आरोप प्रत्यारोप के बीच जनता वंचित है उच्च श्रेणी नर्सिंग स्टाफ से, दिक्कतें ऐसी कि हर बात को फर्जीवाड़ा दिखाकर कोर्ट में लग सकती है आपत्ति
- शासन जवाबदारियों से पल्ला झाड़ कॉलेज संचालकों पर फोड़ रहा बुराई का ठीकरा.
- संचालक चाहते हैं जब तक नियमों की पूर्ति न हो और सरकार नियत गाइडलाइन का पालन न करे तब तक घोषित हो जीरो सेशन.
- जिनकी चल रही सीबीआई जांच वही कर रहे निरीक्षण.
- संचालकों ने पत्र जारी कर की है शासन से मांग.
- शासकीय नर्सिंग कालेज भी नहीं कर रहे नियमों की पूर्ति.
Nursing College in Indore. मध्यप्रदेश में नर्सिंग कॉलेज फर्जीवाड़े पर सीबीआई की जांच चल रही है जिसके दायरे में 35 कॉलेजों के साथ ही मुख्य रूप से तीन संस्थाएं मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल (एमपीएनआरसी) और इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) है। जांच शुरू होते ही आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो गए हैं।
इस बीच सदभावना पाती ने पूरे मामले की पड़ताल की, हमारी विस्तृत रिपोर्ट कहती है कि इस पूरे मामले में फर्जीवाड़ा तो है ही, इसके साथ अनेकों विसंगतियां है जो इस फर्जीवाड़े को जन्म देती है, वहीं जांच से बचने के लिए ज़िम्भामेदार ग रहे हैं।
क्या है मामला और क्या हुआ था ग्वालियर हाईकोर्ट में –
ग्वालियर हाईकोर्ट को जवाब नहीं दे पाए थे जवाबदार अधिकारी, कोर्ट ने कहा था जिस तरह ये नर्सिंग कॉलेज चल रहे हैं लगता है शिक्षा की दुकानें हैं, मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, एमपीएनआरसी और आईएनसी के रिकॉर्ड की जांच सीबीआई को करने के आदेश दिए थे।
दरअसल एनरोलमेंट के मामले में सुनवाई के दौरान प्रथम दृष्टया कोर्ट को ये लगा कि कॉलेजों को मान्यता व संबद्धता देने में नियमों की अनदेखी की गई है। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने जांच का जिम्मा सीबीआई को दिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जब डीएमई से प्रकरण के संबंध में जानकारी चाही तो वे संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए थे।
नर्सिंग कॉलेजों की संबद्धता व नामांकन का काम करने वाली तीन संस्थाएं मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल और इंडियन नर्सिंग काउंसिल के रिकॉर्ड की जांच के आदेश जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस एमआर फड़के की डिवीजन बेंच ने सीबीआई के निदेशक को दिए थे कि वे तीनों संस्थाओं का संबद्धता व नामांकन संबंधी रिकार्ड जांचने के लिए विशेष टीम बनाएं और तीन माह में जांच पूरी कर हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करें। मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी को होगी।
क्या है कॉलेज संचालकों के मांग पत्र में?
उच्च न्यायालय के द्वारा सीबीआई को जांच देने के बाद एमपीएनआरसी ने प्रदेश के सारे कॉलेजों की जांच शुरू कर दी है। इस बीच कुछ कॉलेज संचालकों ने मांग पत्र संचालनालय और मंत्री को भेजे हैं, जिनकी मुख्य मांग है-
सत्र 2023-24 के लिए मान्यता नियम 2018 में परिवर्तन किया जाए।
स्टाफ – स्टूडेंट टीचर रेश्यो 1:10 में नियमित स्टाफ, विजिटिंग स्टाफ, गेस्ट टीचर तथा एडहॉक स्टाफ शामिल हो क्योंकि काउंसिल द्वारा महाविद्यालय को एक वर्ष हेतु मान्यता दी जाती है, तो हम स्टाफ परमानेंट कैसे नियुक्त कर सकते है।
बता दें की AICTE के स्टूडेंट टीचर रेश्यो डिप्लोमा कोर्स के लिए 1:25 है और डिग्री के लिए 1:20 है. वहीँ यूजीसी के नियम में भी ये रेश्यो 1:20 है. नर्सिंग कोर्स के लिए ये रेश्यो बहुत कम होने से स्टाफ की कमी हो जाती है।
नाईट शिफ्ट – अस्पताल में 1:3 के छात्र एवं बिस्तर के अनुपात को खत्म किया जाए, इसके स्थान पर सभी महाविद्यालयों से क्लिनिकल चार्ट लिया जाए उसके आधार पर मान्यता प्रदान की जाए।
भवन – किराए के भवन में मान्यता देने की प्रक्रिया को तुरंत बंद किया जाए।
क्या है विसंगतियां –
दरअसल सत्र 2022 की मान्यता के निरिक्षण चल रहे है जबकि अभी तक सत्र 2020 और 2021 के बीएससी, एमएससी और पोस्ट बेसिक की परीक्षा ही नहीं हुई है। शासन से सवाल यह कि एडमिशन तो करा रहे हैं पर इनकी परीक्षाएं कब होंगी? पूछने पर शासन इसका ठीकरा युनिवर्सिटी पर फोड़ता है लेकिन युनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार भी तो शासन के अधीन ही है।
एक्ट के अनुसार नर्सिंग काउंसिल के चेयरमैन डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेस (DHS) है, यह पूरी तरह से अप्रासंगिक है जबकि इसकी जगह पर चेयरमैन डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (DME) होना चाहिए क्योंकि यह एक मेडिकल कोर्स है।
इंडियन नर्सिंग काउंसिल को पुरे देश में नियमों को रेगुलेट करने की अथॉरिटी है। इसके नियमानुसार एडमिशन की आखिरी तारीख 31 अक्टूबर है, जबकि मप्र में कॉलेजों की मान्यता और संबद्धता इस तारीख के बाद ही होती है और प्रवेश नवम्बर तक चलते है जिसके कारण अन्य सभी तारीखें और शेड्यूल्स गड़बड़ा जाते है।
इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियमानुसार 5 साल से संचालित कॉलेजों को स्थाई अनुमति दी जाना चाहिए। स्टेट नर्सिंग काउंसिल ने भी 4 साल की अनुमति का प्रावधान किया था परन्तु किसी भी संस्था को स्थाई अनुमति का लाभ नहीं दिया गया है, जबकि अनेक संस्थाएं 15 वर्ष अधिक से संचालित है। शासन की मनमानी का आलम यह है कि किसी संस्था की सीट कभी बढ़ा दी जाती है तो कभी कम कर दी जाती है।
आईएनसी ने वर्तमान में सेमेस्टर सिस्टम लागू कर दिया है, वहीँ मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी 2 साल पीछे चलते हुए पोस्ट मेच्योर बेबी की भूमिका में है।
नर्सिंग पोर्टल में एडिट ऑप्शन नहीं होने से फैकल्टी, इत्यादि जानकारी चेंज नहीं हो पाती जिससे फैकल्टी एक ही समय में दो जगह दिख जाती है। यूजीसी कोड 28 का पालन नहीं हो रहा है।
संचालक क्यों कर रहे है जीरो सेशन की मांग?
नर्सिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष अभय पांडे का कहना है कि इस साल 2022-23 में मान्यता नहीं दी जाए और यूनिवर्सिटी पहले बच्चों के पूर्व सत्रों की परीक्षा कराए, लेट लतीफ़ी के इस ढर्रे को सही किया जाए, सेशन ट्रेक पर लाए जाएं, उसके बाद ही आगामी सत्रों की मान्यता की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए।
शासकीय कॉलेज भी नहीं है नियमानुसार – शासकीय कॉलेजों में भी अनेकों गड़बड़ियां हैं। यहाँ भी स्टाफ, भवन, लैब, इत्यादि में अनेकों कमियां है। चूँकि शासकीय है इस कारण जांच में नहीं आ पाते।
सदभावना सवाल ?
उच्च न्यायालय के आदेश से सीबीआई मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, एमपीएनआरसी, और आईएनसी की जांच कर रही है। ऐसे में कॉलेजों का निरीक्षण करवाया जाना कितना उचित है? यदि जांच उपरांत उच्च न्यायालय एमपीएनआरसी को भंग कर देता है या कोई नयी व्यवस्था लागू कर देता है तो इन जांचों का क्या औचित्य रह जायेगा?