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आर्थिक मंदी और कर्ज के बोझ से भारतीय अर्थव्यवस्था बारूद के ढेर पर 

 

लेखक- सनत कुमार जैन
– सत्ता की सियासत में गड़बड़ाया आर्थिक समीकरण

भारत की अर्थव्यवस्था और मंदी को लेकर रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट ने अर्थ – विशेषज्ञों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। सरकार भी इस स्थिति से निपटने के लिए फौरी प्रयास कर रही है। उससे अर्थ -व्यवस्था और बिगड़ रही है। महंगाई, बेरोजगारी, कर्ज, बढ़े हुए टैक्स एवं शुल्क को लेकर आम कर्ज के बोझ से जनता कराह रही है। 2014 में अच्छे दिन के नारे से केंद्र में नई सरकार आई है। 2014 में जो अर्थ – व्यवस्था थी। उसमें बेहतर तो नहीं हुआ, उल्टे 2022 तक भारत की आर्थिक स्थिति बद से बदहाल हो गई है। 2014 में भारत का अंतर्राष्ट्रीय कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये था जो अब बढ़कर 133  लाख करोड़ रुपया हो गया है। सरकार ने बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से भारी कर्ज लिया है। जीएसटी के दायरे में गरीब और अमीर सभी आ गए हैं। जीएसटी का दायरे में सामान, सेवाओं यहॉ तक की बैंकिंग एवं कर्ज को भी जीएसटी के दायरे में लाकर गरीबों पर भी भारी टैक्स लगाया गया है। इसके  बाद भी अर्थव्यवस्था सुधरने के स्थान दिवालिया होने की कगार पर पहुंच रही है।

– अंतर्राष्ट्रीय कर्ज
2014 में भारत के ऊपर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का कर्ज 53 लाख करोड़ था। जून 2022 में यह बढ़कर 133 लाख करोड़ रुपया हो गया है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में मार्च 2023 तक विदेशी कर्ज बढकर 153 लाख करोड़ होने का अनुमान है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में कर्ज का यह बोझ अकल्पनीय है। आर्थिक मंदी के दौर में कर्ज पर ब्याज के बोझ से आम जनता को राहत देने वाली योजनाओं को लागू रख पाना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा है।

विदेशी निवेश घटा :
वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में अमेरिका ने जैसी ही अपनी ब्याज दरें बढ़ाई। विदेशी निवेशक भारत से अपना निवेश निकालकर अमेरिका एवं अन्य देशों पर निवेश कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का जो दौर शुरू हुआ है। वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। विदेशी निवेशकों ने पिछले 6 माह में भारतीय बाजार से 2 लाख 18 हजार करोड़ का विदेशी निवेश निकाल लिया है। बाजार में गिरावट एवं आर्थिक मंदी के कारण भारतीय बाजार विदेशी निवेशकों के लिए लाभकारी नहीं रहे। वहीं भारत में उनका निवेश भी सुरक्षित नहीं रह गया। मौजूदा स्थिति भारत की आर्थिक स्थिति को विस्फोटक बना रही है।

महंगाई और बेरोजगारी –
भारत में पिछले दो वर्षों से महंगाई लगातार बढ़ रही है। महंगाई पर लगाम लगाने में सरकार असफल रही है। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और महंगाई के कारण आम आदमी पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। आर्थिक संकट के कारण हजारों कारोबारियों एवं औद्योगिक समूहों ने दिवालिया घोषित कर कर्ज से पल्ला झाड़ लिया है। बैंकों की बैलेंस शीट बेहतर बनाए रखने के लिए बैंकों के विलय और सार्वजनिक कंपनियों के निजीकरण के बाद भी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है।

-गरीबों की योजनाओं पर कटौती –
केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष की तुलना में बजट में सब्सिडी को काफी घटा दिया है। मनरेगा में पिछले वर्ष 98 हजार करोड़ का बजट था। जिसे घटाकर सरकार ने 73 लाख करोड़ कर दिया गया। आंगनवाड़ी, प्रधानमंत्री आवास योजना , स्वास्थ्य का बजट भी कम कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खास उज्जवला योजना का बजट 1618 करोड़ से घटाकर 800 करोड़ रुपये कर दिया। खाद की सब्सिडी 25 फीसदी कम हो गई है। अनाज की सब्सिडी घटा दी गई है। जीएसटी में 6 स्लेब और टैक्स के दायरे को तेजी से बढ़ाया गया। उसके बाद भी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
2014 के बाद से केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नोटबंदी, जीएसटी, सब्सिडी घटाने, टैक्स एवं शुल्कों में वृद्धि, जीएसटी के दायरे में सभी सेवाओं और गुड्स को शामिल करने, पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ाकर सरकार ने अपनी आय तो बढ़ाई है। किन्तु इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होने के स्थान पर साल-दर-साल खराब होती  जा रही है।
नई सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण सरकारी धन और सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे कॉरपोरेट जगत को मिल रहा है। जिसके कारण मध्यम वर्ग एवं कमजोर वर्ग की कमाई कम होती चली गई। इन पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा है। कॉरपोरेट टैक्स घटा, वहीं कारपोरेट की आय तेजी से बढ़ी। अमीरी और गरीबी के बीच तेजी से असमानता बढ़ रही है। वहीं महंगाई एवं बेरोजगारी ने आम आदमी का जीना मुहाल कर दिया है।

-2008 और 2023 की आर्थिक मंदी?
2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का भारत पर विशेष असर नहीं पड़ा था। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक मंदी  से निपटने की सराहना की थी। उस समय
भारत की कृषि आय और अनअर्गगाइजड सेक्टर की आर्थिकी ने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बना रखा था। 2014 के बाद विदेशी निवेशकों के लिए 100 फीसदी विदेशी निवेश की स्वीकृति देकर खुदा व्यापार, रक्षा, बैंकिंग मीडिया इत्यादि को भी कारपोरेट के हवाले कर दिया गया। सरकार की नीतियों कारपोरेट हितों को मजबूत बनाने वाली है। इससे भारत के छोटे कारोबारी एवं मध्यम वर्ग को बड़ा नुकसान हुआ है। सारा फायदा सीधे कॉरपोरेट को मिल रहा है। जिसके कारण 2023 की वैश्विक आर्थिक मंदी का मुकाबला सरकार किस तरह कर पाएगी। इसको लेकर आर्थिक विशेषज्ञ पिछले कई वर्षों से चिंता जता रहे थे। अब रिजर्व बैंक ने भी आर्थिक नीतियों से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया है।
सकल आय कार्ज
प्रति व्यक्ति सकल आय के मुकाबले कर्ज तेजी के साथ साल दर साल बढ़ रहा है। प्रति व्यक्ति सकल आय 1 लाख 87 है। वहीं प्रति व्यक्ति सकल कर्ज बढ़कर 1 लाख 13 हजार के उपर पहुंच गया है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार सकल जीडीपी का 60 फीसदी कर्ज का बोझ है।
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