इतनी जल्दी भी क्या है… विनाश हो तो जाने दो मानवता और उसके कृत्यों को झकझोरती युवा प्रतिभा, याशिका (शुभी) जैन, इन्दौर द्वारा का उत्कृष्ट काव्य व्यंग कविता का लेखन एवं प्रस्तुति की जा रही है , देखिये इतनी जल्दी भी क्या है… विनाश हो तो जाने दो इतनी जल्दी भी क्या है… कहर ढह तो जाने दो इतनी जल्दी भी क्या है, प्राणवायु थोड़ी कम हो जाने दो, प्रदूषण अभी बढ़ जाने दो, हवा के लिए इंसान को तड़प तो जाने दो, इतनी जल्दी भी क्या है….. अभी और थोड़े पेड़ कट जाने दो। लोगों के अरमान पूरे हो जाने दो, उनके घर महल बन जाने दो, भुखमरी का शिकार हो तो जाने दो, इतनी जल्दी भी क्या है….. अभी और खेत सिकुड़ जाने दो।
पक्षियों का आश्रय छिन जाने दो, उन्हें खुले आसमान से वंचित हो जाने दो, उनको मूक हो तो जाने दो, इतनी जल्दी भी क्या है….. सारे पक्षी मर जाने दो। बूँद बूँद के लिए मोहताज़ हो जाने दो, एक और विश्व युद्ध अभी हो जाने दो, प्यास से इंसान को तड़प तो जाने दो, इतनी जल्दी भी क्या है….. सारा पानी बह जाने दो। शरीर को बीमारियों से घिर जाने दो, सब कुछ तहस नहस हो जाने दो, धरती को शमशान बन तो जाने दो इतनी जल्दी भी क्या है….. इंसान को अभी मर तो जाने दो। हर जगह शहरीकरण हो जाने दो, नदी, नाले, जंगल खत्म हो जाने दो, समुद्र को अभी और सिमट जाने दो, इतनी जल्दी भी क्या है….. प्रकृति को अपना रौद्र रूप अभी दिखा देने दो। अरे मानव चेत संभल जा अब भी अब न चेता तो संभलेगा कब मौका है अपने अस्तित्व को बचाने का महावीर का संदेश तो याद करो खुद जियो और औरों को जी लेने दो। लेखिका -याशिका (शुभी) जैन, इन्दौर
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