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प्रदेश के बड़े शहरों से सटे जंगल के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

-4 सालों में भोपाल, इंदौर और ग्वालियर जैसे शहरों से सटे जंगल में बढ़ा अतिक्रमण

मप्र। देश के सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले राज्य मप्र की राजधानी भोपाल समेत बड़े शहरों से सटे जंगल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। अधिकारियों और रसूखदारों की मिलीभगत से वन क्षेत्र में लगातार अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। अवैध कटाई और अतिक्रमण ने जंगल की सीमाओं को सिकोड़कर रख दिया है। बीते चार सालों में वन और भू-माफिया ने भोपाल, इंदौर और ग्वालियर जैसे शहरों से सटे जंगल को वन और राजस्व महकमे के अफसरों की मिलीभगत से अपना निशाना बनाया और सैकड़ों हरे भरे वृक्ष काटकर फार्म हाउस काट दिए।
आलम यह है कि चार सालों में ढाई हजार हैक्टेयर से अधिक जंगल अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है। एक तरफ पढ़ा लिखा माना जाने वाला शहरी तबका जंगल को बेरहमी से ख़त्म कर रहा है तो दूसरी ओर आदिवासी अंचल में जंगल लगातार पल्लवित हो रहे हैं। जंगल से अपनी आजीविका चलाने वाला यह समाज इन्हें सहेज रहा है। आदिवासी अचंल में जंगल अतिक्रमण से भी मुक्त हैं। प्रदेश के जंगल अब वन माफियाओं के निशाने पर हैं। वनों की अवैध कटाई, अवैध उत्खनन और अवैध अतिक्रमण से जंगल साफ हो रहा है। हर साल करोड़ों की संख्या में हो रहे पौधारोपण के बाद भी हर साल वनक्षेत्र कम होता जा रहा है। प्रदेश के जंगल को शहरी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। जंगल के बड़े हिस्से पर अवैध आरी चलाकर कॉलोनियां डेवलप की जा रही हैं। शहरी क्षेत्रों से सटे जंगल में अतिक्रमण भी जमकर हो रहा है। पिछले चार साल में प्रदेश के पांच शहरी क्षेत्रों से सटे 2735 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण हो चुका है। भोपाल, जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर जैसे शहरी क्षेत्रों के जंगल में अतिक्रमण सबसे ज्यादा हो रहा है। वनों की अवैध कटाई भी और अवैध उत्खनन के मामले भी शहरी क्षेत्रों में ही बढ़ रहे हैं।
आदिवासी सहेज रहे वन
एक तरफ प्रदेश के शहरी क्षेत्र में आसपास वन क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं, वहीं इसके उलट अदिवासी बाहुल्य वन क्षेत्र में आदिवासी जंगलों की आज भी सहेज रहे हैं। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में अतिक्रमण के मामले बहुत कम है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बैतूल में साल 2018 से नवंबर 2021 तक महज 12 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण हुआ। इधर, साल 2018 से नवंबर 2021 तक भोपाल से सटे 476 वन क्षेत्र में अतिक्रमण हो गया। यही हाल दूसरे बड़े शहरों का है। ग्वालियर में तो पिछले चार साल में 899 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण हो गया है। उधर, आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र छिंदवाड़ा में बीते चार साल में सिर्फ 4 हेक्टेयर वनक्षेत्र में अतिक्रमण हुआ था।
बीस फीसदी से ज्यादा वन रक्षकों के पद खाली
वन भूमि पर अतिक्रमण रोकने में वन रक्षकों की कमी बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है। वन विभाग के पास वन रक्षक के स्वीकृत पद 20670 हैं। इनमें से 16281 वन रक्षक ही मैदान में हैं। करीब बीस फीसदी यानी चार हजार से ज्यादा वन रक्षकों के पद अब भी खाली हैं। वहीं वन क्षेत्रों में हो रही अवैध कटाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले साल वन विभाग ने अवैध कटाई के 40 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे। अतिक्रमण के ढाई हजार से ज्यादा मामले रिपोर्ट हुए। साल वर्ष 2009-10 में मप्र में अति सघन, सघन और खुला वनक्षेत्र 77700 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 77493 वर्ग किमी रह गया है। यानी 12 साल में 207 वर्ग किमी जंगल घट गया। ऐसा तब है, जब हर साल पौधारोपण होने का दावा किया जाता है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009 में 7 लाख 47 हजार, वर्ष 2010 में 6 लाख 60 हजार और वर्ष 2011 में 7 लाख 4 हजार पौधे रोपे गए। साल 2020-21 में वन विभाग ने 3 करोड़ 86 लाख से ज्यादा और साल 2021-22 में 3 करोड़ 2 लाख से ज्यादा पौधे लगाए। मप्र सरकार द्वारा पौधारोपण को लेकर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी जंगल घट रहा है। वर्ष 2019-20 में मध्यम घना जंगल 34341 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 34209 वर्ग किमी रह गया। यही नहीं, बहुत घने जंगल का रकबा भी दो किमी घटा ही है। वर्ष 2019-20 में ये आंकड़ा 6667 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 6665 वर्ग किमी पर आ गया। दूसरी तरफ वर्ष 2019 में ओपन फॉरेस्ट का दायरा 36465 वर्ग किमी था, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 36618 वर्ग किमी हो गया है। ओपन फॉरेस्ट का दायरा 153 वर्ग किमी तक बढ़ गया है। यानी जंगलों में अतिक्रमण और अवैध कटाई खूब हो रही है।
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