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हमने हाथों से खोया जोशीमठ, अब नित नए नुकसानों के लिए तैयार रहें

देहरादून. जोशीमठ में जो आज देखने को मिल रहा है वो पहाड़ के एक हिस्से में नहीं बल्कि उत्तराखंड के कई हिस्सों की बनती तस्वीर है. इसके लिए कई सारी चीज़ें ज़िम्मेदार हैं. जानकारों की मानें तो उत्तराखंड में पहाड़ों के खिसकने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसके लिए सबसे बड़ी वजह है पहाड़ों का दोहन और दूसरी तरफ सरकार की उदासीनता है. जानकारों की मानें तो इन परिस्थितियों के पीछे जो बड़ी वजहें हैं वो कुछ इस तरह हैं-

1- सबसे बड़ी वजह है जो इस पूरे मामले में नज़र आती है वह है पहाड़ों का कटाव. दरअसल चारधाम मार्ग यानी उत्तराखंड के चार धाम को जोड़ने वाली सड़क का चौड़ीकरण हो या फिर गांव-गांव को जोड़ने वाली सड़कें हो. जिस रफ़्तार से सड़क बनाने का काम किया जा रहा है और इस दौरान बड़ी-बड़ी मशीनों से पहाड़ों में ड्रिलिंग का काम किया जा रहा है उससे पहाड़ों में कंपन पैदा होता है और इसी कंपन की वजह से पहाड़ लगातार कमजोर होते जा रहे हैं. यही वजह है कि अक्सर बारिश होने पर उत्तराखंड में जगह-जगह लैंडस्लाइड और पहाड़ों के टूटने की तस्वीरें नज़र आने लगती हैं.

2-  दूसरी वजह है सड़क बनने के दौरान जो मलबा जमा होता है उस मलबे को लापरवाही में सीधे नदी में फेंक दिया जाता है. जिसके बाद नदी अपना रास्ता बदलती है और भूमि का कटाव शुरू हो जाता है. साथ ही नदी का स्तर भी बढ़ने लगता है. यही वजह है कि अक्सर बरसात के दिनों में गांव के गांव नदी में समाते हुए नजर आते हैं. जबकि NGT ने यह आदेश पहले से ही दिया है कि सड़क बनाते समय जो पत्थर और बाकी मलबा जमा होता है उसे किसी डंपिंग ग्राउंड में डाला जाए. इस तरीके से नदी में मलबा डालने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है. बावजूद इसके प्रशासन की अनदेखी के बीच लगातार मलबा नदियों में बहाया जा रहा है. जिस पर प्रशासनिक अधिकारियों ने कभी ध्यान ही नहीं दिया.

3- जानकार यह भी कहते हैं कि पहले से स्लाइड जोन में तब्दील हो चुके पहाड़ों के नीचे जब NTPC जैसे प्रोजेक्टों के लिए खुदाई होती है तो उसकी वजह से पहाड़ का ऊपरी हिस्सा कमजोर होने लगता है. जिसको लेकर समय-समय पर सरकार को चेताया भी गया. बावजूद इसके सरकार की नज़रअंदाज़ी कुछ इस तरह रही कि अब जोशीमठ जैसा बड़ा उदाहरण हम सबके सामने है.

4- पहाड़ों के दरकने की एक सबसे बड़ी वजह जंगलों का खत्म होना भी है. सड़क से लेकर भवनों के निर्माण के लिए पेड़ लगातार काटे जा रहे हैं. पहले से पलायन की मार झेल रहा उत्तराखंड काफ़ी वीरान हो चुका है. जंगल, खेत काफ़ी संख्या में पहले ही ख़त्म हो चुके हैं. जिन जगहों पर बसावट है भी वहां पर विकास के नाम पर होटल, ढाबे या फिर दूसरे तरह के कंस्ट्रक्शन लगातार होते जा रहे हैं, जिसकी वजह से पेड़ भी खूब काटे जा रहे हैं. इसका नुकसान ये होता है कि मिट्टी की पकड़ कमजोर होने लगती है और जमीन धंसने लगती है.

जोशीमठ के धंसने से क्या होगा नुकसान
जोशीमठ के धंसने से सिर्फ एक इलाके को नुकसान नहीं होने वाला बल्कि उत्तराखंड का एक बहुत बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित होने जा रहा है. जोशीमठ अगर धंस जाता है तो सबसे बड़ा नुकसान चीन बॉर्डर पर तैनात सैनिकों तक सामान पहुंचाना सबसे ज़्यादा मुश्किल होगा. क्योंकि बॉर्डर तक का मुख्य मार्ग जोशीमठ के जरिये ही पहुंचता है. दूसरा नुकसान सैकड़ों गांव भी मुख्य धारा से कट जाएंगे. इन लोगों तक मदद पहुंचाना भी मुश्किल हो जाएगा. तीसरा बड़ा नुकसान बद्रीनाथ धाम का मुख्य मार्ग भी पूरी तरह खत्म हो जाएगा. चौथा बड़ा नुकसान टूरिस्ट प्लेस ऑली जिसे टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर विकसित करने में सालों लगे वो भी जोशीमठ के साथ ढह जाएगा. वो इसलिये क्योंकि ऑली ठीक जोशीमठ के ऊपर ही बसा है. इसके बाद हजारों लोगों का रोजगार छिन जाएगा.

जोशीमठ कितना बड़ा खतरा
माना ये भी जा रहा है कि जोशीमठ अगर धंसता है तो इसके इर्द-गिर्द बहती नदियों का स्तर मलबा गिरने से बढ़ जाएगा और पानी दूसरे कस्बे में घुस जाएगा जिसके बाद बाकी इलाकों में भी भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. इसके साथ ही जोशीमठ कई ग्लेशियरों से घिरा हुआ इलाका है और जानकारों की मानें तो जोशीमठ में धंसाव के दौरान बड़ा कंपन होगा और इस कंपन की वजह से ग्लेशियर के बड़े हिस्से के टूटने का खतरा भी बढ़ जाएगा और अगर ये टूटता है तो नदियों का उफान बढ़ेगा और माना जा रहा है कि बड़ा सैलाब आ सकता है जो जोशीमठ से लेकर हरिद्वार तक तबाही मचाएगा. यानी एक बड़े नुकसान की आहट अभी से सुनाई दे रही है.

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