(लेखक – नरेन्द्र भारती)
पलक झपकते ही हापुड़ में अवैध पटाखा फैक्टरी शमशानघाट बन गई।लाशों के ढेर लग गए।चीखो पुकार मच गई।मजदूर जिंदा जलकर खाक हो गए।यह हादसा नहीं सरासर हत्याएं है।लापरवाही बरतने वालों को फांसी की सजा देनी चाहिए।यह दर्दनाक हादसा एक खौफनाक इबारत लिख गया।
4 जून 2022 को उतरप्रदेश के हापुड़ में एक पटाखा फैक्टरी में विस्फोट होने से 11 मजदूर जिन्दा जल गए तथा 15 मजदूर गंभीर रुप से घायल हो गए।गत 22 फरवरी 2022 को हिमाचल के जिला उना के हरोली उपमंडल के बाथू अवैध पटाखा फैक्टरी में विस्फोट होने से 6 महिलाएं जिंदा जल गई थी मरने वालों में एक मां व बेटी भी थी।
और 11 कामगार गंभीर रूप से घायल हो गए थे।अवैध पटाखा फैक्टरी के संचालको पर हत्या का मुकदमा दर्ज करना चाहिए।देश में मजदूरों के साथ होने वाले हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।
कारखानों व अवैध पटाखा फैक्ट्रियों में जिंदा जल कर मजदूर मर रहे हैं। अल सुबह मजदूरों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि पल भर में ही वह राख हो जाऐगे।ं मुआवजा इसका हल नहीं है। अवैध रूप से काम करने वाली फैक्ट्रियों पर छापेमारी करनी चाहिए।
प्रशासन को भी संज्ञान लेना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक ले सके।आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में भी एक ही दिन में दो हादसों में 19 मजदूर मारें गए थे जब राजधानी दिल्ली के बाहरी जिले में स्थित बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक पटाखें की फैक्टरी के गोदाम में भीषण आग लगनें के कारण 17 लोगों की मौत हो गई थी और तीस लोग बुरी तरह झुलस गए थे। मरने वालों में 10 महिलाएं तथा 7 पुरुष थी।
मजदूरों ने सपने में भी नही सोचा होगा कि यह पटाखा गोदाम शमशान बन जाएगा । पल भर में जिन्दा लोग राख में बदल गए यह बहुत ही त्रासदी थी।कैसी विडंबना है कि कभी सुरगों व उद्योगों में बेमौत मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है।देश में हर वर्ष मजदूर दबकर व जलकर मारे जा रहे हैं।
8 दिसंबर 2019 को राजघानी दिल्ली में रानी झांसी रोड़ पर स्थिित अनाज मंडी में आग लगने से 43 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा कई लोग घायल हो गए थे।एडीआरएफ की टीम ने केवल 56 लोगों की जान बचा ली थी।यह भीषण आग सुबह साढ़े चार बजे के करीब लगी थी।
आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट था।भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अंतर्गत मालिक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया था।यह मजदूर बिहार के समस्तीपुर के एक ही गांव के थे। 2019 में उद्योगों में आग के काफी मामले घटित हुए थे।
लगभग तीन घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका तब तक सब कुछ राख हो चुका था।आग के कारणों का पता नहीं चल पाया है।प्रशासन को चाहिए कि लापरवाही बरतने वालों को सजा दी जाए ताकि फिर ऐसे हादसे न हो सके।दूसरे हादसे में कानपुर में भी दो मजदूरों की मलबे में दबने से दर्दनाक मौत हो गई। एक दिन में ही 19 मजदूर मारे गए।यह बहुत ही दुखद है। ।बीते वर्ष में रायबरेली के ऊंचाहार में एटीपीसी संयंत्र का बॉयलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100 के लगभग घायल हो गए थे।
500 मेगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है।एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां ट्रांसफार्मर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी।
इन हादसों ने औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपुर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। यह बैरक लोहे व फाइबर की बनी थी। यह बहुत ही दुखद हादसा था।
आग लगने का कारण बिजली का शार्ट सर्किट था।इस बैरक में 100 से अधिक लोग रहते थे। मगर छुट्टी होने के कारण आसपास के लोग अपने घरों को चले गए थे। गनीमत रही की यह अपने-अपने घरों को गए थे वरना मृतको की संख्या 100 के लगभग होती ।नया वर्ष इन मजदूरों के लिए यमराज बन कर आया था और बेचारे टनल में ही जिन्दा जलकर राख हो गए थे इन अभागों ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा की नया साल उनके लिए घातक साबित होगा।
मारे गए मजदूरों में एक मजदूर हिमाचल के कांगड़ा का था तथा एक पंजाब का था बाकि बनिहाल-रामबन क्षेत्र के निवासी थे।सुरगं में घटित इस दर्दनाक हादसे ने कई प्रशन खड़े कर दिए है कि आखिर यह हादसे कब रुकेगें।यह कोई पहला हादसा नहीं है देश में अब तक हजारों मजदूर बेमौत मारे जा चुके है।
एक साल पहले हिमाचल के बिलासपुर में भी एक ऐसा ही हादसा घटित हुआ था जब फोरलेन का काम करते समय सुरंग ढह गई और तीन मजदूर उसमें दब गए मगर 12 दिन की कड़ी मशक्क्त के बाद दो मजदूरों को जिन्दा निकाला गया था।
एक मजदूर हिरदा राम कोई पता नहीं चल पाया था कि वह जिंदा था या मर चुका था लगभग 9 महीने बाद उसका शव बरामद हुआ था। हिमाचल के जिला किन्नौर में एक निर्माणाधिन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए थे। यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई सात मजदूर तो भागकर बच गए मगर बेचारे चार मजदूर जिंदा दफन हो गए।
इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई थी। हिमाचल में ऐसे बहुत हादसे हो रहे है हमीरपुर में भी गत दिनों दर्जनों मजदूर मारे गए थे। 2015 के फरवरी माह में एक सप्ताह में दो दर्दनाक हादसों में 10 मजदूर मारे गए और 20 मजदूर घायल हो गए। पहला हादसा हिमाचल के कुल्लु में हुआ तथा दूसरा मुंबई में हुआ। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए थे और 19 घायल हो गए थे।
और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी जो बिजली विभाग के एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर घायल हो गया था।
गोवा के कनाकोना शहर में एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मौत हो गई थी और 40 से अधिक लोगों की इमारत के भीतर दब गए थे। यह हादसा कनाकोना शहर में घटित हुआ था जो राजधानी पणजी से 80 किलोमीटर दूर था।
यह हादसा दोपहर तीन बजे के करीब हुआ जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे गत वर्ष महाराष्ट्र में एक इमारत के गिरने से 75 मजदूरों की असमय मौत गई थी और 60 मजदूर घायल हो गए थे आखिर कब तक मजदूर इमारतों में जमींदोज होते रहेंगे ।यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया था ।
भले ही प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है।ऐसे हादसे पहले भी हो चुके है जिसमें सैंकड़ों लोग लापरवाही के कारण मारे जा चुके हैं। इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है।हादसों को देखकर रोंगटे खडे हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भट्टों में मजदूर मारे जा रहे हैं।
मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं मगर भट्ठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है।मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है।मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है।आंकडे़ बताते है कि 2001 से 2021 तक हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं।
इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं सरकारें ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती।
देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। ।इन हादसों में सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए और कई मां-बहनों का सिदूर मिट गया और बहनों के भाई मारे गए।
केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक हादसों पर विराम लग सके।
अगर अब भी सरकार ने लापरवाही बरती तो निदोर्ष लोग व मजदूर बेमौत मरते रहेगें।ऐसे हादसों पर रोक के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाए ताकि भविष्य में ऐसे दर्दनाक की पुनरावृति न हो सके।
(वरिष्ठ स्तंभकार,पत्रकार)
(वरिष्ठ स्तंभकार,पत्रकार)