एपल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन समेत अन्य टेक कंपनियों के प्रतिनिधि मंगलवार को आईटी मामलों की संसदीय समिति के सामने पेश होंगे। इन कंपनियों को लोकसभा सचिवालय द्वारा नोटिस जारी किया गया है।
पेशी के लिए इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के टॉप भारतीय अधिकारियों को आना है। ये अधिकारी कमेटी के सामने अपनी-अपनी कंपनी की तरफ से गवाही देंगे।
इन कंपनियों को किस मामले में नोटिस जारी किया गया है? इससे पहले क्या किसी और कंपनी से इस तरह की पूछताछ हुई है? क्या पहले भी इन कंपनियों को किसी मामले में संसद की किसी कमेटी के सामने पेश होना पड़ा है? आइये जानते हैं…
इन कंपनियों को किस मामले में नोटिस जारी किया गया है?
इस वित्त संबंधी स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद जयंत सिन्हा है।
उनकी अध्यक्षता वाली ये समिति बाजार में प्रतिस्पर्धा के विभिन्न पहलुओं पर गौर कर रही है। खासतौर पर इस बात की पड़ताल हो रही है कि क्या बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां बाजार से प्रतिस्पर्धा खत्म करने वाले कदम उठा रही हैं।
नोटिस जारी करने वाली समिति के अध्यक्ष जयंत सिन्हा का कहना है कि दुनिया की बड़ी आईटी कंपनियों की भारतीय शाखाओं के शीर्ष अधिकारी संसदीय पैनल के सामने पेश होंगे।
ये समिति डिजिटल स्पेस में प्रतिस्पर्धा विरोधी प्रथाओं को देख रही है। दरअसल, कमेटी को विभिन्न टेक कंपनियों के कथित प्रतिस्पर्धा विरोधी तरीकों के बारे में शिकायतें मिली हैं। इसी को लेकर कमेटी जांच कर रही है।
इससे पहले क्या किसी और कंपनी से इस तरह की पूछताछ हुई है?
यह संसदीय समिति पहले ही इस मुद्दे पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई), कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और भारतीय तकनीकी फर्मों के साथ विचार-विमर्श कर चुकी है।
खाद्य वितरण प्लेटफॉर्म स्विगी और जोमैटो के प्रतिनिधि, ई कॉमर्स क्षेत्र की बड़ी कंपनी फ्लिपकार्ट, कैब एग्रीगेटर ओला, होटल एग्रीगेटर ओयो और ऑल इंडिया गेमिंग एसोसिएशन को यह समिति पहले ही बुला चुकी है।
इससे पहले संसद की आईटी मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने 2020 में द वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण मांगते हुए फेसबुक को भी तलब किया था।
इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कैसे सोशल मीडिया कंपनी ने जानबूझकर एक नेता के नफरत भरे भाषणों पर आंखें मूंद ली थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक को डर था कि यदि उसने इस पर कोई कार्रवाई की तो इससे भारत में फर्म के व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच सकता है, जो इसका सबसे बड़ा बाजार है।
पिछले साल भी ट्विटर और फेसबुक को सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय समिति के सामने पेश होना पड़ा था।सोशल मीडिया पर लोगों के अधिकारों की सुरक्षा कैसे की जाए और इन प्लेटफॉर्म्स का गलत इस्तेमाल कैसे रोका जाए, इन विषयों पर समिति ने दोनों कंपनियों के अधिकारियों से बात की थी।
बीते मार्च में भी सूचना प्रौद्योगिकी मामलों की स्थायी समिति के सामने फेसबुक की पेशी हुई थी। इस पेशी में फेसबुक के अधिकारियों को राजनीतिक तौर पर पक्षपात करने वाले एल्गोरिद्म का इस्तेमाल करने के आरोपों का जवाब देना पड़ा था।
फेसबुक पर एक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए तकनीक का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप था। इसके साथ ही नफरत फैलाने वाले कंटेंट को बढ़ावा देने के आरोपों पर भी फेसबुक के अधिकारियों को सफाई देनी पड़ी थी।
क्या इन टेक कंपनियों को किसी अन्य देश में भी इस तरह पेश होना पड़ा है?
पिछले साल भी फेसबुक, ट्विटर और गूगल के सीईओ को अमेरिकी कांग्रेस के सामने पेश होना पड़ा था। उस वक्त इन कंपनियों पर 6 जनवरी को हुई कैपिटल दंगों के दौरान गलत सूचना फैलाने का आरोप लगा था। 2019 में फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग को अमेरिकी कांग्रेस के सामने पेश होना पड़ा था।
उनकी कंपनी फेसबुक पर निजता, नफरत वाले संदेश और बाजार की असीम शक्ति के दुरुपयोग के आरोप लगे थे। जुकरबर्ग को निजता के उल्लंघन, घृणा फैलाने वाले या गलत जानकारी देने वाले संदेशों को हटाने से जुड़े सवालों के जवाब देने पड़े थे। 2018 में कैंब्रिज एनालिटिका डेटा लीक मामले में भी जुकरबर्ग को अमेरिकी कांग्रेस ने तलब किया था।