गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म का पावन पर्व है। यह पर्व गुरुओं के प्रति सम्मान, श्रद्धा एवं समर्पण का प्रतीक है। सनातन परंपरा में गुरु को सदैव ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मसूत्र, महाभारत और श्रीमद्भागवत जैसे 18 पुराणों के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा की जाती है। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने गुरुओं को उपहार देते हैं। साथ ही उनका आशीर्वाद लेते हैं।
इस वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि 13 जुलाई को पड़ रही है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का पर्व इस बार 13 जुलाई, बुधवार को मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
आषाढ़ पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ – 13 जुलाई सुबह 4 बजकर 1 मिनट से
आषाढ़ पूर्णिमा तिथि का समापन – 14 जुलाई आधी रात 12 बजकर 07 मिनट पर
गुरु पूर्णिमा पर बन रहे हैं शुभ योग
ज्योतिषीय गणना के मुताबिक इस बार गुरु पूर्णिमा पर मंगल, बुध, गुरु और शनि के अनुकूल स्थिति में विराजमान होने की वजह से शुभ योग बन रहे हैं। इसमें रूचक योग, भद्र योग, हंस योग और शश नामक राजयोग है। माना जाता है कि इस शुभ योग में गुरु पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी और जीवन सफल हो जाता है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु का हमारी जिंदगी में सबसे बड़ा योगदान होता है। गुरु हमें अंधकार की राह से प्रकाश के मार्ग की ओर ले जाने का कार्य करता है। गुरु की इसी महानता को देखते हुए संत कबीरदास ने लिखा है- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये। गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर बताया जाता है। हम अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का दृढ़ता के साथ सामना करते हैं। गुरुओं के चरण वंदना से हमारा जीवन सफल होता है। गुरु बिन ज्ञान न होए अर्थात इस संसार में बिना गुरु के ज्ञान के हमारा कल्याण संभव नहीं है।