पुराणों में वर्णित है कि प्राचीन काल में राजा बलि नामक दैत्य राजा हुआ करते थे। वह अपनी प्रजा के लिए किसी देवता से कम नहीं था| अन्य असुरों की तरह वह अपने तपोबल से कई दिव्य शक्तियां हासिल कर वह देवताओं के लिए मुसीबत बन गया था। उनकी अच्छाइयों के कारण जनता उनके गुणगान करती थी। उनका यश बढ़ते देखकर देवताओं को चिंता होने लगी तब उन्होंने भगवान श्री विष्णु से अपनी बात कही। देवताओं की बात सुनकर विष्णु भगवान ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से दान में तीन पग भूमि मांग ली।
वामन भगवान ने दो पग में धरती और आकाश नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए उनके पास जगह ही नहीं थी। तब राजा बलि ने अपना सिर झुका दिया। वामन भगवान ने पैर रखकर राजा को पाताल भेज दिया। लेकिन उसके पहले राजा बलि ने साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आने की आज्ञा मांग ली। सदियों से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि ओणम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, इसी खुशी में मलयाली समाज ओणम मनाता है। इसी के साथ ओणम नई फसल के आने की खुशी में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर केरल के पारंपरिक लोकनृत्य शेर नृत्य, कुचिपुड़ी, गजनृत् आदि के साथ यह दिन बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। माना जाता है कि तब से लेकर अब तक ओणम के अवसर पर राजा महाबलि केरल के हर घर में उनका हालचाल जानने और उनके कष्टों को दूर करने आते हैं।
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