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इंदौर में न्याय की साख पर बट्टा: न्याय के मंदिर के सामने ही न्याय के रक्षकों का तांडव

डॉ. देवेंद्र मालवीय

Indore High court News : इंदौर की सड़कों पर उस समय अराजकता का नंगा नाच देखने को मिला जब न्याय के मंदिर (हाईकोर्ट) के सामने न्याय के रखवाले खुद ही कानून को अपने पैरों तले कुचलने लगे। पुलिस और वकीलों के बीच हुए विवाद ने पूरे शहर को हिला दिया। कल एक मामूली झड़प से शुरू हुई घटना ने आज ऐसा मोड़ लिया कि दोनों पक्षों ने अपनी हदें पार कर दीं।

कल पुलिस ने बिना सोचे-समझे लाठियां भांजी, और वरिष्ठ वकील के साथ उनके दो वकील पुत्रों को बर्बरतापूर्वक पीटते हुए थाने ले गई। लेकिन पुलिस की यह मनमानी वकीलों को नागवार गुजरी, और इसका बदला लेने के लिए उन्होंने आज दोपहर हाई कोर्ट चौराहे को जंग का मैदान बना दिया।

छुट्टी के बावजूद सैकड़ों की संख्या में उतरे वकीलों ने विरोध प्रदर्शन के नाम पर सड़क पर उत्पात मचाया, राहगीरों को पीटा और तुकोगंज थाना प्रभारी के साथ झूमाझटकी तक कर डाली। इस पूरे घटनाक्रम में कानून के दोनों स्तंभ—पुलिस और वकील—ऐसी स्थिति में आ गए कि जनता खुद को पूरी तरह असहाय महसूस करने लगी।

विरोध की आड़ में वकीलों ने जिस तरह से आम जनता पर हाथ उठाया, वह पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। क्या न्याय मांगने का यही तरीका है कि निर्दोष राहगीरों को  पीटा जाए? वीडियो फुटेज में साफ दिख रहा है कि कैसे प्रदर्शनकारी वकील राह चलते लोगों को मार रहे थे। दूसरी तरफ, पुलिस प्रशासन की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। आखिर किस आधार पर बिना जांच-पड़ताल के पुलिसकर्मियों ने वकीलों पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए थे ?

वकीलों का आरोप है कि तुकोगंज थाना प्रभारी और उनका ड्राइवर शराब के नशे में थे, लेकिन इस पहलू की कोई जांच नहीं हुई। यह कैसा कानून है, जहां एक पक्ष को सजा मिलती है और दूसरे पक्ष को बचाने की कोशिशें होती हैं? क्या न्याय सिर्फ सत्ता और रुतबे वालों के लिए है, और आम जनता को केवल मूकदर्शक बनकर सहन करना होगा?

वकीलों के साथ हुई मारपीट में परदेशीपुरा थाने के पांच पुलिसकर्मियों को वरिष्ठ अधिकारियों ने सस्पेंड कर दिया एवं देर शाम पुलिस के साथ हुई झूमाझटकी की घटना में अज्ञात वकीलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है, हालांकि वीडियो में सबके चेहरे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम ने इंदौर की शांति को तार-तार कर दिया है। पुलिस की लाठीचार्ज हो या वकीलों की गुंडागर्दी—दोनों ही घटनाओं ने साबित कर दिया है कि शहर में कानून का राज कमजोर पड़ चुका है। जिन वकीलों पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी थी, वे खुद कानून तोड़ने में जुटे रहे, और जिन पुलिसवालों को शांति व्यवस्था बनाए रखनी थी, उन्होंने बिना सोचे-समझे वकीलों पर डंडे बरसा दिए। इस घटनाक्रम से जनता का कानून पर से भरोसा और भी कमजोर हुआ है। वकीलों ने अब चेतावनी दी है कि यदि दोषी पुलिसकर्मियों पर एफआईआर की कार्रवाई नहीं हुई तो उनका आंदोलन और भी उग्र होगा।

सवाल यह उठते हैं –

होली के दिन मामूली झड़प पर पुलिस ने किसके कहने पर वरिष्ठ वकील और उनके वकील पुत्रों को लाठियों से भांज दिया ?

वकीलों ने अपने साथियों पर हुए हमले के विरोध में चक्का जाम किया, लेकिन खुद सड़कों पर कानून तोड़ने में क्यों लगे थे?

क्या यह पूरा घटनाक्रम अधिवक्ता संघ के चुनावों से जुड़ी राजनीति और शक्ति प्रदर्शन का नतीजा तो नहीं?

पांच पुलिसकर्मियों का निलंबन न्यायसंगत फैसला है या वकीलों के दबाव में लिया गया निर्णय? क्या इससे पुलिस का मनोबल कमजोर होगा?

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