Kaal Bhairav Jayanti 2021: शास्त्रों ने अंधकाररूपी अज्ञान के भय से मुक्त करके ज्ञानरूपी प्रकाश का मार्ग दिखाने वाले शिव को ही ‘कालभैरव’ कहा है, जो शिव के क्रोध से ही प्रकट हुए हैं ।
शिव ही हैं ‘कालभैरव’-
शिवपुराण में कहा गया है कि, भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।मूढास्ते वै न जानन्ति मोहिता: शिवमायया।।अर्थात-भैरव ही पूर्ण रूप से जगत कल्याण करने वाले ‘शंकर’ हैं, किन्तु शिव माया के कारण मूढ़ लोग इस तत्व को नहीं जान पाते। ब्रह्मवैवर्तपुराण में महाभैरव, संहारभैरव, असितांगभैरव, रुद्रभैरव, कालभैरव, क्रोधभैरव, ताम्रचूड़भैरव तथा चंद्रचूड़भैरव इन्हीं आठ भैरवों की आराधना का विधान बताया गया है। कल्पभेद से इन सबके प्राकट्य की अलग-अलग कथाएं भी हैं,किन्तु वर्तमान श्रीवैवस्वत मन्वंतर में श्रीबटुक एवं श्रीकालभैरव की पूजा-आराधना सर्वाधिक की जाती है। श्रीबटुक भैरव को श्रीकालभैरव का ही सात्विकरूप माना जाता है ये अपने भक्तों को तत्काल कष्टों से मुक्ति देते हैं। इनकी पूजा आराधना से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने तथा भूत-प्रेत, मारण, मोहन, विद्वेषण उच्चाटन आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता।
कालभैरव के प्राकट्य की कथा-
श्रीकालभैरव के प्रकट होने की कई कथाएं प्रचलित हैं किन्तु वर्तमान प्रचलित कथाओं में ब्रह्मा जी के मानमर्दन की कथा सर्वाधिक लोकप्रिय है जो इस प्रकार है कि, एकबार देवताओं ने ब्रह्मा जी प्रश्न किया कि, हे परमपिता ! इस चराचर जगत में अविनासी तत्व कौन हैं.? जिनका आदि-अंत किसी को भी पता न हो ऐसे देव के बारे में हमें बताने की कृपा करें। ब्रह्मा जी ने कहा कि चराचर जगत में अविनासी तत्व तो केवल मै ही हूँ क्योंकि, ये श्रृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। मेरे वगैर सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। देवताओं ने यही प्रश्न श्रीविष्णु जी से किया तो उन्होंने कहा कि, मैं इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूँ अतः अविनासी तत्व तो मैं ही हूँ । इस सत्य के तह तक पहुंचने के लिए चारो वेदों को बुलाया गया। वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि, जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, जिनका कोई आदि-अंत नहीं है, जो अजन्मा हैं, जो जीवन-मरण, सुख-दुख से परे हैं, देवता-दानव जिनका समान रूप से पूजन करते हैं वे अविनासी कोई और नहीं भगवान ‘शिव’ ही हैं।
वेदों द्वारा शिव के विषय में इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी के पांचवें मुख ने शिव के विषय में कुछ अपमानजनक बातें कहीं जिन्हें सुनकर चारो वेद वेद अति दुखी हुए। उसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए, उन्हें देखकर ब्रह्मा जी कहा कि हे चंद्रशंक ! तुम मेरे ही शिर से पैदा हुए हो, अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ। तभी शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक दिव्यपुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि, तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उन दिव्यशक्ति संपन्न श्रीभैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाख़ून से ब्रह्मा के उस पांचवें मुख वाले सिर को ही काट दिया जिसने शिव के विषय में अपमानजनक बातें कहीं थीं। ब्रह्मा का सिर काटने के कारण इन्हें ब्रह्महत्या जैसा पाप भी लगा। शिव के कहने पर ये काशी प्रस्थान किये और ब्रह्महत्या से मुक्त हुए। शिव ने इन्हें उसी समय महाप्रलय में भी नष्ट न होने वाली अविमुक्त क्षेत्र काशी का कोतवाल नियुक्त किया। इनका दिव्य मंत्र ‘ॐ नमो भगवते कालभैरवाय’ का प्रतिदिन जप करने से प्राणी भयमुक्त रहता है ।