भादों माह शुक्लपक्ष की अष्टमी को श्री राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। अबकी बार यह त्योहार आज यानि 25 अगस्त को मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार कृष्ण के जन्मदिन भादों कृष्णपक्ष अष्टमी से पन्द्रह दिन बाद शुक्लपक्ष की अष्टमी को दोपहर अभिजित मुहूर्त में श्री राधा जी राजा वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। श्रीराजा बृषभानु और उनकी धर्मपत्नी श्री कीर्ति ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर पाला था। ब्रह्मकल्प, वाराहकल्प और पाद्मकल्प इन तीनों कल्पों में राधा जी का, कृष्ण की परम शक्ति के रूप में वर्णन मिलता है। जिन्हें भगवान् श्री कृष्ण ने अपने वामपार्श्व से प्रकट किया है। तभी वेद-पुराण आदि इनका ‘कृष्णवल्लभा’ ‘कृष्णात्मा’ कृष्णप्रिया’ आदि कहकर गुणगान किया गया है।
पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन है कि भगवान श्रीविष्णु ने कृष्ण के रूप में धरती में अवतार लेने के पहले अपने भक्तों को भी पृथ्वी पर चलने का संकेत दिया था। इसके बाद विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रूप में पृथ्वी पर आईं थीं। दोपहर 01 बजकर 58 मिनट पर सप्तमी तिथि समाप्त हो जाएगी इसके बाद अष्टमी तिथि आरंभ हो जाएगी, जो 26 अगस्त को दिन के 10बजकर 28 मिनट तक रहेगी। राधा-कृष्ण के भक्तों के लिए राधा अष्टममी का विशेष महत्वा है। शास्त्रों में मान्यता है कि जो लोग इस व्रत को करते हैं उनके घर में धन की कमी नहीं होती। उन लोगों पर श्रीकृष्ण और राधा की कृपा होती है। यही वजह है कि अपने आराध्यक कृष्णक को मनाने के लिए भक्तक पहले राधा रानी को प्रसन्नी करते हैं। मान्यतता है कि राधा अष्ट्मी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट् हो जाते हैं। सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करें इसके बाद नए वस्त्र धारण करें। अब एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर श्री कृष्ण और राधा जी की प्रतिमा स्थापित करें। साथ ही कलश भी स्थापित करें। पंचामृत से स्नान कराएं, सुंदर वस्त्र पहनाकर का दोनों का श्रंगार करें। कलश पूजन के साथ राधा कृष्ण की पूजा भी करें। उन्हें फल-फूल और मिष्ठान अर्पित करें। अब राधा कृष्ण के मंत्रों का जाप करें, कथा सुने, राधा कृष्ण की आरती गाएं।
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