Religious And Spiritual News – आज है गुरु तेग बहादुर सिंह जी का शहीदी दिवस, 

sadbhawnapaati
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सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। उन्होंने धर्म, मानवीय मूल्य, आदर्श तथा सिद्धांतों की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। बचपन में त्यागमल नाम से पहचाने जाने वाले गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म पंजाब के अमृतसर में वैशाख कृष्ण पंचमी तिथि को हुआ था। बचपन से वे बहादुर, निर्भीक, विचारवान और उदार चित्त स्वभाव वाले थे।

Guru Teg Bahadur – गुरु तेग बहादुर सिंह ने धर्म की रक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करके सही अर्थों में ‘हिन्द की चादर’ कहलाए। गुरु तेग बहादुर सिंह के अनुसार किसी की भी गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो। वे कहते थे एक सज्जन व्यक्ति वह है जो अनजाने में भी किसी की भावनाओ को ठेस ना पहुंचाएं। हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह एक जीवित प्राणी के प्रति दया भाव रखें और अपने मन से घृणा का विनाश करें।

अपने कई खास उपदेशों, विचारों और धर्म की रक्षा के प्रति अपना जज्बा कायम रखने वाले गुरु तेग बहादुर सिंह का सिख धर्म में अद्वितीय स्थान है। वे गुरु हर गोविंद सिंह जी के पांचवें पुत्र थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरि गोविंद साहब की छत्रछाया में हुई। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में अपना साहस दिखाकर वीरता का परिचय दिया और उनके इसी वीरता से प्रभावित होकर गुरु हर गोविन्द सिंह जी ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया। उन्होंने इसी समयावधि में गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र और घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की।

गुरु तेग बहादुर जी 24 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे और सिख धर्म में नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि को ही शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार वे 11 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। माना जाता है कि 4 नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली लाया गया था, जहां मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से इस्लाम या मौत दोनों में से एक चुनने के लिए कहा।

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