* राज्यों को अपने नियम के अनुसार कोटा लागू करने का दे सकती है निर्देश
* इससे जुड़ा विवाद साल 2015 से ही सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है
इस साल राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी आरक्षण लागू हो सकता है। मंगलवार को राज्यसभा में सुशील मोदी ने इस मामले में आवाज उठाई. इस मुद्दे पर विभिन्न स्तरों से रायशुमारी के बाद केंद्र सरकार इस संबंध में जल्द फैसला लेने की तैयारी कर रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाईकोर्ट से जुड़ी कमेटी में ओबीसी कोटा लागू करने का समर्थन किया है। मानसून सत्र से पहले हुई राजग और सर्वदलीय बैठक में वाणिज्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने यह मामला उठाया था।
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष स्तर पर नीट में राज्य और राज्यों के मेडिकल कॉलेज में ओबीसी आरक्षण लागू न होने के मामले में कई बार मंथन हुआ है। खासतौर पर अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में भी इस पर चर्चा हुई। कई स्तर पर फीडबैक हासिल करने के बाद सरकार ने ओबीसी कोटा लागू करने के लिए कदम उठाने का मन बना लिया है।
इसके तहत राज्यों को अपने अपने राज्य के नियमों के अनुसार ओबीसी कोटा लागू करने का निर्देश दिया जा सकता है। वर्तमान में ओबीसी कोटा सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ही लागू है। विभिन्न राज्य और निजी मेडिकल कॉलेज एसटी, एसटी और आर्थिक रूप से पिछड़ों को 15 फीसदी कोटा दिया जा रहा है।
अनुप्रिया के बाद सुशील मोदी ने उठाया मामला
नीट में ओबीसी आरक्षण मामले में राजग की सहयोगी अपना दल की अध्यक्ष और वाणिज्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल के बाद मंगलवार को राज्यसभा में सुशील मोदी ने आवाज उठाई। अनुप्रिया ने 18 जून को हुई सर्वदलीय और राजग की अलग-अलग बैठकों में प्रधानमंत्री के समक्ष यह मामला उठाया था। इसके अलावा, उन्होंने गृहमंत्री और प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत स्तर पर भी पिछड़ा वर्ग में नाराजगी का हवाला देते हुए इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी। इसके बाद मंगलवार को राज्यसभा में भाजपा सांसद सुशील मोदी ने भी नीट में ओबीसी कोटा बहाली की मांग की।
स्वास्थ्य मंत्रालय का सकारात्मक रुख
सूत्रों का कहना है कि इस विवाद मामले में हाईकोर्ट द्वारा गठित कमेटी के समक्ष स्वास्थ्य मंत्रालय ने सकारात्मक रुख अपनाया। मंत्रालय ने कमेटी से कहा कि वह ओबीसी कोटा लागू करने के पक्ष में है। गौरतलब है कि इससे जुड़ा विवाद साल 2015 से ही सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। सरकार अब तक विवाद के सुप्रीम कोर्ट में होने का हवाला देते हुए हस्तक्षेप करने से दूरी बनाती रही है।