वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि । इस एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार कार्तिक के समान वैशाख मास उत्तम माना गया है उसी प्रकार वैशाख मास की यह एकादशी भी उत्तम कही गयी है। इसका कारण यह है कि संसार में सभी प्रकार के पापों का कारण मोह माना गया है। विधि विधान पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखने से मोह का बंधन ढ़ीला होता जाता है और मनुष्य ईश्वर का सानिध्य प्राप्त कर लेता है। इससे मृत्यु के बाद नर्क की कठिन यातनाओं का दर्द नहीं सहना पड़ता है। मोहिनी एकादशी के विषय में शास्त्र कहता है कि, त्रेता युग में जब भगवान विष्णु रामावतार लेकर पृथ्वी पर आये तब इन्होंने भी गुरू वशिष्ठ मुनि से इस एकादशी के विषय में ज्ञान प्राप्त किया संसार को इस एकादशी का महत्व समझाने के लिए भगवान राम ने स्वयं भी यह एकादशी व्रत किया। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को इस व्रत को करने की सलाह दी थी।
मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जब अमृत प्राप्ति को लेकर देव और दानवों के बीच विवाद छिड़ गया तब भगवान विष्णु अति सुंदर नारी रूप धारण करके देवता और दानवों के बीच पहुंच गये। इनके रूप से मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश इन्हें सौंप दिया। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। इससे देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है। इस एकादशी को संबंधों में आये दरार को दूर करने वाला भी माना गया है।
इस एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन साफ रखना चाहिए। प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे इसके बाद शुद्घ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु के मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और तुलसी, फल, तिल सहित भगवान की पूजा करें। व्रत रखने वाले को स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। किसी के प्रति मन में द्वेष की भावना नहीं लाएं और न किसी की निंदा करें। व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। शाम में पूजा के बाद चाहें तो फलाहार कर सकते हैं। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
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