड़ती है।
मानसून आने के पहले ही हर साल 16 मई को राष्ट्रीय डेंगू दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का मकसद लोगों को इस घातक बीमारी के प्रति जागरुक करना है। हर साल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से डेंगू दिवस मनाया जाता है।
सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, डेंगू संक्रमण दुनिया भर के 100 से अधिक देशों में होने वाली एक आम समस्या है और लगभग 3 बिलियन लोग डेंगू से प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं। इनमें भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य भाग, चीन, अफ्रीका, ताइवान और मैक्सिको शामिल हैं।
नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में सिर्फ भारत में डेंगू के 67,000 से भी अधिक मामले दर्ज किए गए थे।
इस रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि वर्ष 2017 डेंगू के मामले में भारत के लिए सबसे खराब साल था। 2017 में लगभग 1.88 लाख डेंगू के मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से 325 लोगों ने इसके कारण अपनी जान गंवा दी थी।
डेंगू एक मच्छर जनित वायरल इंफेक्शन या डिजीज है। डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। एडीज मच्छर के काटने से डेंगू होता है। यह संक्रमण फ्लेव विरिडे परिवार के एक वायरस के सेरोटाइप- डीईएनवी-1, डीईएनवी-2, डीईएनवी-3 और डीईएनवी-4 के कारण होता है। हालांकि, ये वायरस 10 दिनों से अधिक समय तक जीवित नहीं रहते हैं।
जब डेंगू का संक्रमण गंभीर रूप ले लेता है, तो डेंगू रक्तस्रावी बुखार या डीएचएफ होने का खतरा बढ़ जाता है। इसमें भारी रक्तस्राव, ब्लड प्रेशर में अचानक गिरावट, यहां तक कि पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
डीएचएफ को डेंगू शॉक सिंड्रोम भी कहा जाता है। अधिक गंभीर मामलों में तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती कराने की जरूरत होती है वरना पीड़ित की जान भी जा सकती है। डेंगू का कोई विशिष्ट या खास उपचार उपलब्ध नहीं है। सिर्फ इसके लक्षणों को पहचानकर ही आप इस पर काबू पा सकते हैं।
इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हर सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्य की लगातार विज्ञापनों और अन्य माध्यमों से लोगों को डेंगू के प्रति जागरूक करने का काम करती आ रही है।
डेंगू की गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए सरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं। डेंगू का लार्वा मुख्य तौर पर जमे हुए साफ पानी में पैदा होता है और इसे पनपने के लिए जुलाई से लेकर अक्टूबर का वक्त काफी मुफीद होता है।
यही वजह है कि इस वक्त में काफी सतर्क रहना जरूरी होता है। पहले के मुकाबले लोगों में डेंगू की बीमारी को लेकर काफी जागरूकता बढ़ी है बावजूद इसके अब भी देश के अंदरूनी इलाकों में इस बीमारी के प्रति और जागरूकता फैलाने की जरुरत है। एडीज मच्छर के काटने से डेंगू की बीमारी होती है।
डेंगू हल्का या गंभीर दोनों हो सकता है। ऐसे में इसके लक्षण भी अलग-अलग नजर आते हैं। खासतौर से बच्चों और किशोरों में माइल्ड डेंगू होने पर कई बार कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं। संक्रमित होने के बाद डेंगू के हल्के लक्षण चार से सात दिनों के अंदर नजर आने लगते हैं।
इन लक्षणों में तेज बुखार के साथ सिरदर्द, मांसपेशियों, हड्डियों और जोड़ों में दर्द, उल्टी, जी मिचलाना, आंखों में दर्द होना, त्वचा पर लाल चकत्ते होना और ग्लैंड्स में सूजन होना लक्षण भी शामिल हो सकते हैं।
हालांकि, गंभीर मामलों में रक्तस्रावी बुखार या डीएचएफ के होने का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति में, रक्त वाहिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और रक्त में प्लेटलेट काउंट की कमी होने लगती है।
ऐसी स्थिति में गंभीर पेट दर्द, लगातार उल्टी होना, मसूड़ों या नाक से रक्तस्राव, मूत्र, मल या उल्टी में खून आना, त्वचा के नीचे रक्तस्राव होना, जो चोट जैसा नजर आ सकता है, सांस लेने में कठिनाई, थकान महसूस करना और चिड़चिड़ापन या बेचैनी लक्षण नजर आ सकते हैं।
डेंगू के जोखिम कारक की बात करें तो इसके कई कारक होते हैं, जो डेंगू से संक्रमित होने के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
डेंगू पीड़ित क्षेत्र में रहना : यदि आप उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां एडीज मच्छरों का प्रकोप अधिक है, तो आपके डेंगू से संक्रमित होने की संभावना स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।
पहले डेंगू संक्रमण होना : जिन लोगों को एक बार डेंगू हो जाता है, उनमें इस वायरल संक्रमण से प्रतिरक्षा नहीं हो पाती है। ऐसे में जब आपको दूसरी बार डेंगू होता है, तो अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना : जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उनमें भी डेंगू होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे में बुजुर्ग लोग डेंगू के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। साथ ही, मधुमेह, फेफड़ों के रोग और हृदय रोग से पीड़ित लोगों में भी डेंगू होने की आशंका बढ़ जाती है।
लो प्लेटलेट काउंट : डेंगू तब और अधिक गंभीर हो जाता है, जब पीड़ित व्यक्ति के रक्त में प्लेटलेट (थक्का बनाने वाली कोशिकाएं) काउंट काफी कम होने लगता है। ऐसे में यदि आपका प्लेटलेट काउंट का स्तर पहले से ही कम है, तो दूसरों की तुलना में डेंगू से जल्दी संक्रमित हो सकते हैं।
डेंगू से बचाव के लिए हमें कई बातों का रखें ध्यान चाहिए जैसे डेंगू का मच्छर आम मच्छरों से अलग होता है और ये दिन की रोशनी में काटता है। ऐसे में घर और आसपास मच्छरों को पनपने ना दें।
गर्मियों के चलते लगभग सभी घरों में कूलर का यूज किया जाता है। कूलर में पानी जमा होने से उसमें डेंगू का लार्वा पैदा होने का खतरा बढ़ता है। ऐसें में कूलर का पानी समय-समय पर बदलते रहना चाहिए और कूलर का उपयोग होने के तत्काल बाद उसका पानी खाली कर देंना चाहिए।
घर की छत पर रखे गमलों या किसी अन्य चीज में पानी जमा न होने दें। इसमें डेंगू लार्वा पैदा हो सकते हैं। अपने घर के अलावा आसपास की जगहों पर पानी जमा ना होने दें वरना उसमें भी डेंगू के लार्वा तेजी से फैलते हैं।
मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी, स्प्रे का प्रयोग करें जिससे मच्छर के काटने से बचें और इस घातक बीमारी से भी बचें।