लेखक-ओमप्रकाश मेहता
देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में प्रसिद्ध कवि रहीम की पंक्तियों का अक्षरश: पालन करते हुए सत्ता के मोह को त्याग कर शिवसेना से पृथक हुए विधायकों के गुट विशेष के मुखिया को मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया है, संभवत: भारतीय प्रजातंत्र के इतिहास में यह एक अनूठा विस्मयकारी प्रयोग है, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराने का श्रेय विधायकों के इसी गुट को है, जिसे भारतीय जनता पार्टी ने समर्थन दिया है।
पिछले करीब एक पखवाड़े से राजनीतिक रूप से महाराष्ट्र सुर्खियों में है, शिवसेना की सरकार के प्रमुख उद्धव ठाकरे से नाराज होकर वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे अपने समर्थक शिवसेना के करीब अड़तीस विधायकों के साथ मुम्बई से पहले सूरत और बाद में गुवाहाटी चले गए थे। इस कारण उद्धव ठाकरे की सरकार अल्पमत में आ गई थी, क्योंकि उनके पास अपनी पार्टी के सिर्फ सोलह विधायक ही बचे थे। अन्तत: मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया और कल रात सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण की अनुमति दे दी और इस शक्ति परीक्षण के पूर्व ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उद्धव ठाकरे की शिवसेना से अलग होने के बाद एकनाथ शिंदे के विधायक गुट ने भाजपा का समर्थन लिया और उद्धव को सत्ता छोड़ने को मजबूर कर दिया। शिवसेना से रूठे शिवसेना व कुछ निर्दलीय इस तरह कुल पचास विधायक गुवाहाटी से गोवा होते हुए मुम्बई लौट आए। इनके मुंबई लौटने और उनके द्वारा भाजपा को समर्थन देने की घोषणा के बाद से ही राजनीतिक क्षेत्रों में यह तय माना जा रहा था कि भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे और एकनाथ शिंदे उप-मुख्यमंत्री बनेंगे, किंतु आज शाम श्री फड़नवीस ने पत्रकार वार्ता में राजनीतिक बम का विस्फोट करते हुए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री मनोनीत करने की घोषणा कर दी और घोषणा के चंद घंटों बाद श्री शिंदे की शपथ भी हो गई।
अब इसे भाजपा का नया सत्ता प्रयोग कहा जाए या अपने संरक्षण में ’कठपुतली‘ सरकार का गठन, यह तो प्रेक्षकों की सोच पर निर्भर है, किंतु अब यह कयास अवश्य लगने लगे है कि क्या यह प्रयोग फलीभूत होकर अगले ढाई साल तक चल पाएगा? क्योंकि यह तो तय है कि इस सरकार में बहुसंख्यक मंत्री भाजपा के ही होंगे और मुख्यमंत्री के गुट के एक दर्जन मंत्री ही रहेंगे, इसलिए सरकार पर दबदबा भाजपा या यूं कहे देवेन्द्र फडणवीस का ही रहेगा।
यह प्रयोग इसलिए भी थोड़ा अटपटा लगता है क्योंकि अब तक बड़ी पार्टी की ही सरकार रही है और महाराष्ट्र में तो जिस गुट की सरकार है, उसका तो अभी नामकरण भी नहीं हो पाया है? किंतु इस प्रकरण को यदि भाजपा की ’दरियादिली‘ कहा जाए तो कतई गलत नहीं होगा।
पिछले करीब एक पखवाड़े से राजनीतिक रूप से महाराष्ट्र सुर्खियों में है, शिवसेना की सरकार के प्रमुख उद्धव ठाकरे से नाराज होकर वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे अपने समर्थक शिवसेना के करीब अड़तीस विधायकों के साथ मुम्बई से पहले सूरत और बाद में गुवाहाटी चले गए थे। इस कारण उद्धव ठाकरे की सरकार अल्पमत में आ गई थी, क्योंकि उनके पास अपनी पार्टी के सिर्फ सोलह विधायक ही बचे थे। अन्तत: मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया और कल रात सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण की अनुमति दे दी और इस शक्ति परीक्षण के पूर्व ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उद्धव ठाकरे की शिवसेना से अलग होने के बाद एकनाथ शिंदे के विधायक गुट ने भाजपा का समर्थन लिया और उद्धव को सत्ता छोड़ने को मजबूर कर दिया। शिवसेना से रूठे शिवसेना व कुछ निर्दलीय इस तरह कुल पचास विधायक गुवाहाटी से गोवा होते हुए मुम्बई लौट आए। इनके मुंबई लौटने और उनके द्वारा भाजपा को समर्थन देने की घोषणा के बाद से ही राजनीतिक क्षेत्रों में यह तय माना जा रहा था कि भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे और एकनाथ शिंदे उप-मुख्यमंत्री बनेंगे, किंतु आज शाम श्री फड़नवीस ने पत्रकार वार्ता में राजनीतिक बम का विस्फोट करते हुए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री मनोनीत करने की घोषणा कर दी और घोषणा के चंद घंटों बाद श्री शिंदे की शपथ भी हो गई।
अब इसे भाजपा का नया सत्ता प्रयोग कहा जाए या अपने संरक्षण में ’कठपुतली‘ सरकार का गठन, यह तो प्रेक्षकों की सोच पर निर्भर है, किंतु अब यह कयास अवश्य लगने लगे है कि क्या यह प्रयोग फलीभूत होकर अगले ढाई साल तक चल पाएगा? क्योंकि यह तो तय है कि इस सरकार में बहुसंख्यक मंत्री भाजपा के ही होंगे और मुख्यमंत्री के गुट के एक दर्जन मंत्री ही रहेंगे, इसलिए सरकार पर दबदबा भाजपा या यूं कहे देवेन्द्र फडणवीस का ही रहेगा।
यह प्रयोग इसलिए भी थोड़ा अटपटा लगता है क्योंकि अब तक बड़ी पार्टी की ही सरकार रही है और महाराष्ट्र में तो जिस गुट की सरकार है, उसका तो अभी नामकरण भी नहीं हो पाया है? किंतु इस प्रकरण को यदि भाजपा की ’दरियादिली‘ कहा जाए तो कतई गलत नहीं होगा।