लेखक- मुकेश तिवारी
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर मे विभाजन कारी एवं विवादित अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए निष्प्रभावी होने के बाद मोदी सरकार सबसे अहम काम जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों की तरह मुख्यधारा में शामिल करने का किया केंद्र सरकार के इस कदम ने घाटी के हालात तेजी से बदल के रख दिए थे, 5 अगस्त 2019 कोअनुच्छेद 370 निष्प्रभावी होने के पश्चात घाटी की सड़कों पर आए दिन होने वाली निरपराध लोगों की हत्या पर विराम लग गया था,यहीनहीजम्मू और कश्मीर में प्रशासन की लोगों तक पहुंच बढ़ी थी , साथ ही राज्य के आवाम को नए आत्मविश्वास से लबरेज भी कर दिया था ,विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासन ने काफी उम्दा काम किया वास्तविकता यह है किपिछले ढाई साल से भी ज्यादा समय में सुरक्षा बलों की कार्रवाई के चलते निरपराध कश्मीरी मारा नहीं गया ,कड़वा सच तो यह है कि अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी होने के पश्चात ही जम्मू-कश्मीर की तस्वीर काफी तेजी से बदलना शुरू हो गई थी जिस तेजी से घाटी में स्थितियां सामान हुई थी उसी तेजी से बीते कुछ समय से कुछ नकारात्मक तत्वों के कारण घाटी के हालात पुनः बिगड़ना शुरू हो गए इसका अंदाज इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों मैं रत प्रतिभाशाली छात्र राह भटक कर आतंकी गतिविधियों में बढ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं इन तथ्यों का खुलासा बीते दिनों सुरक्षा एजेंसियों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए चारों आतंकियों की पहचान के बाद हुई तफ्तीश मैं हुआ था ,मौजूदा हालात नेसुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा कर रख दी है उधर माता-पिता भी आपने प्रतिभाशाली बच्चो के अपराधिक दुनिया में कदम रखने से उनके भविष्य को ग्रहण लगता दे ख खासहैरान परेशान है, दरअसल में 2019 मैं अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए जाने के पश्चात जून 2020 से घाटी की स्थितियां बिगड़नाप्रारंभ हो गई थी गंभीरता से पुनः आकलन की जरूरत महसूस होने लगी थी ,कश्मीर में बीते कुछ महीनों में आतंकवादियों द्वारा अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के मकसद से एक जाति विशेष के निरपराध लोगों को लक्षित करके उनकी हत्या किए जाने से खौफ का वातावरण बन गया है कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा लक्षित हत्या की घटनाएं भले ही पहली बार नहीं हो रही हो फिर भी जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के समाप्त होने तथा उसके सीधे केंद्र के नियंत्रण में आने के पश्चात से और खासकर पिछले छह महीनों में ऐसी वारदात तेजी से बढ़ी है इससे भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी लक्षित हत्याओं के निशाने पर पहली बार बाहर से आए कामगार ही नहीं कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर शुरू की गई विशेष योजना के अंतर्गत घाटी में विभिन्न स्थानों पर तैनात किए गए करीब 5000 कर्मचारी तथा हिंदू शिक्षक भी है ,स्वाभाविक रूप से ऐसी घटनाओं से गैर स्थानी य लोग तथा कश्मीरी पंडित व अन्य हिंदुओं में दहशत बढ़ती जा रही है इसके साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए भले ही खीर भवानी मेले में कश्मीरी मुस्लिमों और पंडितों के मध्य एकजुटता की कसमें खाई गई हो ,मगर आए दिन मारे जा रहे कश्मीरी पंडितों की शव यात्रा में कश्मीरी मुसलमान संख्या में सबसे ज्यादा और सबसे आगे खड़े दिखाई देते हो लेकिन असलियत यह है कि कश्मीर का बाशिंदा टारगेट किलिंग की घटनाओं को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं,वह अब भी उसी तरह चुप्पी साधे हुए है, जैसी कि 1990 में सादे हुए था कश्मीर में अल्पसंख्यकों के साथ जो घटित हो रहा है उसके लिए समाज के एक बड़े हिस्से के मोन समर्थकनको भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए यह सब अकारण भी नहीं है इसकी खास वजह है और कई कारण भी जो कश्मीरी पंडित वर्षों से कश्मीर में रह रहे हैं और जिन्होंने 90 के दौर में भीघाटीमैबने अपने पुश्तैनी आवास को नहीं छोड़ा था उनकी शिकायत यह है कि सरकार ने कश्मीर में लौटे पंडितों के लिए तो सुविधाओं और रियायतोका अंबार लगा दिया ,लेकिन उनकी सुध नहीं ली ,जम्मू कश्मीर का जो बहु संख्य क तब का है उसके मध्य -बड़ेपैमाने पर य हआम धारणा बनाई गई है कि २०१९ के पश्चात विभाजन कारी एवं विवादित अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के पश्चात उनका रक्षा कवच खो गया है और कश्मीरी पंडितों को मिल रही तमाम तरह की सहूलियत और प्राथमिकता के चलते आने वाले वक्त में उनकी सामाजिक, आर्थिक ,और राजनीतिक हैसियत के लिए नकारात्मक साबित होंगी अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद जम्मू-कश्मीर में मूल निवासी प्रमाण पत्र जारी होने, भूमि स्वामित्व अधिकारों में संशोधन ,कश्मीरी पंडितों के लिए संपत्ति से संबंधित मुद्दों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल और विशेष रूप से परिसीमन को जनसंख्या गत बदलाव लाकर कश्मीरी पहचान को समाप्त करने की लंबी योजना के रूप में देखा गया है ,हालांकि यह सब कदम सुधारात्मक है और असंतुलन को ध्वस्त करने के मकसद से उठाए गए हैं लेकिन अलगाववादी समूह के साथ-साथ कश्मीरी मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने भी इसे भारी तत्वों के कश्मीरी मामले में अनावश्यक दखल के रूप में प्रचारित किया है क्यों से आने वाले समय में उनकी सामाजिक आर्थिक राजनीतिक हैसियत के लिए नकारात्मक साबित होगी अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी होने के बाद मूल निवासी प्रमाण हालांकि यह सब बात कहने में थोड़ी अटपटे लगती हो लेकिन कश्मीरी पंडितों को भी अब पूरी जनता के साथ 1990 में पलायन के दौर में भी 800 से ज्यादा ऐसे कश्मीरी पंडित परिवार थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर से पलायन नहीं किया था ,उन परिवारों ने पिछले 3 दशकों में काफी परेशानी झेली लेकिन वह यह भी जानते थे कि अपनी धरा को छोड़ना कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उनके सभी शुभचिंतक उनके साथ वहीं पर हैं ,सबके एक दूसरे के साथ बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं और यदि वे पलायन करते हैं तो वे सब हमेशा के लिए छूट जाएंगे ,बेशक खौफ का माहौल है लेकिन यह सब के लिए है यहां तक कि मुस्लिम परिवारों के लिए भी बल्कि उनके लिए तो और ज्यादा है क्योंकि कई बार तो उन्हें आतंकवादी और सुरक्षा बल दोनों के क्रोध का सामना करना पड़ता है, बेशक इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति बीते कुछ समय से खराब हो गई है।