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(विचार मंथन) कोरोना का डर 

(लेखक- सिद्वार्थ शंकर)

दुनिया के कुछ देशों में एक बार फिर से कोरोना के बिगड़ते हालात डराने वाले हैं। चीन में संक्रमण फैल रहा है और कुछ शहरों में लॉकडाउन भी लगा दिया गया है।
फ्रांस, इटली और जर्मनी में भी पिछले हफ्ते जिस तेजी से लाखों मामले अचानक आ गए, उससे लगने लगा कि कहीं पहले जैसे हालात तो नहीं बन रहे! दक्षिण कोरिया और हांगकांग में भी स्थिति विस्फोटक है।
अभी भी पूरी दुनिया में संक्रमण के कुल मामलों में 41 फीसद मामले एशिया से हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एशिया में एक बार फिर संक्रमण फैलने का बड़ा खतरा बताया है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी अब सामान्य दिनों की तरह शुरू होने जा रही हैं। इसलिए खतरा कहीं ज्यादा है।
भारत में कोरोना संक्रमण का रोजाना का आंकड़ा घट कर दो हजार से कम रह गया है। मौतों की संख्या भी घट रही है। दो साल बाद पहली बार हम सामान्य स्थिति में आ पाए हैं।
लेकिन इसका यह मतलब भी निकालना सही नहीं होगा कि महामारी चली गई है। सच तो यह है कि खतरा बरकरार है।

अब तक की तीन लहरों का अनुभव यही बताता है कि जरा-सी लापरवाही भी हमें फिर से बड़े जोखिम में धकेल देती है।

रोजाना संक्रमण, उपचाराधीन मरीजों और मौतों के आंकड़े कभी तेजी से बढऩे लगते हैं तो कभी कम होते दिखते हैं और हम मान बैठते हैं कि महामारी खात्मे की ओर है।
लेकिन हकीकत में अब तक ऐसा हुआ नहीं। फिर महामारी विशेषज्ञ भी अगली लहर के खतरे को लेकर कुछ कह पाने की स्थिति में हैं नहीं। इसलिए सतर्क रहने जरूरत तो है। यह हम देख ही चुके हैं कि दूसरी लहर आने के पहले कोरोना से मुक्ति का दावा किया जाने लगा था और इसी के बाद लोग बेहद लापरवाह हो गए थे।
इसका असर दूसरी लहर के दो महीनों में हुई दो लाख मौत के रूप में सामने आया था। भारत में मरने वालों का आंकड़ा अब पांच लाख के ऊपर निकल चुका है। दावा किया जाता रहा है कि भारत में मरने वालों की संख्या कई गुना ज्यादा है।
वैसे संक्रमण से मरने वालों की सही संख्या का पता लगा पाना इसलिए भी संभव नहीं दिखता क्योंकि हमारे पास ऐसा पुख्ता और सटीक तंत्र ही नहीं है।
एक अच्छी बात यह भी है कि आबादी के बड़े हिस्से का टीकाकरण हो चुका है। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कोरोना से पहले की स्थिति में सिर्फ तभी लौट पाएंगे, जब नागरिक समुदाय अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करेगा।
रोजाना संक्रमण का आंकड़ा नीचे आ जाना बता रहा है कि तीसरी लहर कमजोर पडऩे लगी है। हालांकि यह कहना भी एकदम सही नहीं होगा कि खतरा टल गया है।
इसलिए जब तक सरकार कह नहीं देती कि महामारी का खतरा पूरी तरह से खत्म हो गया है तब तक हमें यह मानकर चलना चाहिए कि देश कोरोना के खौफ से उबरा नहीं है। हमें अब भी पहले जैसी सतर्कता बनाए रखनी होगी, वैक्सीन भले ही क्यों न लग गई हो।

पिछले दो साल में देश महामारी की तीन लहरें देख चुका है।

दूसरी लहर के दौरान भारत दुनिया के उन देशों में शामिल था, जहां संक्रमण से सबसे ज्यादा तबाही हुई।
अमेरिका और ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा लोग भारत में मरे। हालांकि तीसरी लहर में कहर इसलिए ज्यादा नहीं बरपा कि आबादी के बड़े हिस्से को टीका लग चुका था और पिछली गलतियों से सरकारों और लोगों ने सबक भी लिए। इसलिए ज्यादा मौतें नहीं हुईं। पर अब चौथी लहर की बात हो रही है।
हालांकि विशेषज्ञ चौथी लहर को लेकर बहुत चिंतित नहीं हैं। भारत के ज्यादातर राज्यों में टीकाकरण का काम तेजी से चल रहा है। लेकिन अब एक मुश्किल यह है कि जिन लोगों ने एक साल पहले टीके लगवाए थे, उनका असर अब कितना रह गया होगा, कोई नहीं जानता।
ऐसे में अगर प्रतिरोधक क्षमता कम पडऩे लगी तो फिर से लोग संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। यह बड़ा खतरा है।
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