सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जस्टिस रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न मामले को बंद कर दिया है। कोर्ट ने कहा इस मामले में गठित कमेटी द्वारा जो रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दी गई है, उसे सीलबंद लिफाफे में ही रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पूर्व जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। जस्टिस पटनायक कमेटी ने अक्टूबर 2019 में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंप दी थी।
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सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्सव बैंस ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे यौन शोषण के आरोपों के पीछे साजिश होने का दावा किया था। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने उन्हें नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने बैंस को दायर शपथपत्र में दावों को स्पष्ट करने को कहा था। बैंस ने अपनी जिस फेसबुक पोस्ट में साजिश की बात कही थी, उसी में उन्होंने ये भी लिखा था कि मुझे लोगों को ये बात बताने से पहले कई वरिष्ठ शुभचिंतकों ने रोका था। शुभचिंतकों ने मुझसे कहा था कि जिन जजों की लॉबी ने ये साजिश रची है, वो मेरे खिलाफ हो जाएगी और मुझे व्यावसायिक रूप से नुकसान पहुंचाएगी।
शीर्ष अदालत की पूर्व कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था। 35 वर्षीय यह महिला अदालत में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर रही थीं। उनका कहना था कि चीफ जस्टिस द्वारा उनके साथ किए ‘आपत्तिजनक व्यवहार’ का विरोध करने के बाद से ही उन्हें, उनके पति और परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
पिछले साल 26 अप्रैल को इस मामले में बनी जांच समिति की पहली बैठक हुई और पीड़िता समिति के समक्ष पेश हुई थीं। इसके बाद जस्टिस रंजन गोगोई भी समिति के सामने पेश हुए थे। मामले की सुनवाई शुरू होने के कुछ दिन बाद पीड़ित ने आंतरिक समिति के माहौल को डरावना बताते हुए समिति के समक्ष पेश होने से इनकार कर दिया था। शिकायतकर्ता महिला ने अदालत में अपने वकील की मौजूदगी की अनुमति नहीं दिए जाने समेत अनेक आपत्तियां जताते हुए आगे से समिति के समक्ष नहीं पेश होने का फैसला किया था।
महिला कर्मचारी जांच समिति की कार्यवाही में यह कहकर शामिल नहीं हुई थीं कि उन्हें लीगल रिप्रेजेंटेशन की अनुमति नहीं दी गई। बाद में समिति के फैसले पर महिला ने निराशा जताई थी। इस मामले के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल के ऑफिस ने बयान जारी कर इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इनके पूरी तरह से झूठ और बेबुनियाद होने की बात कही थी।
महिला का आरोप था कि उन्हें नौकरी से निकालने के बाद दिल्ली पुलिस में तैनात उनके पति और देवर को भी निलंबित कर दिया गया था। हालांकि जून 2019 में उनके पति और देवर को दिल्ली पुलिस ने बहाल कर दिया था। वहीं, मार्च 2019 में महिला के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक मामला दर्ज हुआ था। उनपर आरोप था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में नौकरी दिलाने के नाम पर एक व्यक्ति से पैसे लिए थे।
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