मत कर अभिमान तू तन पर, तेरा कर्म ही पूजा जायेगा।
पंचतत्व का तन यह तेरा, सच मिट्टी में मिल जायेगा।।
मत कर अभिमान तू …।।
मान तू खुद को खुशकिस्मत, मानव तन तुमको मिला।
करने को कल्याण सभी का ,अवसर यह तुमको मिला।।
अपना समय बर्बाद नहीं कर, ऐसे ऐशो – आराम में तू।
अपनी खुशियां बांट सभी को, तुम्हें याद किया जायेगा।।
मत कर अभिमान तू …।।
मत कर तू बदनाम खुद को, सुंदरता पर अभिमान कर।
भेदभाव तू मन से मिटाकर , यहाँ सबका सम्मान कर।।
तन सुंदर और मन मैला, ऐसा जीवन किस काम का।
जीना सीख सभी के लिए तू , तन तेरा धन्य हो जायेगा।।
मत कर अभिमान तू …।।
देश के कल्याण में , तेरा तन अगर काम आये।
तेरे तन की यह सुंदरता, कुर्बान वतन पर हो जाये।।
बहुत बड़ा है कर्ज वतन का, तेरे इस हसीन तन पर।
बलिदान वतन पर कर दे तन, यह तन अमर हो जायेगा।।
मत कर अभिमान तू …।।
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
(साहित्यकार एवं शिक्षक)