Press "Enter" to skip to content

नूपुर’ की झंकार ‘सुप्रीम’ के प्रति ‘सुप्रीम’ की नाराजी….! 

लेखक- ओमप्रकाश मेहता

देश पर राज कर रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने जो विवादित बयान दिया वही बयान उनकी जगह किसी ओर द्वारा दिया गया होता तो क्या वह नूपुर की तरह महफूज रह पाता? बयान का चौतरफा विरोध होने पर भाजपा ने फोरी कार्यवाही कर नूपुर को प्रवक्ता पद से हटा दिया, किंतु क्या उनकी गिरफ्तारी हुई, जबकि उनके इस बयान से बकौल सुप्रीम कोर्ट पूरे देश में आग लग गई यही नहीं उनके उस बयान के एक समर्थक की राजस्थान के उदयपुर में  नृशंस हत्या तक कर दी गई, आखिर ऐसे खतरनाक माहौल को देखकर देश की सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप कर नूपुर शर्मा तथा उनके विवादित बयान की निन्दा करनी पड़ी, किंतु इस सबके बावजूद केन्द्र सरकार अभी भी मौन है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस माहौल के लिए केन्द्र को भी दोषी ठहराया है।
भाजपा की इस नैत्री के इस बयान के बावजूद दिल्ली में उनके खिलाफ कोई मामला तब तक दर्ज नही किया गया, जब तक कि इस मामले में केन्द्र के अधीन दिल्ली पुलिस पर कोई दबाव नहीं आया।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दायर एक याचिका कीक बहस के दौरान जब नूपुर के वकील ने कहा कि- ‘‘नूपुर की जान को खतरा है’’, तो माननीय न्यायमूर्ति का कहना था कि नूपुर की जान को खतरा नहीं, बल्कि नूपुर स्वयं देश के लिए खतरा है, न्यायालय ने दिल्ली पुलिस द्वारा उसके खिलाफ अब तक कोई कार्यवाही नहीं करने पर केन्द्र सरकार को भी आरोपी के कटघरे में खड़ा किया, सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर को निर्देश दिए कि वे टीव्ही चैनलों पर जाकर अपने इस बयान के लिए पूरे देश से माफी मांगें, वह भी बिना किसी शर्त के। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दिल्ली को छोड़ देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों में नूपुर के खिलाफ केस दर्ज हुए है और वे खेद व्यक्त करने के बजाय अभी भी ये सभी केस दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग कर रही है और उसकी वजह अपनी जान का खतरा बता रही है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय इस मांग से सम्बंधित नूपुर की याचिका को खारिज कर चुकी है।
अब यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र की मोदी सरकार कई मामलों के कारण विवादित होती जा रही है, फिर वह चाहे अग्निपथ योजना का मामला हो या कि इससे पूर्व की समान नागरिक संहिता या बुर्का प्रथा बंद करने के प्रयास हो, मोदी सरकार के और भी कुछ ऐसे कदम है जिनके कारण देश में साम्प्रदायिक विवाद बढ़ते जा रहे है।
देश के एक वरिष्ठ राजनायिक ने ठीक ही कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार आए दिए नए-नए विवादों में फंस कर अपनी लोकप्रियता खोती जा रही है इस सरकार ने पिछले कुछ महीनों में जितनी भी योजनाएं देश के सामने पेश की वे सभी देश के लिए ‘घाटे का सौदा’ सिद्ध हुई। हाल ही में कुछ अखबारों में छपा है कि सीएए, किसान, अग्निपथ तथा नूपुर प्रसंग के कारण हुई हिंसा-आगजनी आदि से देश को 646 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है और इन्ही वारदातों के कारण तथा सरकार के हर फैसले के विरोध के कारण ग्लोबल पीस इण्डेक्स (विश्व शांति सूची) में भारत 163 देशों की सूची में 135वें स्थान पर आ गया है और भारत के जीडीपी का 6 फीसदी हिस्सा हिंसा की आग में भस्म हो रहा है, किंतु भारत को इसकी कोई विशेष चिंता नही है? यदि यह चलता रहा तो भारत अफगानिस्तान को पीछे छोड़ पूरे विश्व के हिंसा वाले देशों की सूची में प्रथम स्थान पर पहुंच जाएगा। जबकि आज यह कोई सोचने को तैयार नहीं है कि हिंसा ही आज विकास की सबसे बड़ी बाधा है।
इस तरह कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि केवल राज्य या विधायिका के चुनाव जीत जाने से लोकप्रियता बढ़ती है? यह गलत है इसके लिए सरकार को जनसेवा के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी होगी, क्योंकि अब देश की आजादी के पचहत्तर साल बाद देश का आम वोटर शिक्षित व जागरूक हो गया है, उससे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है इसलिए समय रहते राजनीति को सही पथ की पहचान कर लेनी चाहिए।

Spread the love
More from Editorial NewsMore posts in Editorial News »