सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा के औद्योगिकीकरण पर जताई चिंता
देश में फार्मेसी कॉलेजों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि आजकल शिक्षा एक उद्योग बन गई है, और शिक्षा क्षेत्र में बड़े व्यापारिक घराने हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां मेडिकल एजुकेशन के क्षेत्र मोटी फीस लगने के कारण, भारत के छात्रों को यूक्रेन जैसे देशों में जाना पड़ता था। मेडिकल एजुकेशन वहां बहुत सस्ता है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की अवकाश पीठ ने यह टिप्पणी दो उच्च न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ भारतीय फार्मेसी परिषद द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए की।
मामले को 26 जुलाई को सुनवाई के लिए निर्धारित करते हुए पीठ ने कहा कि अधिसूचना के तहत अंतरिम आदेश के माध्यम से हम फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया को उन आवेदकों, जो उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता थे, के आवेदन को स्वीकार करने और संसाधित करने का निर्देश देते हैं और अंतिम निर्णय तक अनुमोदन या अस्वीकृति पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता है। मामले में फार्मेसी काउंसिल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि फार्मेसी कॉलेजों के तेजी से बढ़ने के कारण नए कॉलेजों को मान्यता देने पर स्थगन जारी किया गया था, और वास्तव में, ये संस्थानों की आड़ में बिजनेस हो रहा है।
जबकि कॉलेजों के वकील ने कहा कि मान्यता और स्वीकृति देने पर रोक के कारण उन्हें तीन साल का नुकसान हुआ है। इसका जवाब देते हुए एसजी मेहता ने कहा शीर्ष अदालत से कहा कि आपत्तिजनक बात यह है कि कॉलेज कह रहे हैं कि हमने तीन साल गंवाए। मैं छात्रों के लिए ऐसा मान सकता हूं, लेकिन कॉलेज के लिए नहीं, जो कि एक बिजनेस इंडस्ट्री हैं। याचिकाकर्ता ऐसी संस्थाएं थीं, जिन्होंने दावा किया था कि वे फार्मेसी कॉलेज स्थापित करना चाहती हैं और इसलिए उन्हें पीसीआई की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है। पीसीआई की रोक के कारण इसमें देरी हो रही है।
इससे पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए शैक्षणिक वर्ष 2020-21 से पांच साल के लिए नए फार्मेसी कॉलेज खोलने पर पीसीआई के द्वारा जारी रोक को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि मामले में पीसीआई द्वारा कार्यकारी अधिकार का प्रयोग अपनी शक्तियों से अधिक था और इसे कायम नहीं रखा जा सकता है।